Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor

‘विधायक की करतूत’

सरकार संभल-संभल कर चल रही है. किसी फैसले में कोई हड़बड़ी नहीं. पिच पर बैटिंग करने के लिए पूरे पांच साल सरकार के पास है. टेस्ट मैच में विकेट बचाकर चलने से पारी समाप्त होने तक बड़ा स्कोर खड़ा हो जाता है. इधर सरकार के एक विधायक यह भूल गए हैं कि वो जिस पिच पर बैटिंग करने उतरे हैं, वह 20-20 मैच की पिच नहीं है. टेस्ट पिच है. लंबा खेलने के लिए लंबा जमना पड़ता है. उन्हें विधायकी मिली, तो बरसो से जिस जमीन पर कब्जा करने की नियत पाल रखे थे, उसे अब साकार करने में जुट गए है. पूरी ताकत लगा दी है. जमीन पर कब्जा का जज्बा ऐसा है कि उनके इलाके में यह बात रायते की तरह फैल गई है, मगर इससे विधायक जी को कोई लेना देना नहीं. राजधानी के करीब की विधानसभा में विधायक के इस जज्बे की कहानी आला नेताओं तक पहुंच गई है. मुमकिन है कि अब तक घुड़की मिल गई होगी. लोकसभा चुनाव करीब है. कहीं विधायक का यह जज्बा भारी ना पड़ जाए. यह सोचकर नेता परेशान हैं. बहरहाल पूर्ववर्ती सरकार में राजधानी के एक नेता की नियत डोल गई थी. जिस जमीन पर नजर ठहर जाती उसे लेने पर आमादा हो जाते. सैकड़ों करोड़ की जमीन खरीद ली. दबा ली. सरकार चली गई. नेताजी का जमीन प्रेम विदाई की एक वजह रही.

‘सम्मान ‘कुर्सी’ का’

सरकार में कल कोई और था. आज कोई और है. कल कोई और होगा. ओहदे पर कल कोई और था. आज कोई और है और कल कोई और होगा. ओहदे पर बैठे व्यक्ति को जो सम्मान मिलता है, दरअसल यह सम्मान उस व्यक्ति का नहीं, बल्कि उस कुर्सी का है, जिस पर वह बिठाया गया है. इसलिए सम्मान का यह सिद्धांत कहता है कि व्यक्ति से भीड़ नहीं आती, कुर्सी से आती है. ओहदा है, तो भीड़ है. नहीं है, तो बस वहीं लोग साथ है, जो पहले थे. सूबे में नई सरकार बनने के बाद से कुछ चेहरे थे, जो इस भ्रम में थे कि फलां नेता या अफसर उनका करीबी है. ओहदा मिलने पर किसी नेता या अफसर का सीना जितना चौड़ा न हुआ होगा, उससे ज्यादा उन्हें करीबी समझने वालों का हो गया था. अब जब नेता ठेकेदारों में और अफसर खिदमतगारों में व्यस्त हो रहे हैं, तो लोगों का भ्रम टूट रहा है. टूटना भी चाहिए. पिछले दिनों सरकार के एक मंत्री एक जिले के दौरे पर गए. मंत्री ‘सरकारी’ थे. स्वागत के लिए मंत्री का इंतजार कर रहे कार्यकर्ता ‘संगठन’ के थे. मंत्री जैसे ही पहुंचे एक नेता ने कह दिया- भैया पांच घंटे से इंतजार कर रहे थे, बड़ी देर लगा दी. मंत्री ने तपाक से कहा- काम तुम्हारा है, तो इंतजार तुम्हे ही करना पड़ेगा. नेता के हाथों में रखे गुलदस्ते के फूल यह सुनते ही मुरझा गए. सत्ता में काबिज रही पिछली सरकार की विदाई का एक बड़ा कारण था. नेताओं-अफसरों का अहंकार. अहंकार टूट गया. ‘ओहदा’ छूट गया. खैर, व्यक्ति की प्रतिष्ठा विनम्रता और सदव्यवहार से होती है. हेकड़ी और रुआब दिखाने से नहीं.

