Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor

बरबेरी 

मंत्रियों की कानाफूसी तक की निगरानी जब दिल्ली से हो रही हो, तब महंगे शौक का सार्वजनिक प्रदर्शन करना साहस का काम है. एक मंत्री के महंगे शौक ने हर सुनने वाले के कान खड़े कर दिये. मालूम पड़ा है कि मंत्री की तस्वीरों को उनके चाहने वालों ने दिल्ली भेज दिया है. अब इस पर आंखें तरेरी जाएगी या फिर नजरअंदाज कर दिया जाएगा पता नहीं. मसला ये है कि पिछले दिनों एक कार्यक्रम में मंत्री के शॉल पर सहसा कुछ लोगों की नजर ठहर गई. जिनकी नजर पड़ी, वह ब्रांड कांसेस थे. पता चला कि मंत्री का शाॅल अंतरराष्ट्रीय ब्रांड बरबेरी का है. एक तबका होता है जिसकी ब्रांड पर पीएचडी होती है. उस तबके ने शॉल की कीमत गूगल करनी शुरू कर दी. कीमत करीब लाख रुपए के आसपास थी. चर्चा मंत्री की पृष्ठभूमि पर जा ठहरी थी. मंत्री ने तंग जेब से चुनाव लड़ा था. खैर, सत्ता के किरदारों को इस बात का एहसास होना चाहिए कि उनकी सियासत की उम्र तय करने का अब एक ही पैमाना रह गया है, जमीन पर बने रहना. जो जितना नीचे होगा, उसका कद उतना ऊंचा होगा. बहरहाल नेताओं का ब्रांड प्रेम नया नहीं है. लुई विटाॅन के मफलर ने पार्लियामेंट में कांग्रेस के एक बड़े नेता की खूब फजीहत कराई थी. अमीरी गरीबी का फर्क बताते वक्त उन्होंने गले में लुई विटॉन का मफलर टांग रखा था. बरबरी का टी शर्ट पहले एक दूसरे नेता की तारीफ में सोशल मीडिया पर जमकर कसीदे गढ़े गए थे. गिवेंची का लाख रुपए का जूता पहन एक नेता सदन में गरीब किसानों की पैरवी करते थे.  

गले की हड्डी 

नियम कानून की पक्की एक आईएएस मंत्री के गले की हड्डी बन गई है. न निगलते बन रहा है, न उगलते. कामकाज की मॉनिटरिंग इतनी कसी हुई है कि मंत्री चाहकर भी कुछ कर नहीं पा रहे. शुरुआती दौर में जब विभाग की जिम्मेदारी मिली थी, तब मंत्री ने अफसर की खूब सराहना की. यह कहते हुए कि उनकी टीम में काबिल अफसर हैं. मंत्री का हर दिन अब ऊपर वाले से इस गुजारिश में बीत रहा है कि कोई ऐसा अफसर आ जाए, जो उनकी बिगड़ी बना दे. चंद लोगों की मौजूदगी में मंत्री ने अपनी एक टिप्पणी में कहा ”मेरे साथ के कई मंत्री मुझ पर हंसते हैं कि मैं कुछ कर नहीं पा रहा”. बताते हैं कि मंत्री के मौखिक निर्देश पर नोटशीट मांग ली जाती है. अब मंत्री करे तो करे क्या? राजनीति में हर कहे पर नोटशीट थोड़े ही चलती है. कुछ काम इशारों में भी होता है. फिलहाल मंत्री यह सोचकर खुद को थोड़ी राहत दे देते हैं कि इस आईएएस के रहते यह तो तय है कि विभाग में गड़बड़ी की कोई गुंजाइश नहीं. लोकसभा चुनाव सिर पर है. मंत्री सोचते होंगे कि एक बार यह चुनाव बीत जाए फिर देखते हैं. 

ईओडब्ल्यू चीफ !

ईओडब्ल्यू में शराब-कोयला जैसे घोटालों पर एफआईआर दर्ज हुई. शराब मामले पर एक छापा भी पड़ा. कुछ मिला नहीं. टीम बैरंग लौट आई. कुछ नहीं मिलने की भी अपनी अलग कहानी है. लोगों ने कहा कि छापे की जानकारी एक दिन पहले से ही उन लोगों को थी, जहां-जहां छापे पड़ने थे. छापे के कुछ दिनों बाद पूरी की पूरी यूनिट एक आर्डर में बदल दी गई. नई टीम आ गई है. अब नई टीम का मुखिया लाए जाने की चर्चा है. नाम तय है. बस आदेश का इंतजार है. नए मुखिया सिंघम सरीखे हैं. काम करने का अपना तरीका है. तेजतर्रार हैं. अब जिस तरह के घोटालों पर प्रकरण दर्ज हुआ है, उसमें कई रसूखदारों के नाम शामिल हैं. अफसर तेजतर्रार न हुआ, तो प्रकरण फाइलों में दबकर धूल खाती पड़ेगी. वैसे भी ईओडब्ल्यू-एसीबी का रिकॉर्ड उठाकर देख लें, तो मालूम चलेगा कि नब्बे फीसदी मामले कोर्ट कचहरी की वजह से अटके पड़े हैं. फाइलों पर धूल जमने से पहले उसका निराकरण करना यहां की बड़ी चुनौती है. देखते हैं, इस चुनौती को कैसे साधा जाता है. पिछली सरकार ने भी ईओडब्ल्यू-एसीबी का खूब इस्तेमाल किया, मगर अखबारी सुर्खियों के इतर कुछ हुआ नहीं. वजह कोर्ट कचहरी बताई गई. फाइलों में धूल जम जाने से उसके भीतर लिखी कहानी मिट नहीं जाती. बस क्लाइमैक्स रह जाता है. नए दर्ज हुए प्रकरण में नए साहब जांच पड़ताल के बाद कैसा क्लाइमैक्स लिखेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा. 

