कैसे बिखरी कांग्रेस

इतिहास लौटकर आता है. एक पुरानी कहानी चुनावी नतीजों के साथ फिर से गूंज उठी. पन्ने उलटकर 2003 में जाकर थम गए. तब जोगी सरकार अपनी गौरव गाथा गाती सरकार बनाने का सपना संजो रही थी. मगर जब नतीजा आया, तो सब कुछ धाराशायी हो चुका था. सपने कोरे साबित हुए. तब भी कांग्रेस बीजेपी से नहीं लड़ रही थी. अब भी कांग्रेस का मुकाबला बीजेपी से नहीं था. कांग्रेस का मुकाबला खुद कांग्रेस से था. इस दफे कांग्रेस ने 35 सीटें जीती. 9 मंत्री चुनाव हार गए. प्रदेश अध्यक्ष को करारी शिकस्त मिली. यदि इन सीटों पर जीत मिलती तो कांग्रेस बहुमत के करीब जा पहुंचती. कांग्रेस में पसरी गुटबाजी ने बीजेपी की राह आसान बना दी. सत्ता की जागीरदारी हासिल करने कांग्रेस नेता एक-दूसरे को ही शिकस्त देने में जुट गए. एक विधानसभा का हाल यह रहा कि जिला संगठन ही मंत्री की कब्र खोदने में जुट गया. बकायदा एक एजेंसी हायर की गई. सर्वे कराया गया. मंत्री को बदनाम करने पार्टी सोशल मीडिया पर मंत्री की कारस्तानियों को उजागर करती रही. मंत्री दंभ भर रहे थे कि उनका मैनेजमेंट चुनाव जीता ले जाएगा. दंभ टूटा. चुनाव हारे. अब फट रहे हैं. अपने ही पार्टी के खिलाफ बयानों का हथौड़ा चला रहे हैं. जयसिंह अग्रवाल, बृहस्पत सिंह, विनय जायसवाल, मोहित केरकेट्टा के बयान सामने हैं. कुछ के देर से आएंगे. खबर है कि कई बड़े चेहरों को चुनाव हराने बड़ी रक़म उनकी विधानसभाओं में भेजी गई. एक सीनियर मंत्री के इलाक़े में तीन करोड़ रुपये भेजे जाने की सूचना है. कई और हैं जो दबी जुबान से आग उगल रहे हैं. मुमकिन है कुछ दिनों बाद ज्वालामुखी बनकर फट पड़ेंगे. बहरहाल सत्ता संभालते-संभालते संवरने की बजाए कांग्रेस पूरी तरह बिखर गई.

‘नोट छापने वाले नेताजी’

बरसो की मेहनत के बाद ले देकर टिकट मिली थी. भूपेश बघेल की मेहरबानी से एक निगम के चेयरमेन बन गए थे. खूब नोट छापे थे. जितने नोट छापे उसका एक छोटा हिस्सा चुनाव में लगा दिया. यह सोचकर कि नोट वोट में बदलेगा. मगर जनता होशियार निकली. नोट लिया मगर वोट नहीं दिया. खैर, चुनाव में हार जीत लगी रहती है. यहां दिलचस्प बात नोट छापने की है. चुनावी किस्सागोई के बीच एक चर्चा में यह मालूम चला कि एक निगम में चेयरमेन रहे नेताजी ने कमीशन का रेट आसमान तक पहुंंचा दिया था. बीजेपी की सरकार के वक्त 5 फीसदी का कमीशन तय था, नेताजी आसमानी ख्याल रखने वाले थे, सो कमीशन का रेट 5 से बढ़ाकर सीधे 20 फीसदी कर दिया. डायन भी पांच घर छोड़कर चलती है, लेकिन यहां हिसाब के पक्के नेताजी ने करीबी दोस्तों तक को नहीं छोड़ा. 20 फीसदी माने 20 फीसदी. दोस्तों के लिए भी एक टका कम नहीं किया. नेताजी के करीबियों की एक जमघट में जब यह चर्चा चली कि चेयरमेन बनने से लेकर अब तक नेताजी ने कितनी कमाई की होगी. तब लोग लगे हिसाब जोड़ने. कैलकुलेटर पर जोड़ घटाने के बाद जब अंतिम आंकड़े आए, तब सबकी आंख फटी की फटी रह गई. आंकड़ा सौ करोड़ के पार जा चला था.

