बिजली का झटका 

जब खुद बिजली कंपनी के बड़े अधिकारी थे, तब दूसरों के घरों में झटके देने वाले बिल  खूब भेजे होंगे, तब इस बात का भान भी नहीं रहा होगा कि बिजली बिल का झटका 440 वोट के करंट से भी ज्यादा तगड़ा होता. तब उनके घर मुफ्त की बिजली मिला करती थी. अब रिटायर हो चुके हैं. जाहिर है मुफ्त की सेवा बंद हो चुकी है. पिछले महीने की बात है, इस रिटायर हो चुके पूर्व अधिकारी के घर जब बिजली का बिल आया, तब उनका माथा ठनक गया. बीस हजार रुपए के आसपास का बिल था. सोच में पड़ गए कि मीटर की रफ्तार इतनी तेज भी ना थी कि बीस हजार रुपए का बिल आ जाए. पूर्व अधिकारी ने बिजली कंपनी के एक बड़े अधिकारी को फोन मिलाया और अपना दुखड़ा रोया. बिजली कंपनी की टीम पूर्व अधिकारी के घर पहुंची. मीटर की जांच पड़ताल की गई और लौट गई. पूर्व अधिकारी उम्मीद से भरे थे कि अब उनके बिल में सुधार होगा. मगर बिल में कोई सुधार नहीं हुआ. नाराज होकर उन्होंने बिजली कंपनी के उसी बड़े अधिकारी को फोन किया, उन्हें बताया कि बिल में कोई बदलाव नहीं हुआ. कंपनी के बड़े अधिकारी ने तर्क दिया कि अर्थिंग से जुड़ी किसी तकनीकी दिक्कत की वजह से बिल ज्यादा आया है. यह सुनते ही पूर्व अधिकारी ने लगभग भड़कते हुए अंदाज में कहा- ‘मुझे मत सिखाओ, बिल कैसे बढ़ाया जाता है?’ नाराजगी पूरे शबाब पर थी, फट पड़े. उन्होंने अपने कुछ करीबियों को भी यह किस्सा सुनाने से कोई गुरेज नहीं किया. बताने लगे, बिजली कंपनी कैसे उद्योगों के भारी भरकम बिजली के बिलों का सेटलमेंट आम उपभोक्ताओं की जेब काटकर करती है. उन्होंने बताया कि, उद्योगपति सेटलमेंट स्कीम लेकर आते है. सैकड़ों करोड़ रुपए के बकाए बिजली बिल को लेकर डील होती है. सेटलमेंट फीस तय होती है. यह फीस नेता-अफसरों की जेब में जाती है. कंपनी का नुकसान ना हो, इसलिए बिल का एडजस्टमेंट आम उपभोक्ताओं के बिलों से कर लिया जाता है. इतनी बारीकी से कि उपभोक्ताओं को पता ही ना चले. अब किसी के बिल में दस-बीस रुपए ज्यादा आ जाए, तो क्या फर्क पड़ेगा.  पूर्व अधिकारी ने कहा कि ऐसे ही एडजस्टमेंट की वजह से कई बार चूक हो जाती है और जिन घरों में पांच सौ हजार रुपए का बिल आता है, वहां दस-बीस हजार रुपए का बिल चला जाता है. यदि आप चमक धमक वाले हैं, तो बिजली बिल सुधर जाता है, नहीं तो करते रहिए शिकवा शिकायत, जैसे की इस वक्त मैं कर रहा हूं…. (पावर सेंटर)

‘माचो मैन’

आल इंडिया सर्विस के एक अफसर ‘माचो मैन’ की तरह अपने आपको पेश करते हैं. जिस दिन डंबल उठाते हैं, अपने बाइसेप्स दिखाने जींस के साथ टी-शर्ट पहने दफ्तर पहुंच जाते हैं. ब्रांड कांसेस है. बहरहाल एक हालिया घटना ने इस ‘माचो मैन’ की हालत टाइट कर दी. हुआ कुछ यूं कि महाराष्ट्र में इनकम टैक्स के एक बड़े अफसर ने राज्य के एक अफसर को फोन कर कहा कि वह ‘माचो मैन’ से मिलना चाहते हैं. अफसर का परिचय तो था नहीं, मगर नंबर बढ़ाने की सोचते हुए उसने ‘माचो मैन’ को फोन किया. ‘माचो मैन’ ने फोन नहीं उठाया. अफसर ने यह लिखते हुए टेक्स्ट मैसेज भेज दिया कि इनकम टैक्स के फलाने अफसर आपसे मिलना चाहते हैं. राज्य में जिस वक्त ईडी-आईटी का खेल चल रहा हो, जाहिर है इस तरह का भयानक मैसेज देखकर कोई भी सिहर उठेगा. ट्रेडमिल पर दौड़ते वक्त ‘माचो मैन’ की धड़कन इतनी तेज ना भागी होगी, जितनी इस टेक्स्ट मैसेज ने भगाया होगा. ‘माचो मैन’ ने टेक्स्ट मैसेज भेजने वाले अफसर के सीनियर को फोन किया और पूरी जानकारी साझा की. उस अफसर ने मैसेज भेजने वाले अपने अधीनस्थ से बात की, तब जाकर मालूम पड़ा कि दरअसल मसला एक ट्रांसफर से जुड़ा है. इनकम टैक्स का अफसर अपने किसी परिचित के ट्रांसफर को लेकर बात करना चाहता है. यह सुनते ही ‘माचो मैन’ फिर से पुराने जैसे बन गए. 

