‘सौ छेद’
मटके में जब सौ छेद हो जाए, तब एक छेद को भर देने भर से पानी का रिसना बंद नहीं हो जाता. शराब घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत पाने के बाद जिम्मेदारों के चेहरे खिले ही थे कि ईडी ने नया प्रकरण दर्ज कर दिया. ईओडब्ल्यू-एसीबी में दर्ज एफआईआर आधार बना. पूर्व आईएएस अनिल टुटेजा और उनके बेटे यश टुटेजा से ईओडब्ल्यू-एसीबी की पूछताछ जैसे ही खत्म हुई, बाहर बैठी ईडी ने निकलते ही धर लिया. इधर क्लाइमैक्स बदलते ही सुप्रीम कोर्ट के केस बंद किए जाने से जुड़ी जानकारी भी फूटकर बाहर आ गई. तत्कालीन आबकारी सचिव ने बड़ा खेल खेल दिया था. शराब घोटाले मामले की विभागीय जांच कराई और जांच रिपोर्ट में यह लिख दिया कि किसी तरह का घोटाला नहीं हुआ. नान घोटाले में पहले फंस चुके और अपने पैतरे से बाहर आए पूर्व आईएएस ने वहीं पुरानी चाल चली. आरटीआई से विभागीय जांच रिपोर्ट की नकल हासिल की और उसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट में अपने आप को पाक साफ बताने लगे. कहते हैं कि विभागीय जांच रिपोर्ट में दी गई क्लीन चीट देख सुप्रीम कोर्ट ने केस खत्म कर दिया. मटके में था तो सौ छेद. प्रकरण कहां खत्म होना था. इधर ईओडब्ल्यू-एसीबी की जांच तेज हो गई है. ईडी ने भी आरोपी पूर्व आईएएस और उनके बेटे को हिरासत में ले लिया है और उधर खबर आ रही है कि आबकारी विभाग नए सिरे से विभागीय जांच के लिए एक कमेटी बना रहा है. कमेटी में ऐसे अफसरों को शामिल किए जाने की खबर है, जो पूरे मामले का पोस्टमार्टम कर दम लेंगे. नप गए गुरु !
पॉवर सेंटर : चंदा..पर्ची..गुजरात फार्मूला..इनोवेटिव कलेक्टर..मुहर…- आशीष तिवारी
‘सो सैड’
पिछली सरकार में पर्दे के पीछे रहकर घपले घोटालों के मुख्य रणनीतिकार रहे एक पूर्व नौकरशाह पर भी शिकंजा कस सकता है. नौकरशाही में जब अव्वल पायदान पर थे, तब प्रस्तावित हाईवे के नजदीक जमीन खरीदी. उस जमीन के अधिग्रहण में भर-भर कर कमाया. सब घिरते रहे, ये जनाब बचते रहे. छापे जरूर पड़े, मगर तेज बुद्धि के थे, बच निकले. बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाती. नई सरकार के कई बड़े और प्रभावशाली नेताओं के रडार पर आ गए. अब चौतरफा घिरते दिख रहे हैं. इन सबसे बचने के लिए कुशाग्र बुद्धि वाले इस पूर्व नौकरशाह ने दिल्ली दौड़ लगाई है. कोर्ट कचहरी के लिए अच्छा वकील करने नहीं, भाजपा में शामिल होने का जुगाड़ ढूंढने. राज्य के नेताओं से बात बनती नहीं, तो सोचा होगा दिल्ली की रेस से शायद कुछ हासिल हो जाए. सुनाई पड़ा है कि मोटा माल खर्च करने तक तैयार थे, मगर दिल्ली के नेताओं ने छटक दिया. मायूस चेहरा लिए फिलहाल लौट आए हैं. एक भाजपा नेता ने इस पर टिप्पणी में कहा कि दूसरे दलों से पार्टी में आए कई नामचीन नेताओं पर सैकड़ों नहीं, बल्कि हजारों करोड़ रुपयों के भ्रष्टाचार के संगीन आरोप थे. बड़ी-बड़ी जांच एजेंसियां पीछे पड़ी थी, लेकिन भगवा गमछा पहनने के बाद सब ठीक हो गया. पूर्व नौकरशाह यही सोचकर दिल्ली दौड़ पड़े होंगे. नौकरशाही में आने के पहले साहब मैथ्स का फार्मूला हल किया करते थे. मैथ्स में कई तरह के फार्मूले अप्लाई किए जाते हैं. उन्होंने भी यह फार्मूला अप्लाई किया. खुद फीट रहने का नुस्खा बताते फिरते हैं, उनका यह फार्मूला फीट नहीं हुआ. सो सैड….
