Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor

‘पानी-तेल’

सरकार, सरकार होती है और पार्टी, पार्टी. सरकार में पार्टी की आमतौर पर कोई जगह नहीं होती. पार्टी से चुने गए नेता सरकार चलाते हैं. संगठन का परामर्श पर्दे के पीछे जरूर हो सकता है. मगर हालिया चुनी गई साय सरकार से संगठन यानी पार्टी को अलग आंकने की भूल करना बड़ी गलती होगी. सरकार के कुछ निर्णयों पर संगठन ने आंखें तरेरने में बिल्कुल देरी नहीं की. नतीजा यह रहा कि सरकार भी अब कदम फूंक फूंक कर चल रही है. पिछले दिनों एक मंत्री की निजी स्थापना में एक पीए को रखे जाने का मामला सामने आया. संगठन के एक बड़े नेता की सिफारिश के साथ पीए बनने की ख्वाहिश लिए एक शख्स मंत्री के पास जा पहुंचा. पहली बार की विधायकी में ही मंत्री पद मिला था. ओहदे का भार संभाला ना गया. पीए के रूप में उस शख्स को रखे जाने पर मंत्री ने यह कहते हुए दो टुक मना कर दिया कि वह उन्हें पसंद नहीं. बात संगठन के नेता तक पहुंची. नेता ने कहा- मंत्रिमंडल में शामिल कई चेहरे उन्हें भी पसंद नहीं थे, लेकिन सामंजस्य बनाने के लिए रखना पड़ता है. चर्चा है कि इस मामले की जानकारी दिल्ली तक जा पहुंची. दिल्ली से मंत्री को तलब किया गया. मालूम पड़ा कि संगठन की सिफारिश पर मंत्री ने उस शख्स को ही पीए के तौर पर रख लिया है, जिसे नेता ने भेजा था. बहरहाल हकीकत यही है कि पानी में तेल कितना ही मिल जाए, फिर भी अलग ही रहता है. इसे मिलाने की कोशिश नहीं की जा सकती. व्यवस्था में सरकार पानी की जगह है, संगठन तेल की जगह. 

‘अंगद का पांव’

एक अफसर का पांव अंगद के पैर की तरह हो गया है. पिछली सरकार ने पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग दी थी. सूबे में नई सरकार आई, तो चर्चा छिड़ी की अब तब हटा दिए जाएंगे. मगर दो महीने बीत गए. हटाना तो दूर हटाने की कोई सुगबुगाहट तक नहीं दिखाई पड़ रही. यह हाल तक है जब पूरे राज्य से संविदा पदस्थ अफसर को हटाने की मांग जोर पकड़ चुकी है. इसलिए प्रशासनिक महकमे में लोग कहने लगे हैं कि अफसर ना हुए अंगद के पांव हो गए हैं. कुछ मातहत अफसरों की चर्चा में एक खबर फूट पड़ी. सुना गया कि बस्तर के किसी जिले में एक पोस्टिंग के ऐवज में संविदा अफसर ने 15 लाख रुपए मांगे. पोस्टिंग की दरकार जिला कलेक्टर को थी, मगर जब यह बात उन तक पहुंची, तो वह भी भौचक हो उठे. अब पूरी प्रशासनिक बिरादरी में इस बात का हल्ला मच गया है.  

‘राहुल की एंट्री’

सेंट्रल डेपुटेशन के दिनों में विष्णुदेव साय के केंद्रीय मंत्री रहते उनके अधीनस्थ अफसर रह चुके राहुल भगत की सीएम सचिवालय में एंट्री हो गई है. विष्णुदेव साय के शपथ लेने के बाद से यह चर्चा चल रही थी कि साय उन्हें अपने सचिवालय में लेंगे. भगत 2005 बैच के आईपीएस हैं. अनुभवी है. दिल्ली में रहते हुए वहां के नियम कायदों से वाकिफ रहे हैं, जाहिर है, साय को इससे मदद मिलेगी. राहुल भगत की एंट्री के बाद सचिवालय में अब तीन सचिव हो गए हैं. 2006 बैच के पी दयानंद और 2007 बैच के बसव राजू पहले से बतौर सचिव तैनात हैं. राज्य गठन के बाद यह पहला मौका है, जब किसी आईपीएस को सीएम सचिवालय का हिस्सा बनाया गया है. ब्यूरोक्रेसी में अब कहा जाने लगा है कि आईपीएस लाॅबी आईएएस के बराबर खड़ी हो रही है. जनसंपर्क आयुक्त के रुप में 2006 बैच के आईपीएस मयंक श्रीवास्तव काम कर ही रहे हैं. 