‘एफआईआर’

कोयला और शराब घोटाला मामला अब जोर मार रहा है. पिछली सरकार के रहते-रहते ईडी की ओर से एसीबी को दिए गए एक आवेदन पर एफआईआर दर्ज की गई है. नेताओं, अफसरों-पूर्व अफसरों, कारोबारियों समेत 100 से ज्यादा नाम इस एफआईआर में शामिल हैं. संख्या बड़ी है, जाहिर है अब आने वाले कुछ महीनों तक एसीबी दफ्तर में भीड़ भाड़ रहेगी. पूछताछ के लिए लोग बुलाए जाते रहेंगे. इस बीच बड़ी बात यह है कि सरकार एसीबी में किस अफसर को बिठाएगी. चर्चा है कि बहुप्रतिक्षित आईपीएस लिस्ट के साथ-साथ या उसके आगे-पीछे एसीबी को नया चीफ दे दिया जाएगा. कोयला और शराब घोटाला दो बड़े मामलों पर प्रकरण दर्ज हुआ है, तो नए चीफ के सिर जांच का बड़ा बोझ होगा. अब जो इस बोझ को झेल पाए, वैसे अफसर की पोस्टिंग होगी. खबर है कि सरकार एडीजी स्तर के अफसर की नियुक्ति एसीबी चीफ के रुप में करने जा रही है.

‘और भी मामले..’

सिर्फ कोयला और शराब घोटाला मामले की जांच की जिम्मेदारी ही एसीबी के सिर नहीं होगी. चर्चा है कि आने वाले दिनों में डीएमएफ घोटाला, महादेव एप घोटाला, राशन घोटाला जैसे मामलों पर भी प्रकरण दर्ज किया जाएगा. अब भ्रष्टाचार की जांच के लिए राज्य की सबसे बड़ी एजेंसी तो एसीबी ही है. जाहिर है ऐसे में प्रकरण तो दर्ज होंगे ही. बीजेपी यह आरोप लगाती रही है कि डीएमएफ में बड़ा झोल हुआ. महादेव एप मामले को बीजेपी बड़ा राजनीतिक भ्रष्टाचार कहती रही है. एप चलाने वालों को राजनीतिक संरक्षण देकर एक्सटार्शन वसूलने का आरोप है. राशन घोटाला मामले पर बीजेपी आरोप लगाती रही है कि केंद्र के भेजे चावल में भ्रष्टाचार किया गया. केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने भी तत्कालीन सरकार पर इसे लेकर आरोप मढ़ा था. अब इतनी जांच होगी, तो एसीबी भी अपने आप को सीबीआई से कमतर नहीं आंकेगी.

‘सलाहकार कौन?’

पिछली सरकार की तर्ज पर इस सरकार में भी मुख्यमंत्री से राय मशविरा करने और उन्हें परामर्श देने के लिए सलाहकारों की नियुक्ति की चर्चा है. खबर है कि सरकार जल्द ही दो सलाहकारों की नियुक्त करने जा रही है. एक राजनीतिक और दूसरा मीडिया सलाहकार होगा. दोनों सलाहकार संगठन से भेजे जा रहे हैं. राजनीतिक सलाहकार के लिए अकलतरा के पूर्व विधायक सौरभ सिंह का नाम सबसे आगे है. सौरभ रणनीति बनाने और उसे क्रियान्वित करने में माहिर माने जाते हैं. चर्चा है कि पाॅलिटिकल क्राइसेस मैनेजमेंट के लिए संगठन पहले भी उनका उपयोग करता रहा है. त्रिकोणीय संघर्ष में फंसी अकलतरा सीट से इस बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन कहा जा रहा है कि उनकी राजनीतिक समझ की वजह से सरकार उनका बेहतर इस्तेमाल करना चाहती है. इसी तरह मीडिया सलाहकार के लिए पंकज झा का नाम सबसे आगे है. पंकज भाजपा की मुख पत्रिका दीप कमल के संपादक हैं. चुनाव के दौरान बनाई गई कई कमिटियों में वह बतौर सदस्य काम कर चुके हैं. सोशल मीडिया कंटेट वाली टीम की अगुवाई भी उन्होंने की थी. घोषणापत्र समिति में भी वह शामिल थे.

‘आईपीएस तबादला’

आईपीएस तबादले की तैयारी पूरी हो चुकी है. यदि कोई बड़ा उलटफेर नहीं हुआ, तो एक-दो दिन के भीतर तबादला आदेश जारी कर दी जाएगी. राज्य में सरकार बदलने के बाद से पुलिस बिरादरी इस बहुप्रतिक्षित आदेश का इंतजार कर रही है. चर्चा है कि एक दर्जन से ज्यादा जिलों के एसपी बदल दिए जाएंगे. कहते हैं कि तबादला सूची बनकर तैयार है, लेकिन डीजीपी को लेकर कोई स्पष्ट फैसला नहीं हो पाने की वजह से यह अब तक जारी नहीं हो सका था.