पॉवर सेंटर : बरबेरी…गले की हड्डी…ईओडब्ल्यू चीफ !…मंत्री कौन !…एक थे ‘माथुर’…विदाई…- आशीष तिवारी
‘अमन चैन’
आय से अधिक संपत्ति के मामले में पूर्व सीएम डॉ.रमन सिंह के प्रमुख सचिव रहे अमन सिंह के खिलाफ दर्ज एफआईआर कोर्ट ने बंद कर दिया है. ईओडब्ल्यू-एसीबी की क्लोजर रिपोर्ट के बाद कोर्ट का यह फैसला आया है. पिछली सरकार ने सत्ता में आते ही जरूरी कामकाज से ध्यान हटाकर सारा जोर ‘एफआईआर’ और ‘एसआईटी’ पर लगा दिया था. पांच साल सरकार चली. एक भी प्रकरण अपने माकूल ठिकाने तक नहीं पहुंचा. कुछ मामलों की शुरुआती जांच में कोई ओर छोर नहीं मिला और कुछ प्रकरण कोर्ट की दहलीज पर जाने के बाद धूल खाते पड़े रहे. सरकार चली गई. नई सरकार आ गई. सरकारों को यह समझना चाहिए कि रिवेंज फुल एटीट्यूड उनका हिस्सा है ही नहीं. नीति बनाना. एक्जिक्यूट करना सरकारों की प्रायोरिटी होती है. खैर, पिछली सरकार में जिन-जिन लोगों के खिलाफ प्रकरण दर्ज करवाया गया था. वह सब अब ‘अमन चैन’ से हैं. नींद उन सबकी उड़ी हुई है, जिन्होंने सत्ता को अपनी जागीर समझने की गलती कर दी थी.
‘मंत्री की ख्याति’
पिछली सरकार ने भ्रष्टाचार के नायाब उदाहरण पेश किए. कुछ नये तौर तरीके अपनाए गए थे. जिन तरीकों पर सरकारों को ऐतराज होता रहा, बेधड़क उन्हें अमल में लाया गया. एक नई व्यवस्था खड़ी हो गई. पिछली सरकार ने शुरू किया. सूबे की नई सरकार के कुछ चेहरों ने उसे अपना लिया. ऐसा नहीं है कि इन सब तौर तरीकों का वजूद पहले कभी नहीं रहा. छुप छुपाकर किया जाता था. बहरहाल, सरकार के एक मंत्री अवैध रेत खनन के कारोबार में इतने डूब गए हैं कि उनके क्षेत्र में उनकी इस ख्याति का उन्हें भान तक नहीं है. मंत्री का बेटा अवैध रेत खनन के कारोबार में खूब नाम कमा रहा है. मंत्री हैं, तो इलाके के अफसरान का भरपूर साथ मिल रहा है. अब क्या ही किया जा सकता है. विपक्ष की इतनी हैसियत नहीं रह गई है कि इस पर चीखना-चिल्लाना कर सके. रेत के बारीक कण भी यह सब देखकर आह भरते होंगे. कहते होंगे हमारी कीमत का सही मोल अब जाकर लग रहा है.
‘एक साय ऐसे भी’…
राजनीति में भाग्य की बड़ी भूमिका है. मेहनत तो सभी करते हैं, मिलता भाग्य से है. राजनीति में नंदकुमार साय को भरपूर मिला. कुछ नहीं मिला तो सुकून. भाजपा में थे तो बेचैन थे. कांग्रेसी हो गए. सरकार बदली, तो अब हाशिए पर हैं. जिस दौर में कांग्रेस छोड़ छोड़कर नेता भाजपा में कूद रहे हैं. नंदकुमार साय किनारे खड़े शायद अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. पिछले दिनों की बात है. काले शीशे वाली गाड़ी में बैठ साय भाजपा कार्यालय पहुंचे थे. संगठन के आला नेताओं से बंद कमरे में उनकी बातचीत हुई. बाहर चर्चा छिड़ गई कि साय वापसी की बांट जोह रहे हैं. चर्चा महज चर्चा तक सिमट कर रह गई. साय का कद बड़ा था. भाजपा के सबसे बड़े आदिवासी चेहरों में से एक. भाजपा का होकर रहते, तो शायद ‘साय सरकार’ में उनकी हैसियत बड़ी हो जाती. मगर राजनीति कब किस करवट बैठ जाए कोई नहीं जानता.
‘पायलट’
चुनावी तैयारी में भाजपा कांग्रेस से कहीं ज्यादा आगे दिख रही है. अगला पूरा हफ्ता शीर्ष भाजपा नेताओं के दौरों से भरा होगा. प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा, योगी आदित्यनाथ के मैराथन दौरे तय हैं. मोदी, शाह, नड्डा की रात छत्तीसगढ़ में बीतेगी. महज 11 सीटों वाले राज्य में भाजपा की ताकत बताती है कि एक-एक सीट कितनी मायने रखती है. उधर कांग्रेस की हालत यह है कि प्रभारी को ही फुर्सत नहीं कि वह अपनी खुद की सभा करा लें. आलम यह है कि प्रभारी का दौरा तब हो रहा है जब किसी बड़े नेता की रैली तय हो रही है. राहुल गांधी आए तब उन्होंने शक्ल दिखाई और अब प्रियंका गांधी आ रही है, तो माननीय आ पहुंचे हैं. राजनीति में दिखते रहने का फार्मूला लागू होता है. जो दिखेगा, वो बिकेगा. यहां बिकने वाला ही तैयार नहीं, तो खरीदने वालो की भीड़ कैसे सजेगी. पायलट बनकर आए हैं, तो उड़ान में तेजी भी लानी होगी.