बुरे दिन 

ईडी मैग्निफाइंग ग्लास लेकर वहां भी पहुंच रही है, जहां कोई सोच नहीं सकता था. जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है, भ्रष्टाचार के कथित मामले की जांच में तेजी आ रही है. इस तेजी के मायने समझे जा सकते हैं. ठेले खोमचे पर खड़ा आदमी भी समझ सकता है कि इतना उतावलापन आखिर क्यों है? बहरहाल इस वक्त कालर ऊंची कर चलने वाले अफसरों-नेताओं की गिरफ्तारियां दर्ज हो रही हैं. ईडी की कार्रवाई से अफसरों के होश फाख्ता हैं. अफसर सहमे हुए हैं. एक आईएएस यह कहते सुने गए कि ईमानदारी की कमाई से छोटी-मोटी जमीन खरीदने की सोचता हूं, तो लगता है कि परिजनों के नाम पर राज्य के बाहर जमीन खरीद लूं. ईडी की चाल लड़खड़ा रही है. यह पता करना मुश्किल है कि ईडी सीधे चलते-चलते किस रास्ते मुड़ जाए. ईडी की कार्रवाई को लेकर मंत्रालय के कुछ अफसरों के बीच चर्चा चल रही थी. एक अफसर ने कहा कि, ” भ्रष्टाचार की कमाई, ऐसे ही बुरे दिन के काम आती है कि अच्छा वकील कर लो, कानूनी लड़ाई मजबूती से लड़ लो” करीब बैठे एक दूसरे अफसर ने तपाक से कहा, ” ऐसे बुरे दिन आने ही क्यों चाहिए? बुरे काम का नतीजा बुरा होता है”. तीसरे ने अपनी टिप्पणी दर्ज की, बोले- मामला सिर्फ पकड़े जाने तक का है, ऐसी कार्रवाई पिछली सरकार के नेता-अफसरों पर तो हुई नहीं. तब कंबल ओढ़कर किसने घी नहीं पिया. विदेशों तक संपत्तियां खरीद ली. व्यापार खड़ा कर लिया. क्या तब भ्रष्टाचार कम था. तब के मंत्री रहे नेताओं और उस वक्त के सत्ता के करीबी रहे अफसरों के ठाठ बाट, रहन-सहन में एक सूत भर का अंतर भी नहीं आया. बहरहाल, भ्रष्टाचार अब शिष्टाचार बन गया है. एक स्टेटस सिंबल है. इतिहास नेताओं-अफसरों के अच्छे कामों को याद नहीं करेगा, मगर भ्रष्टाचार की घटना स्मृति पटल पर स्मारक के तौर पर खड़ी रहेगी.

