Column By- Ashish Tiwari

मोर बिलई मोरे ले म्याऊ

ये किस्सो की सरकार है. जहां बैठ जाएं, वहां कहानियाँ निकल आती है. एक मंत्री बंगले में खुली चर्चा चल रही थी. बड़े चाव से लोग किस्सा सुन रहे थे. बताते हैं कि सीएम हाउस में पांच मंत्रियों की बैठकी हुई. एक मंत्री रायपुर जिले से थे, दो मंत्री दुर्ग संभाग से थे और एक सरगुजा जिले से थे. साहब तो थे ही. इस बैठक में रायशुमारी सीएम पद को लेकर चल रही थी. वैसे भी इस वक्त राज्य की ऐसी कोई गुमटी ना होगी, जहां इस मामले की चर्चा नहीं चल रही होगी. फिर हाउस तो हाउस है. हाउस की चर्चा के मायने थोड़े अधिक वजनदार होते हैं. दिलचस्प संवाद के बीच सीएम साहब ने सरगुजा से आने वाले एक मंत्री पर तंज भरे अंदाज में कहा, ‘सुना है कि रात में सुरापान के बाद तुम भी कहते हो, मैं सीएम बनूंगा’. यह सुनते ही मंत्री का चेहरा काटो तो खून नहीं वाले अंदाज में नजर आया, फिर मिमियाते हुए हंसी छोड़ दी. इतने में एक हैवीवेट मंत्री ने अपनी टिप्पणी दर्ज करते हुए कहा कि ‘एक पत्ता भी गिरता है, तो सीएम को पता चल जाता है’. बात आई और चली गई, पर साहब के मन में वो छत्तीसगढ़ी कहावत रह रहकर याद आती रही होगी- ‘मोर बिलई मोरे ले म्याऊ’…
कौन लेगा ‘कलेक्टर कांफ्रेंस’ !
सूबे के कलेक्टर हैरान भी हैं और परेशान भी. दरअसल जीएडी ने सभी संभाग कमिश्नर, कलेक्टर, सीईओ जिला पंचायत और नगर निगम के कमिश्नरों को पत्र भेजकर कहा है कि मुख्यमंत्री 18 अक्टूबर को कलेक्टर कांफ्रेंस लेंगे. जीएडी ने 21 बिंदुओं का एजेंडा भेजकर पूरी जानकारी के साथ कांफ्रेंस में आने का फरमान भेजा है. कलेक्टरों के लिए हैरानी की बात ये है कि कॉन्फ्रेंस की सूचना इतनी जल्दी क्यों भेजी गई और परेशानी की बात यह है कि कांफ्रेंस में आखिर समीक्षा करेगा कौन? पुराने वाले या नए वाले? कलेक्टरों में इसे लेकर जबरदस्त चर्चा है. वैसे सियासी उठापठक के बीच यह सवाल उठना लाजिमी है. तरह-तरह की चर्चाएं बाजार में घूम भी रही हैं. भूपेश समर्थक विधायक दिल्ली में डटे हैं, उधर टी एस सिंहदेव अपने बयानों के जरिए सबको उलझाए हुए हैं. कांग्रेस हाईकमान की दिलचस्पी विवाद खत्म करने की बजाए लड़ाने-भिड़ाने वाली नजर आ रही है. कुछ भी स्पष्ट नहीं है, लेकिन बावजूद इन सबके बदलाव की बयार बहते देख कलेक्टरों के आपसी संवाद में यही पूछा जा रहा है कि  ‘कौन लेगा कलेक्टर कांफ्रेंस’.
