(सुधीर दंडोतिया की कलम से)

बड़ा खेला है..नींद से जागे साहब…

चुनाव आयोग हो या प्रशासन… नेताओं की कारिस्तानी दोनों को मात दे रही है। ऐसा इसलिए, क्योंकि पहले चरण की लोकसभा चुनावी सीट का गणित अंतिम चरण की सीटों पर आजमाया जा रहा है। दरअसल, पहले फेस की एक लोकसभा सीट जो मां नर्मदा किनारे और आदिवासी बाहुल्य थी, वहां आदिवासी वोटरों के लिए मीट एंड लिकर पॉलिसी पर काम किया। सैकड़ों नहीं हजारों की संख्या में जिंदा पशु आदिवासियों गांव में सामूहिक रूप से दिए गए। वैसा ही कांड अब मालवा और निमाड़ की दो सीटों पर हो रहा है। वैसे यहां जंगली सुअर नहीं बल्कि कड़कनाथ की गूंज है।

एमपी के बड़े आबकारी टाइप के अधिकारी

सीजन तो चुनावी और यूं कहे कि चलती की बेरा। ऐसे में नेताओं के चहेतों के अफसरों को भी राजनीतिक जिम्मेदारी पर्दे के पीछे मिल ही जाती है। साफ तौर पर एमपी ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर के तीन बहुत बड़े कद के नेताजी के लिए दो आईएएस और पांच आईपीएस अफसरों ने निष्ठावान कार्यकर्ता के रूप में जिम्मेदारी निभाई। दोनों आईएएस अधिकारी मंत्रालय, दो सीनियर आईपीएस पीएचक्यू तो बाकी तीन जिलों में कमान संभाल रहे हैं। वैसे अफसरों का आबकारी मिजाज का होना कोई बड़ी बात नहीं। लेकिन, नेताओं के लिए चुनाव में बड़े स्तर पर आबकारी अफसर की भूमिका अदा की। पेटियां की पेटियां उठाने से लेकर सीमा क्षेत्र तक पहुंचाने में गजब की भूमिका। वैसे निगरानी आयोग के पास जानकारी तो हैं। वैसे सब ऑल इस वेल है…

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चुनावी चाल, हसीन बालाएं और कहानी…

मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनावों में इस बार अलग अलग सियासी रंग दिखाई दिए। हर तरीके से नेताओं ने जोर आजमाइस कीं। लेकिन, कुछ राज ऐसे हैं जो पर्दे के पीछे नहीं बल्कि होटलों के कमरे में छिपे हुए हैं। मामला भले ही दो लोकसभा से जुड़ा हो पर शहर तो एक है। रंगीन रातों का तेज रफ्तार शहर। इस शहर की एक आलीशान होटल में चुनावी गणित के बड़े उलटफेर के करीब 10 दिन पहले शराब और शबाब की इबारत रची गई। गुलजार रात कहे या सियासी चाल। चाल में चरित्र कैद हुआ। लिहाजा कदम भी उलटे चलने को मजबूर हुए। सियासी रामायण का विभीषण का राज तिलक 04 जून के बाद होना है।

उधर डांट पड़ी, इधर अकल ठिकाने आई

चाय से अधिक केतली गर्म हो ही जाती है। ऐसा ही कुछ एक प्रॉपर्टी ब्रोकर के साथ हो गया। भोपाल से बाहर एक जिले में पोस्टेड आईएएस अधिकारी ने प्रॉपर्टी को करके जारी भोपाल में एक प्रॉपर्टी की डील की। अब अफसर जो ठहरे, बिना एग्रीमेंट किए 50000 रुपए प्रॉपर्टी मलिक के खाते में डाल दिए। प्रॉपर्टी मालिक भी सचेत निकला। खाते में पैसे आते ही प्रॉपर्टी मलिक ने एग्रीमेंट करने का प्रेशर बना दिया। यह बात प्रॉपर्टी डीलर को नागवारा गुजरी और उसने प्रॉपर्टी मलिक को यह कहते हुए चमकाने का प्रयास किया कि साहब ऐसे वैसे IAS नहीं कलेक्टर हैं। प्रॉपर्टी मालिक भी पहुंच वाला था, तो पलक झपकते ही साहब की कुंडली निकालकर प्रॉपर्टी मलिक को बता दी, शिकायत भी कर दी। फिर क्या था साहब ने भी प्रॉपर्टी मलिक को यह कहते लताड़ लगा दी कि सब कुछ नियमावली से ही करवा दो, प्रॉपर्टी मलिक भी हाई प्रोफाइल है, कहीं भी उलझा देगा। अब ब्रोकर प्रॉपर्टी मालिक से ऐसी बातचीत कर रहा है, जैसी एक प्रॉपर्टी ब्रोकर को करना चाहिए।

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बिल थमाए है तो थमाए कैसे

मामला आबकारी विभाग के एक अफसर का है। साहब का जिम्मा जिस इलाके का है, उनका निवास भी उसी इलाके में ही है। अब साहब आए दिन पारिवारिक मित्रों के साथ दोस्तों के परिजन को लेकर पब कम रेस्टोरेंट पहुंच जाते हैं। साथ में पूरा परिवार होने से कोई ड्रिंक की डिमांड तो नहीं करता लेकिन खाने-पीने में किसी तरह की कसर नहीं छोड़ी जाती। साहब मंडली के साथ आते हैं, खाते पीते हैं और बिना बिल दिए चले जाते हैं। दो-चार बार तो ऐसा हुआ लेकिन अब यह बात हफ्ता 15 दिन में होने लगी है। इस बात को लेकर पब कम रेस्टोरेंट संचालक नाराज तो है, लेकिन कुछ कह नहीं पता, उसे पता है कि साहब नाराज हुए तो पब संचालित करना मुश्किल हो सकता है।

मतदाताओं को थमा दी नकली हीरे की अंगूठी

नेता तो नेता, लेकिन अफसरों ने भी मतदाताओं को छलने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। भोपाल लोकसभा चुनाव में 7 मई को तीसरे चरण का मतदान हुआ। प्रशासन ने वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने के लिए कई कोशिश की थीं। मतदाताओं को एक लकी ड्रॉ में डायमंड रिंग जीतने का ऑफर दिया गया। जिला प्रशासन और व्यापारी संघ ने मिलकर लकी वोटर्स को डायमंड रिंग गिफ्ट करने का फैसला किया था। शाम को लकी ड्रॉ में 4 लोगों को डायमंड रिंग दी गई। डायमंड रिंग एक बैरागढ़ ज्वेलर्स के बॉक्स में थीं। विनर्स ने जब रिंग की जांच कराई तो ये अंगूठियां नकली निकलीं। मामला जिला निर्वाचन अधिकारी तक पहुंचा तो प्रशासन हरकत में आया और नकली अंगूठी वापस लेकर विजेताओं को असली हीरे की अंगूठी दी गई।

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