‘लौट रहे अमरेश’

2005 बैच के आईपीएस अमरेश कुमार मिश्रा की होम कैडर में वापसी हो रही है. फिलवक्त अमरेश ऐसे इकलौते अफसर होंगे, जिनकी प्रतिनियुक्ति अवधि पूरी होने के पहले ही केंद्र ने उन्हें रिलीव कर दिया है. साय सरकार की मांग पर केंद्र सरकार ने अमरेश कुमार मिश्रा की प्रतिनियुक्ति खत्म कर लौटने की इजाजत दी है. पिछले दिनों गृह विभाग ने केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखकर अनुरोध किया था कि अमरेश मिश्रा को रिलीव कर दिया जाए. अमरेश दंतेवाड़ा, कोरबा, दुर्ग और रायपुर जैसे जिलों में बतौर एसपी काम कर चुके हैं. 2019 में वह केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे. इस बीच उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी का भी रुख किया था. छह महीने पहले वह हार्वर्ड से लौटे थे. एनआईए में बतौर डीआईजी काम कर रहे थे. अमरेश की पहचान तेजतर्रार और साफ छवि के अफसर के रूप में की जाती है. राज्य की पसंद पर उनकी वापसी हो रही है, जाहिर है उन्हें महत्वपूर्ण भूमिका में लाया जा सकता है. चर्चा तेज है कि ईओडब्ल्यू-एसीबी में बतौर चीफ उनकी तैनाती की जा सकती है. 

‘एक अफसर और…’

ब्यूरोक्रेसी में अब ओ पी फार्मूला चलता दिख रहा है. बतौर ब्यूरोक्रेट 13 साल की लंबी पारी खेलने के बाद ओ पी चौधरी ने भाजपा ज्वाइन कर लिया था. भाजपा आते ही उन्हें टिकट मिली. चुनाव लड़े, लेकिन हार का सामना करना पड़ा. पांच साल की कड़ी मेहनत के बाद जीत मिली. सरकार में मंत्री बन गए. राज्य भाजपा संगठन में सबसे मजबूत चेहरे में एक चेहरे के रूप में अपनी पहचान बनाई. ओ पी के बाद कई अफसरों ने सियासी राह पकड़ी, मगर रिटायरमेंट के बाद. बहरहाल ब्यूरोक्रेसी में अब एक और अफसर नौकरी छोड़ अपनी राजनीतिक पारी खेलने की तैयारी में है. फिलहाल राजनीति कब से शुरू करनी है? इसका गुणा भाग चल रहा है. पचा चला है कि अफसर ने अपनी मंशा एक राजनीतिक दल के कई बड़े नेताओं के सामने जाहिर कर दी है. समाजिक समीकरण भी अफसर के पक्ष में है. दुर्ग संभाग से आने वाले अफसर की राजनीतिक समझ अच्छी मानी जाती है. चुनाव के वक्त अफसरों का एक बड़ा वर्ग जब यह कहता फिरता था कि 52 सीटों के साथ कांग्रेस की वापसी हो रही है, तब इस अफसर ने 55 सीटों के साथ भाजपा की सरकार बनने का दावा कई अलग अलग बैठकों में किया था. फिलहाल तो नौकरी चल रही है. देखते हैं कब सिसायत की गली में चौका छक्का लगाते दिखेंगे. 

‘जुबानी जंग’

लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाने के लिहाज से पिछले दिनों कांग्रेस की एक बड़ी बैठक हुई. प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट, पूर्व सीएम भूपेश बघेल, नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत, प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज सरीखे सभी बड़े नेता बैठक में मौजूद थे. इस बीच रायपुर लोकसभा के चेहरे का जिक्र छिड़ा. कहते हैं कि इस बीच एक बड़े नेता ने टिप्पणी करते हुए कहा कि रायपुर लोकसभा में अब तक सबसे कम अंतर से चुनाव हारने वाले नेता को टिकट दे दिया जाए. इस टिप्पणी पर एक दूसरे बड़े नेता ने तिरछी नजर से देखते हुए कहा, सभी वर्ग के लोग चुनाव लड़कर देख चुके हैं, मगर सफलता नहीं मिली. रायपुर लोकसभा में कबीरपंथी भी बड़ी संख्या में है. इसलिए आपकी संभावना ज्यादा है. आपको ही चुनाव लड़ना चाहिए. बैठक में कुछ पल की शांति छा गई, मगर जब खत्म हुई, तो सारे बड़े नेता दो बड़े नेताओं के बीच छिड़ी जुबानी जंग की चर्चा में मशगूल रहे…