बघेल को यूपी का जिम्मा
इस बीच कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए सीनियर ऑब्जर्वर नियुक्त कर दिया है. इस नियुक्ति के बाद सवाल उठने लगे कि कांग्रेस हाईकमान आखिर क्या संकेत देना चाहता है. हालांकि बघेल पिछले दिनों जब हिमाचल प्रदेश के दौरे पर थे, तब दिल्ली लौटते हुए उनकी मुलाकात प्रियंका गांधी से हुई थी. उन्होंने खुद आगे बढ़कर उत्तर प्रदेश चुनाव की जिम्मेदारी मांगी थी. उत्तर प्रदेश में बघेल की एक बड़ी टीम संगठन को प्रशिक्षण देने में जुटी हुई है, लेकिन सवाल उठ रहा है कि जिस वक्त बड़ी तादात में कांग्रेस विधायकों का जमावड़ा दिल्ली में हुआ है, ठीक उस वक्त बघेल को जिम्मेदारी सौंपे जाने का कहीं कोई कनेक्शन तो नहीं है. भूपेश समर्थक विधायकों के दिल्ली में डटे होने पर हाईकमान की ओर से गहरी नाराजगी जताई गई है. खैर राजनीति का खेल समझ के परे है.  राजनीतिक पंडित कहते भी हैं कि कांग्रेस में कब-क्या हो जाए कोई नहीं जानता.
कलेक्टरों की बीवियां हुई नाराज !
कई कलेक्टर इन दिनों दफ्तरों में देर तक काम कर रहे हैं. कलेक्टर कांफ्रेंस की तैयारी के लिए नहीं, बल्कि घर जल्दी जाने से बचने के लिए. सुनाई पड़ा है कि बीवियों का गुस्सा कुछ कलेक्टरों के सिर पर आफत बनकर टूटा है. मान मनौव्वल का दौर चल रहा है. अक्टूबर महीने में चार दिन की छुट्टी पड़ रही है. 15 तारीख को दशहरा, 16 को शनिवार और 17 को रविवार की छुट्टी है. 18 को एक दिन का वर्किंग डे है. 19 को फिर छुट्टी है. ऐसे में कुछ ने सोच रखा था कि 18 तारीख को एक दिन की छुट्टी लेकर पांच दिनों की आउटिंग कर ली जाए.  कुछ ने बकायदा टिकट तक की बुकिंग करा ली थी, कि कलेक्टर कांफ्रेंस की चिट्ठी मिल गई. प्लान पर पलीता लग गया.
बुरे फंसे थे एलेक्स
राज्य शासन ने आईएएस एलेक्स पॉल मेनन का पिछले दिनों तबादला कर दिया. उन्हें श्रम आयुक्त से हटाकर छत्तीसगढ़ प्रशासन अकादमी का संचालक बनाया गया, लेकिन आदेश जारी करने में चूक हो गई.  राज्य शासन ने रिटायर्ड आईएएस टी एस महावर को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग देते हुए प्रशासन अकादमी भेजा था. अब दोबारा उसी पद पर एलेक्स पाल मेनन का तबादला किया गया. पहले श्रम में एलेक्स जो जिम्मेदारी संभाल रहे थे, वहां अमृत खलको आ गए. उधर प्रशासन अकादमी में महावर के पहले से होने की वजह से एलेक्स अब तक चार्ज नहीं ले सके. फेरबदल का आदेश जारी हुए एक पखवाड़े से ज्यादा का वक्त बीत गया. सरकार को जब अपनी गलती का पता चला कि बगैर चार्ज एलेक्स सैलरी विड्रा कैसे करेंगे, तब जाकर उनका आदेश निकाला गया. उन्हें ग्रामोद्योग में विशेष सचिव बनाया गया है.
अब ‘चैनल’ खोलेंगे विधायक !
सूर्य का ही तेज है कि कांग्रेस विधायकों के चेहरे चमक रहे हैं. चमक इतनी है कि, कोयले की खान से निकला हीरा भी इसके आगे फीका पड़ जाए. वैसे राजनीति में चेहरा चमकाने में न्यूज़ चैनल का बड़ा रोल है, सो विधायक अब चैनल खोलने का मन बना रहे हैं. खुद का चैनल शुरू होगा तो दूसरों पर निर्भरता खत्म हो जाएगी.  आत्मनिर्भर बन जाएंगे. जब चेहरा चमकाना-दमकाना होगा, चैनल हाथ में होगा. अपने मनमाफिक खबर चल सकेगी. राजनीति में वैसे भी चेहरे का बड़ा रोल है. दिखते रहना जरूरी है. सुना है कि छह-सात विधायकों की चैनल को लेकर मीटिंग हो गई है. कितना इन्वेस्ट करना है? चैनल फ्रेंचाइजी मॉडल पर होगा या फिर नया सेटअप डालना है, ऐसे कई मुद्दों पर बातचीत हो गई है. अब खोजबीन की जा रही है कि कुछ जानकार और अनुभवी लोग मिल जाये.