मंत्री कौन? 

राजनीति में चेला कब गुरु बन जाए कोई नहीं जानता. साय सरकार को देखने पर यह समझना आसान हो जाता है. गुरु, गुरु नहीं रहा, चेला मंत्री बनकर गुरु हो गया है. मगर राजनीति ही एक ऐसी जगह है, जहां संभावनाएं कभी खत्म नहीं होती. सरकार में मंत्री का एक पद खाली है. एक खाली हो सकता है. पार्टी अपने अजेय योद्धा बृजमोहन अग्रवाल को लोकसभा लड़ा रही है. जीत मिली, तो सांसद बन जाएंगे. किस्मत ने साथ दिया, तो केंद्रीय मंत्री भी बन सकते हैं. इधर साय मंत्रिमंडल में खाली पद एक से बढ़कर दो हो जाएगा. एक पद के लिए दुर्ग विधायक गजेंद्र यादव का पलड़ा भारी दिख रहा है. गजेंद्र यादव के मजबूत पक्ष की दो वजह है. एक उनका संघ पृष्ठभूमि का होना. वह संघ के प्रांत प्रचारक रहे बिरसा राम यादव के बेटे हैं. दूसरा जातिगत समीकरण. क्वांटिफाइबल डाटा आयोग की रिपोर्ट में राज्य में साहू समाज के बाद सबसे ज्यादा संख्या यादव समाज की है. मंत्रिमंडल के दूसरे खाली पद के लिए चेहरा चुना जाना पार्टी के लिए टेढ़ी खीर है. कई पुराने-नए चेहरों के बीच से चुना जाना है. अमर अग्रवाल, राजेश मूणत, अजय चंद्राकर, धरमलाल कौशिक जैसे सीनियर्स क्यू में हैं. बृजमोहन अग्रवाल का रिप्लेसमेंट ढूंढा गया तो यकीनन इन नामों पर एक बार विचार तो होगा ही. वैसे यह भाजपा का नया वर्जन 2.0 है, यहां कौन, कहां और कब बैठेगा, यह दो लोग ही तय करते हैं. फिलहाल दोनों लोकसभा में व्यस्त है. चुनाव बाद जब वक्त मिलेगा, तब इस बात पर फैसला होगा कि कौन होगा मंत्री? तब तक की सारी बातचीत सिर्फ कयास ही है. 

एक थे ‘माथुर’

भाजपा प्रदेश प्रभारी ओम माथुर की गैर मौजूदगी कई कहानियां गढ़ रही है. लोकसभा चुनाव की रणनीति बन गई. टिकट बंट गई. चुनाव के वादे पूरे करने बड़े आयोजन हो गए. मगर जीत के शिल्पियों में से एक रहे ओम माथुर नदारद ही रहे. भाजपा ने लोकसभा चुनाव का प्रभारी नितिन नबीन को बना दिया है. आधिकारिक तौर पर तो वह अब तक प्रदेश के सह प्रभारी ही है, लेकिन संकेत है कि जल्द ही उन्हें राज्य संगठन का पूर्णकालिक प्रभार सौंप दिया जाएगा. गैर मौजूदगी की असल कहानी वक्त के साथ बाहर आ ही जाएगी. फिलहाल हालात कुछ यूं दिख रहे हैं कि भाजपा में आने वाले दिनों में यह चर्चा सुनी जाएगी कि एक थे ‘माथुर’. वैसे ओम माथुर भाजपा के लिए लकी चार्म है, जिस-जिस राज्य में प्रभारी बनकर गए पार्टी ने जीत दर्ज की. 

विदाई

तबादला करना एक अफसर की विदाई का कारण बन गया. राजस्व विभाग में बड़ी संख्या में तहसीलदार और नायब तहसीलदार के तबादले हुए. यह तबादला तब हुआ जब इस पर प्रतिबंध लगा हुआ है. प्रतिबंध की स्थिति में समन्वय से तबादले होते हैं. मुख्यमंत्री का अनुमोदन लिया जाता है, मगर यहां बगैर अनुमोदन आदेश जारी हो गया. चुनाव आयोग के निर्देश को वजह बताकर विभागीय मंत्री का अनुमोदन लिया और आदेश जारी कर दिया. इधर तबादला आदेश आया, उधर सरकार ने इस पर अपनी आंखे तरेर दी. तबादला करने वाले अफसर का ही तबादला हो गया. फिलहाल बगैर विभाग रखा गया है. लोकसभा चुनाव करीब है. लगता नहीं की चुनाव के पहले पुनर्वास होगा.