Column By- Ashish Tiwari , Resident Editor

दुबई फाइल 

जंगल में लगी आग जिस तेजी से फैलती है, जंगल विभाग की फाइलों की रफ्तार उतनी ही सुस्त है. करीब सवा साल पहले नवा रायपुर स्थित जंगल सफारी और दुबई सफारी के बीच एमओयू का प्रस्ताव आया था. चूंकि प्रस्ताव अवित्तीय था, जाहिर है विभाग को ना तो एक ढेला खर्च करना था, ना ही  इस एमओयू से एक पाई की कमाई थी. बावजूद इसके एमओयू की यह फाइल धूल खाती पड़ी रही. बीते दिनों जब फाइल से धूल हटी, तो आनन-फानन में इसे मंजूरी दी गई. दुबई सफारी को मंजूरी की जानकारी भेज दी गई. मगर तब तक जो होना था, वह हो चुका था. वन महकमे की तेजी के आगे दुबई सफारी ने हाथ जोड़ लिए. चर्चा है कि दुबई सफारी ने कहा है कि अब हम इस प्रस्ताव पर विचार करेंगे कि एमओयू करना है या नही?  कहा जा रहा है कि एमओयू होता तो दुबई सफारी और जंगल सफारी के बीच जानवरों का आदान-प्रदान होता. कई तरह की तकनीकी जानकारियां विभाग को मिलती. एमओयू के इस प्रस्ताव में अफसरों का व्यक्तिगत वित्तीय लाभ था नहीं, दिलचस्पी कहां से पैदा होती. वित्तीय लाभ की चमक वाली फाइल द्रुत गति से चलती हैं. फिर जंगल की आग की तेजी भी बहुत पीछे छूट जाती है. 

बंगले का वास्तु दोष !

तबादले में आईजी साहब नई भूमिका में आ गए हैं. ओहदा तो बढ़ा ही है. साथ-साथ चुनौतियां भी बढ़ गई है. ऊपर से चुनावी साल का झमेला सो अलग. पहले सुकून था, अब 24 घंटे का काम है. हर पल सतर्क होना जरुरी भी है और मजबूरी भी. केंद्रीय एजेंसियों की बढ़ती सक्रियता ने पहले से माथे की लकीरें उभार रखी है. हंसता हुआ चेहरा लेकर आए थे पर अब तनाव में दिन गुजर रहे हैं कि ना जाने कब कौन सी हलचल हो जाए. ईश्वर पर गहरी आस्था रखते हैं. इसलिए आत्मविश्वास बढ़ा रखा है. कामकाज संभालते हुए उन्हें कई दिन बीत गए, लेकिन अब तक सरकारी बंगले में दाखिल नहीं हुए. कहा जा रहा है कि किसी पंडित ने बंगले का वास्तु दोष दूर करने की सलाह दी है. चर्चा है कि पंडित की सलाह पर आईजी साहब बंगले में दाखिल होने के पहले वास्तु दोष का निवारण करवा रहे हैं. फिलहाल इन दिनों मेस में रह रहे हैं. बहरहाल आईजी साहब मेष राशि वाले हैं. ज्योतिषियों के मुताबिक मेष राशि वालों के लिए नया साल शुभ है. जाते-जाते बता दें कि उनसे पहले वाले साहब हनुमान भक्त थे. हनुमान चालीसा पढ़ते-पढ़ते जैसे-तैसे कार्यकाल पूरा कर लिया. अब सब बढ़िया है. 

भारत-न्यूजीलैंड मैच

छत्तीसगढ़ को पहली बार भारत-न्यूजीलैंड वनडे क्रिकेट मेज की मेजबानी मिली है. 21 जनवरी को यह मैच होगा. राजीव शुक्ला को छत्तीसगढ़ से राज्यसभा भेजे जाने का एक बड़ा फायदा हुआ. शुक्ला बीसीसीआई में उपाध्यक्ष हैं. इधर मैच फिक्स हुआ, उधर टिकट की मारामारी शुरू हो गई है. वीवीआईपी भी कम नहीं है, जिन्हें मैच की टिकट चाहिए. एक सीनियर बीजेपी नेता ने क्रिकेट एसोसिएशन के वरिष्ठ पदाधिकारी से वन डे मैच के पासेस मांगे, लेकिन पास देना तो दूर, नसीहत दे दी गई कि पासेस चाहिए तो सीधे मुख्यमंत्री से बात कर लें. अब एसोसिएशन ये बताते फिर रहा है कि सारे के सारे वीआईपी पास सीधे सीएम हाउस डील कर रहा है. अब 21 तारीख के मैच में ये मालूम चल सकेगा कि किन-किन बीजेपी नेताओं के संबंध सीएम हाउस से नजदीक के हैं. 

कौन लेगा रिस्क?

