लालच बुरी बला…

एक पुरानी कहावत है. लालच बुरी बला है. एक अफसर के लालच ने उन्हें किस्सों में ला दिया. अब उन्हें लेकर चर्चा गुलजार है. वे शहर की एक पॉश कालोनी के अपने घर को हरा भरा करना चाहते थे. उन्होंने सुंदर सा गार्डन बनाया. वक्त बिताने लगे. सुकून मिलने लगा. अफसर को ख्याल आया कि रायपुर में उनके दो-तीन मकान और हैं. ऐसा ही गार्डन उन मकानों में बना दिया जाए, तो उधर भी उछल कूद किया जा सकेगा. उनकी इस ख्वाहिशों की उड़ान परवान चढ़ने ही वाली थी कि मामला बिगड़ गया. दरअसल अफसर खुद के पैसे से गार्डन बनवाते, तो कोई बात नहीं थी. उन्होंने खर्चों का ठीकरा मातहतों पर फोड़ रखा था. मातहत भरोसे के नहीं निकले. उनकी चुगली चकल्लस में अफसर का गार्डन प्रेम सरे बाजार नीलाम हो गया. गली-गली यह बात फैल गई कि कर्मचारियों से चंदा वसूली कर अफसर गार्डन बना रहे हैं. बेचारे सुकून ढूंढ रहे थे. अब उस गार्डन में बैठकर इस ख्याल में डूबे रहते हैं कि ना गार्डन बनाते, ना ही चर्चा में आते. कर्मचारियों पर फटने से ज्यादा खुद पर फटते दिखते हैं. ब्यूरोक्रेसी के आसमां के यह चमकते सितारे बनकर उभरे हैं. वैसे जाते-जाते यह भी सुनते जाइए. अफसर महोदय बड़े इन्वेस्टर भी हैं. सुना है कि शहर की एक बड़ी बहुमंजिला इमारत में साहब के कई फ्लैट हैं. पैसे कमा रखे थे, बिल्डर के प्रोजेक्ट में इन्वेस्ट कर दिया था. अब बेचने के लिए ग्राहक ढूंढ रहे हैं, जो ढूंढे नहीं मिल रहे. कहते हैं कि जिस भाव पर बेचना चाहते हैं, वो मिल नहीं रहा. यानी जितना लगाया था, उतना रिटर्न भी नहीं आ रहा. हम तो इतना ही कह सकते हैं कि उनका सुकून सलामत रहे.

अफसरों की ‘चुनावी चर्चा’

तस्वीर : मंत्रालय के एक अफसर का दफ्तर. दफ्तर के भीतर आधा दर्जन अफसरों की मौजूदगी. सभी चाय की चुस्कियों के बीच चुनावी चर्चा में मशगूल. आचार संहिता ने कामकाज से थोड़ी राहत दे रखी है. काम कम है, चर्चा के लिए वक्त ज्यादा. एक-एक सीट पर एक-एक अफसर के समीकरण अलग-अलग. कुछ की राय किसी एक दल को लेकर बनती है, फिर बिगड़ जाती है. कुछ अडिग है सरकार बदलने के लिए और कुछ हैं, जो मानते हैं कि ऐन केन प्रकारेण सरकार लौट आएगी. चुनावी समीकरणों से शुरू हुई बातचीत नतीजों पर आकर ठहरती है. चुनावी नतीजों पर अफसरों का आकलन अलग-अलग बनता दिखता है. इस तस्वीर के बरख्श एक अफसर यह कहते सुने जाते हैं कि यह चुनाव 2018 की तरह नहीं है. तब कांग्रेस के पक्ष में लहर बन गई थी. अब अंडर करंट के हालात हैं. चुनावी आंकड़े बाजी के बीच एक ‘चुनाव’ अफसर के दफ्तर में ही कर लिया जाता है. यह चुनाव पर्ची से नहीं. मौखिक ही है. नतीजे में सरकार बदली पाई जाती है.