चतुर कलेक्टर

कुछ कलेक्टरों ने कांग्रेस सरकार जाते-जाते अपना सीआर दुरस्त कर लिया. ऐन वक्त पर चतुराई ना बरतते तो लेने के देने पड़ सकते थे. हुआ कुछ यूं कि वोटों की गिनती चल रही थी. ईवीएम बीजेपी की पर्चियां उगल रही थी. सरकार जाता देख प्रभावशाली रहे एक पूर्व नौकरशाह हरकत में आ गए. सुनते हैं कि उन्होंने चार-पांच जिलों के कलेक्टरों को फोन कर नतीजे रोकने का फरमान सुनाया. ये ऐसी विधानसभा सीटें थी, जहां वोट का मार्जिन कम था. भरसक कोशिश की गई कि नतीजों में फेरबदल किया जा सके. मगर मौसम वैज्ञानिक अफसरों ने मौके की नजाकत भाप ली थी. पूर्व नौकरशाह की कोशिश धरी की धरी रह गई. वो दिन कुछ और थे, जब ऐसे फरमानों की तौहीन करने पर कलेक्टरी छीन जाती थी. कलेक्टरों ने कुर्सी बचाने में ही भलाई समझी. मालूम यह भी चला है कि एक जिले के कलेक्टर ने आखिरी गिनती के बाद नतीजों को जारी करने में थोड़ी ढिलाई बरती, तो सीधे एक केंद्रीय मंत्री का फोन चला गया. मिनट नहीं लगे नतीजे जारी करने में. अब इन कलेक्टरों को आस है कि नई सरकार उनका ख्याल रखेगी.

कलेक्टर कौन?

नई सरकार में सब कुछ नया होगा. पूरा प्रशासनिक ढांचा बदला-बदला नजर आएगा. मंत्रालय से लेकर जिलों तक आमूलचूल परिवर्तन की बयान बहती दिखेगी. फिलवक्त यह सवाल जोरों पर है कि कलेक्टरी की कतार में कौन-कौन होगा? जाहिर है सूबे में प्रशासनिक कसावट लाने की कवायद में बीजेपी काम करती दिखेगी, सो ऐसे अफसर फील्ड पर उतारे जाएंगे, जो लाॅ एंड आर्डर दुरस्त कर सके. योजनाओं के क्रियान्वयन में तेजी लाए. इन सबके बीच चर्चा है कि बीजेपी सरकार की नजर उन अफसरों पर पहले होगी, जिन्हें जानबूझकर हाशिये पर डाल दिया गया. वहीं कुछ अफसर ऐसे भी होंगे, जिनके काम का इनाम देने की बजाए बाबूगिरी में उलझा दिया गया. बहरहाल चर्चाओं में जो नाम इस वक्त सुनाई पड़ रहे हैं, उनमें डाॅ.गौरव सिंह, मयंक चतुर्वेदी, कुणाल दंडावत, राहुल वेंकट, अभिजीत सिंह, नम्रता गांधी, इंद्रजीत सिंह चंद्रवाल, संदीप विलास भोस्कर, दिव्या मिश्रा, अनुराग पांडेय, जगदीश सोनकर समेत कई नाम शामिल हैं. हालांकि कुछ जिलों में कलेक्टरी कर रहे अफसर जिन्होंने चुनाव में पर्दे के पीछे रहकर बीजेपी का साथ दिया या भारी दबाव के बीच आयोग के दिशा निर्देशों पर अड़े रहे, उन अफसरों को सरकार कंटीन्यू कर सकती है.

‘सलाहकार’ बनने का फार्मूला?