जांजगीर-चाम्पा जिले की अकलतरा इकलौती ऐसी सीट बताई जाती है, जिसे लेकर मिथक है कि मुख्यमंत्री रहते हुए जो कोई भी यहां गया, वह अगला चुनाव हार गया. इतिहास में झांकने पर ये मिथ एकबारगी सच भी दिखता है. मसलन 1958 में मुख्यमंत्री रहे कैलाशनाथ काटजू पहली दफे यहां आए थे. रेलवे स्टेशन पर चाय पीने रुके थे, अगला चुनाव हार गए. मुख्यमंत्री बनना दूर की बात थी. इसके बाद 1973 में मुख्यमंत्री रहे प्रकाशचंद्र सेठी अकलतरा के दौरे पर आए थे, उनके साथ भी वहीं हुआ. दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बन पाए. बाद के सालों में पंडित श्यामाचरण शुक्ला, अर्जुन सिंह, सुंदरलाल पटवा, दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री रहे, लेकिन कभी अकलतरा का दौरा नहीं किया. छत्तीसगढ़ बनने के बाद साल 2003 में चुनावी तैयारियों के सिलसिले में अजीत जोगी अकलतरा गए. चुनाव बुरी तरह हारे. सत्ता चली गई. उनके बाद डाॅ.रमन सिंह मुख्यमंत्री बने. किसी ने उन्हें अकलतरा का ये गणित समझा दिया था. शायद तभी 2003 से लेकर 2018 तक वह जिले के दौरे पर जाते रहे, लेकिन अकलतरा कभी नहीं गए. तीन बार सरकार बनाई. मगर 2018 विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान अकलतरा विधानसभा के तरौद ग्राम पंचायत का दौरा करने चले गए. नतीजा सामने है. बताते हैं कि बीते चार सालों में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी अकलतरा के दौरे पर नहीं गए, लेकिन ये बात अलग है कि उन्होंने आसपास का दौरा किया है. बहरहाल उत्तरप्रदेश के नोयडा को लेकर भी कुछ ऐसा ही मिथक था, जिसे योगी आदित्यनाथ ने तोड़ दिया. आदित्यनाथ नोयडा जाते रहे और अगले चुनाव में बड़ी जीत दर्ज कर सत्ता में वापसी की. यकीनन राज्य के भीतर अकलतरा को लेकर बनाया गया ये मिथ भी एक दिन जरुर टूटेगा. बड़ा सवाल यह है कि ये रिस्क कौन लेगा? 

टकराव

सरकार और राजभवन के रिश्ते में दरार की खबरें सुर्खियों में खूब रही, लेकिन आरक्षण विधेयक पर राज्यपाल के हस्ताक्षर नहीं करने के मामले ने दरारों में एक गहरा सुराख बना दिया है. आर-पार साफ दिख रहा है. राजभवन सवाल दर सवाल भेज रहा है. सरकार उन सवालों का जवाब दे रही है. बीजेपी बाहर से कोच की भूमिका में है. सरकार का सीधा आरोप है कि राजभवन बीजेपी के इशारों पर काम कर रहा है. बहरहाल ऐसा बिल्कुल नहीं है कि छत्तीसगढ़ ही ऐसा टकराव देख रहा है, मौजूदा दौर में हर राज्यपाल जगदीश धनखड़ और आरिफ मोहम्मद खान बनना चाह रहा है. पश्चिम बंगाल में जगदीश धनखड़ के कामकाज के तरीकों को सबने देखा. आज देखिए, उप राष्ट्रपति का पद मिल गया. आरिफ मोहम्मद खान राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल थे ही. छत्तीसगढ़ की अनुसुइया उइके का नाम तो कई चैनलों ने चला दिया था कि आदिवासी वर्ग से वह राष्ट्रपति बनाई जा सकती है. दरअसल राज्यपाल के पद को सफेद हाथी कहने वाले समझ ही नहीं पा रहे कि इस पद पर बैठने के बाद रास्ते कहां तक जा सकते हैं. राजभवन सियासत का एक अहम केंद्र बिन्दु बन गया है.

कांग्रेस की दोहरी लड़ाई

आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस दोहरी लड़ाई लड़ती दिख सकती है. एक बीजेपी से और दूसरा खुद से. पिछले दिनों कांग्रेस की विस्तारित बैठक हुई. प्रदेश प्रभारी बनने के बाद कुमारी सैलजा पहली बार छत्तीसगढ़ आई. एयरपोर्ट पहुंचते ही खींचतान की तस्वीर दिखने लगी. कुमारी सैलजा को रिसीव करने खुद मुख्यमंत्री पहुंचे थे. सैलजा को जब गाड़ी में बिठाने का वक्त आया, मुख्यमंत्री के काफिले की गाड़ी लगाई गई. सैलजा ने पहली सीट पर बैठने की इच्छा जताई. मुख्यमंत्री को भी पीछे की सीट दो अन्य लोगों के साथ शेयर करने की नौबत आ गई, जिनमें एक मोहन मरकाम थे, दूसरे प्रभारी सचिव थे. बैठक में शामिल होने राजीव भवन पहुंची सैलजा को लेकर पीसीसी चीफ मोहन मरकाम आदिवासी नृत्य कराने में मशगूल थे कि ठीक उस वक्त मुख्यमंत्री पहुंच गए. मगर इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया. नृत्य खत्म होने तक मुख्यमंत्री को इंतजार करा दिया गया. बैठक में ब्लाॅक स्तर तक के पदाधिकारियों ने सरकार के खिलाफ खूब जहर उगला. मंत्रियों समेत निगम,मंडल,आयोग में बैठे नेताओं के खिलाफ शिकायतों की फेहरिस्त लेकर आए थे. प्रदेश प्रभारी के सामने सब उगल दिया. कुमारी सैलजा को समझने में देरी नहीं हुई कि पुनिया सत्ता-संगठन के बीच संतुलन बनाने में फेल साबित हुए थे. कुमारी सैलजा के लिए ठहरने का बंदोबस्त भी सत्ता-संगठन ने अलग-अलग कराया था. मगर सैलजा अपने निजी खर्च पर होटल में ठहरी. एक ही बैठक में सैलजा सब समझकर लौटी हैं. कांग्रेस में कुमारी सैलजा का कद सभी जानते हैं. कद के मामले में पुनिया कहीं नहीं ठहरते थे.