हेलीकाॅप्टर फिर से…

एक हेलीकाॅप्टर ने 2013 के चुनाव में कांग्रेस का गणित बिगाड़ा था. एक हेलीकाॅप्टर फिर से लौट आया है. मगर पहली बात 2013 वाले हेलीकाॅप्टर की. साल 2013 का चुनाव याद कीजिए. सतनाम समाज के गुरू बालदास ने नई पार्टी बनाई थी. नाम था, सतनाम सेना. इस पार्टी ने 21 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. समीकरणों की आड़ लेकर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित दस सीटों में से नौ सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी. गुरू बालदास को भाजपा का मोहरा कहा गया. कहा गया कि भाजपा के हेलीकाॅप्टर में सवार होकर सतनाम सेना प्रभावी वोट उड़ा ले गई. सतनाम सेना ने औसतन छह से दस हजार तक वोट हासिल किए थे. अब चर्चा 2023 के इस चुनाव की. जेसीसी सुप्रीमो अमित जोगी हेलीकाॅप्टर से ताबड़तोड़ दौरा करने वाले हैं. चुनावी दौरे के लिए उनकी पार्टी ने एक हेलीकाॅप्टर किराये पर लिया है. कुछ महीने पहले तक फंड क्राइसिस से जूझ रही पार्टी की हवाई उड़ान लोग बखूबी समझ रहे हैं. चंद रोज पहले अमित जोगी को केंद्र सरकार ने सीआरपीएफ कवर वाली जेड सिक्युरिटी दे दी. पार्टी ने ताबड़तोड़ कैंडिडेट मैदान में उतार दिए. कांग्रेस के कई बागी चेहरों को अपना सिपाही बनाकर चुनावी मैदान में झोंक दिया. 2018 के चुनाव में जेसीसी ने 7.4 फीसदी वोट हासिल किया था. बसपा और सीपीआई गठबंधन जोड़ दिया जाए तो करीब 11 फीसदी वोट उनके हिस्से गया. अब सवाल उठ रहा है कि समीकरणों पर जा टिके हालिया चुनाव में जेसीसी किसका गणित बिगाड़ेगी?

किसानों पर जोर, कर्मचारी किस ओर

कहते है राज्य में किसान जिसके साथ, सरकार उस पार्टी के हाथ. ये सच है कि किसानों के रास्ते ही सत्ता की चाबी मिलती है. मगर राजनीतिक दलों द्वारा किसानों पर लगाए जा रहे जोर के बीच एक अहम कड़ी छूट रही है कि कर्मचारी किस ओर है. सरकारी कर्मचारियों की भूमिका नजरअंदाज नहीं की जा सकती. राज्य में नियमित और अनियमित कर्मचारियों की संख्या करीब सात लाख है. प्रति परिवार औसतन चार वोट के अनुपात में कुल वोटरों की संख्या करीब 28 लाख हो जाती है. भूपेश सरकार ने कर्मचारियों को ओल्ड पेंशन स्कीम(ओपीएस) दिया. फाइव वर्किंग डे सिस्टम लागू किया, बावजूद इसके कर्मचारियों का रुख स्पष्ट दिखाई नहीं पड़ता. कम से कम 2018 की तरह तो बिल्कुल नहीं. जब सरकारी दफ्तरों के गलियारे से गुजरते हर कर्मचारी यह सुनते पाया जाता कि परिवर्तन की बयार बह रही है. कर्मचारी खुलकर कांग्रेस के साथ खड़े दिखे थे. इस दफे शांत हैं. यकीनन नजर घोषणा पत्र पर टिकी होगी. बीजेपी का घोषणा पत्र देख लिया है, कांग्रेस का देखना बाकी है. शायद तब राय समझ आ जाये.

कांग्रेस की पिच, भाजपा की बैटिंग

भाजपा का घोषणा पत्र आया. भाजपा ने बड़े-बड़े वादों की झड़ी लगा दी. भाजपा घोषणा पत्र में किसानों की सुध लेती दिखती है. कांग्रेस की तरह कर्जमाफी का ऐलान तो नहीं है, मगर 3100 रुपये में धान खरीदी, 21 एकड़ प्रति क्विंटल धान खरीदने का वादा, एकमुश्त भुगतान, दो साल का बकाया बोनस…किसानों पर केंद्रित वादे भरपूर हैं. उधर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह घोषणा पत्र जारी कर रहे थे, इधर सामने बैठे भाजपा के एक नेता बोल उठे. कांग्रेस की पिच पर बैटिंग ही करनी थी, तो 2018 में कर लेते. आउट होने की संभावना कम हो जाती. तब भी हमने इन वादों के साथ चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया था. दिल्ली वालों ने नजरें टेढ़ी कर दी थी. हमें मायूस होकर दिल्ली से लौटना पड़ा था. चुनाव लड़ने के पहले ही भाजपा चुनाव हार गई थी. दिल्ली के नेता भी जानते थे, हार मिलेगी, इसलिए पोस्टरों में चेहरा भी नहीं बने थे. अब पांच साल नेट प्रैक्टिस करने के बाद कांग्रेस की पिच पर बैटिंग करने सब तैयार हैं. नेता ने यह भी कहा कि खिलाड़ियों का कॉन्फिडेंस तब ज्यादा बढ़ जाता जब कर्जमाफी की घोषणा कर देते. इस पर एक नेता ने तुरंत अपनी टिप्पणी दर्ज की और कहा- कहां कर्जमाफी? सेठ-साहूकारों की पार्टी है भाजपा, बकाया बोनस दे रही है, पार्टी यह समझती है कि रुका हुआ थोड़ा पैसा भी जब वापस आता है, तो उसका सुख तिजोरी में भरी संपत्ति से कहीं ज्यादा होता है….समझे ‘भाई साहब’…

चुनावी चुटकुला

चुनाव दो चरणों में होंगे

पहले वो आपके चरणों में होंगे…

फिर आप उनके चरणों में होंगे…