सेफ कार्नर

ईडी की कार्रवाई पर कांग्रेस हमलावर है, लेकिन पूरी कांंग्रेस नहीं. कुछ नेता अपना सेफ कार्नर बनाकर चल रहे हैं. उनका एक सिंगल ट्वीट तक नहीं है. सोचते होंगे कि साहब नजदीक का चश्मा पहनते हैं, इतनी दूर का भला कैसे देख पाएंगे कि कौन ट्वीट कर रहा है कौन नहीं? नेता जी भूल गए थे, साहब अलग मिजाज वाले हैं. रहते तो एक वक्त पर एक जगह ही हैं, लेकिन कई दूसरी जगहों पर अपनी आंख छोड़ रखे हैं. जहां नहीं होते, वहां का भी सब देख लेते हैं. नेता जी एक गलती कर बैठे. अरसे बाद दुआ सलाम के लिए हेलीपैड पहुंच गए. साहब दौरे पर निकल रहे थे कि नजरें इनायत हुई. हाल चाल पूछा और आगे बढ़ गए. इतने में याद आया कि नेता जी ईद का चांद बने बैठे हैं? अखबारों में भी उनकी कोई खैर खबर नहीं. वर्ना एक वक्त था, हर दिन अखबारों के पन्ने नेता जी के बयानों से गुलजार होते थे. साहब पलटे और पूछ बैठे, ईडी पर हर कोई लिख रहा है, बयान दे रहा है, लेकिन तुम्हारा कोई अता पता नहीं? बस फिर क्या था. सफाई देने के साथ मुंह पर करीने से एक मुस्कान खींच गई. दूसरे दिन अखबारों के पन्नों पर बयान अपनी गुलजारियत बिखेर रहा था, इस उम्मीद के साथ साहब की नजर एक दफे उस पर पड़ जाए.  

इतने इत्तेफाक

इस बार पीएससी के नतीजे गहरे सवालों के साथ जारी हुए. एक तरफ मेरिट सूची में आए अभ्यर्थियों को बधाई देने वालों का तांता लग गया, दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर गुस्से का गुबार उठ खड़ा हुआ. इस गुबार ने मेरिट सूची को शक के दायरे में लाकर खड़ा कर दिया है. शक उन पर पर है, जिनसे पारदर्शी नतीजे जारी करने की उम्मीद थी. मेरिट सूची में मध्यमवर्गीय अभ्यर्थियों की जगह अब सिमट गई है. उनकी जगह अफसरों, नेताओं और कारोबारियों के बच्चों ने ले ली है. अफसरों, नेताओं और कारोबारियों का अपना रसूख है, अपना ओहदा है. ओहदा जब प्रभावशाली हो, तो संबंधित चयनित अभ्यर्थियों की उपलब्धि भी सवालों की फेहरिस्त में आ खड़ी होती है. भले ही मेरिट सूची के ज्यादातर अभ्यर्थियों को उनकी सार्थक मेहनत ने स्थान दिलाया हो, बावजूद इसके इसे लेकर उठ रहे सवालों की अपनी जगह तय है. पीएससी की मेरिट लिस्ट में एक साथ कई इत्तेफाक है. पहले नंबर पर चयनित अभ्यर्थी और बीसवें नंबर पर चयनित अभ्यर्थी दोनों भाई-बहन हैं. दूसरे स्थान के लिए चयनित अभ्यर्थी कांग्रेस नेता की बेटी है. तीसरे और चौथे नंबर पर चयनित अभ्यर्थी पति-पत्नी हैं. एक प्रभावशाली कारोबारी परिवार से ताल्लुक रखते हैं. मेरिट सूची में नौंवे और बारहवें स्थान पर चयनित अभ्यर्थी भी भाई-बहन है, दोनों एक आईएएस के बच्चे हैं. सातवें स्थान के लिए चयनित अभ्यर्थी पीएससी चेयरमेन का दत्तक पुत्र है. मेरिट सूची में सरनेम छिपाया गया. ग्यारहवां स्थान पाने वाली अभ्यर्थी डीआईजी की बेटी है. छत्तीसगढ़ में पीएससी पहले भी विवादों से घिरी रही है. इस दफे फिर विवाद खड़े होने की सुगबुगाहट है. 

वार रूम

कर्नाटक के नतीजे आने के बाद अब छत्तीसगढ़ में राजनीतिक हलचल और तेजी होगी. कांग्रेस की प्रभारी कुमारी शैलजा हो या फिर बीजेपी प्रभारी ओम माथुर. दोनों के मैराथन दौरे होने वाले हैं. शैलजा आती हैं, तो होटल में ठहरती है, वहीं माथुर बीजेपी कार्यालय में बने सुइट में ठहरते हैं. चर्चा है कि अब दोनों दलों की ओर से अपने-अपने प्रभारियों के लिए बंगला ढूंढा जा रहा है. प्रभारी इन बंगलों में ठहरेंगे. यह बंगला-कम-वार रूम होगा. आंतरिक रणनीति इन बंगलों से बनेगी. बताते हैं कि चुनाव करीब आते-आते राजनीतिक दलों के नेताओं का तोड़ फोड़ भी तेज होगा. नेता इधर से उधर आ जा सकते हैं. किसी दल के नेता को भीतरघात करनी हो, तो सार्वजनिक ठिकानों से परे ये बंगला ही होगा, जहां गुपचुप जाकर अस्थायी समझौते किए जा सकेंगे. 

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