किस्म-किस्म के लोग नई सरकार में अपना जुगाड़ ढूंढ रहे हैं. जुगाड़ ढूंढने वाले एक शख्स को जब कोई रास्ता नहीं सुझा, तब उसने भूपेश बघेल के एक सलाहकार को फोन करना बेहतर समझा. यकीनन सोचा होगा कि सिस्टम में जगह बनाने का कोई गूढ़ रहस्य होता होगा. इसकी अपनी किस्म की कोई खास रेसिपी होती होगी. इस रहस्य को ढूंढते-ढूंढते उस शख्स ने सलाहकार से संपर्क साधा. फोन कर पूछा- सलाहकार बनते कैसे हैं? क्या इसके लिए किसी तरह का बायोडाटा देना होता है? संपर्क कैसे किया जाए? इस्तीफा दे चुके सलाहकार भी सकते में आ गए. एक बातचीत में सलाहकार ने अपनी पीड़ा किसी से जाहिर की. यह बताते हुए कि सलाहकार बनने का फार्मूला अब तक कईयों ने पूछ लिया है.

इंटेलीजेंस चीफ कौन?

सत्ता में काबिज होने वाली सरकार सबसे पहले चीफ सेक्रेटरी, डीजीपी के साथ इंटेलीजेंस चीफ बदलती है. चर्चा तेज है कि यदि डाॅ.रमन सिंह मुख्यमंत्री बनते हैं तो ऐसी सूरत में चीफ सेक्रेटरी के साथ-साथ डीजीपी भी कुछ वक्त के लिए कंटीन्यू किये जा सकते हैं. रमन सरकार के वक्त अमिताभ जैन वित्त संभाल चुके हैं. उनके करीबी अफसरों में शामिल रहे हैं. डीजीपी अशोक जुनेजा रमन सरकार के आखिरी वक्त में इंटेलीजेंस का जिम्मा संभाल चुके हैं. हालांकि चुनाव के वक़्त बीजेपी ने डीजीपी को हटाने लिखित शिकायत की थी. शिकायत को आधार माने तो डीजीपी बदले जा सकते हैं. ऐसी स्थिति में सीनियरिटी के क्रम में अरुणदेव गौतम का नंबर लग सकता है. चीफ सेक्रेटरी और डीजीपी के अलावा महत्वपूर्ण ओहदा इंटेलीजेंस चीफ का है. यह तय माना जा रहा है कि दिल्ली से लौटे अमित कुमार की इस पद पर ताजपोशी कर दी जाएगी. फिलहाल इंतजार की घड़ी है.

बडे़ फैसले

बीजेपी सरकार के गठन के साथ ही पहली कैबिनेट में कई बड़े फैसले होंगे. धान का समर्थन मूल्य 3100 रुपए करने का नीतिगत फैसला होगा. दो साल का बकाया बोनस दिए जाने के वादे पर मुहर लगेगी. इन सबके बीच एक बड़ा फैसला सीबीआई पर लगे प्रतिबंध को हटाने का भी लिया जा सकता है. बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में पीएससी घोटाले की जांच कराने का वादा किया है. बीजेपी इसकी जांच सीबीआई को सौंपने की पहल कर सकती है. साल 2018 में कांग्रेस सरकार बनने के फौरन बाद राज्य में सीबीआई के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. मुमकिन है कि बीजेपी इस प्रतिबंध को हटा दे.

अफसरों पर सख्ती

कुछ अफसरों के साहस को सलामी दी जानी चाहिए. आचार संहिता लगने के बाद जल जीवन मिशन में चार सौ करोड़ रुपये जारी कर दिया गया. चुनाव नतीजे आने के बाद एक अफ़सर ने बैक डेट पर 57 करोड़ रुपये का चेक काट दिया. इस पर पूर्व पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह को ट्वीट कर चेतावनी देनी पड़ गई. ज़ाहिर है बीजेपी ने ऐसे अफसरों की पूरी सूची बना रखी है. देखते हैं सूची धूल फाँकती रह जाएगी या उस पर अमल भी होगा.