उदय किरण का क्या होगा !
पूर्व विधायक विमल चोपड़ा से मारपीट मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद नारायणपुर एसपी उदय किरण के खिलाफ अब एफआईआर दर्ज होगा. घटना महासमुंद की थी, इसलिए एफआईआर वहीं दर्ज होगा, लेकिन स्थानीय पुलिस मामले की जांच नहीं करेगी. जांच का जिम्मा सीआईडी के हाथों होगा. ऐसी स्थिति में उदय किरण का क्या होगा? पुलिस महकमे के उच्च पदस्थ अधिकारी नियमों के हवाले से बता रहे हैं कि उदय का किरण अस्त हो सकता है. ले दे के अभी उन्हें पहले जिले की कमान मिली थी. वैसे ये तय है कि सिस्टम उन्हें बचा ले जाएगा. अव्वल ये कि सीआईडी मामले की जांच करेगी, तो गिरफ्तारी से बच जाएंगे. दूसरा एक सीनियर आईपीएस अधिकारी की निगरानी में होने वाली जांच में कम से कम अपने अधीनस्थ को बचाने की उम्मीद तो की ही जा सकती है. आल इंडिया सर्विसेस में ऐसी यूनिटी आईएएस कैडर में दिखती है. तभी तो एसडीएम रहते रंगे हाथों धरे गए एक आईएएस का बाल बांका तक नहीं हो सका था. वो बात अलग है कि उस आईएएस की गर्मजोशी उन्हें ले डूबी. कलेक्टर रहते जड़े गए एक थप्पड़ ने उनका टिकट काट दिया. 
नेता प्रतिपक्ष की दूर की कौड़ी
नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक राजनीति के परिपक्व खिलाड़ी हैं. तभी तो गुपचुप तरीके से दिल्ली गए और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मिल आए. बताते हैं कि अच्छे अच्छो को शाह मिनटों में निपटा देते हैं, लेकिन कौशिक से करीब 45 मिनट की चर्चा किए जाने की खबर है. हालांकि बाद में तस्वीरें जारी कर मुलाकात को सार्वजनिक किया गया. बताया गया कि नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो का कार्यालय खोले जाने की मांग, धर्मांतरण के बढ़ते मामलों जैसे कई मुद्दों से लेकर संगठन से जुड़े अन्य विषयों पर चर्चा की गई. लेकिन जो तस्वीर दिखाई नहीं पड़ रही, वह यह है कि कौशिक आने वाले चुनाव में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवारों के संभावित चेहरों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने में जुट गए हैं. राज्य की सियासत में ओबीसी सबसे बड़ा फैक्टर बनता जा रहा है. बीजेपी के पास ओबीसी वर्ग से आने वाले प्रमुख चेहरों में धरमलाल कौशिक शामिल हैं. विधानसभा अध्यक्ष, प्रदेश अध्यक्ष जैसी बड़ी जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. सदन में विपक्ष के नेता की हैसियत से अभी काम कर रहे हैं. जाहिर है, बीजेपी में जब ओबीसी चेहरे का चुनाव होगा, तो कौशिक अव्वल पायदान पर आने वाले नेताओं में होंगे, सो खाद-बीज डालने का काम अभी से शुरू कर दिया है. दिल्ली दौरे में मजबूत नेताओं से लगातार मिल रहे हैं. सियासत में इसे ‘दूर की कौड़ी खेलना’ कहते हैं.