(सुधीर दंडोतिया की कलम से)
सहमति तो बनी, लेकिन ड्यूटी लगे तब तो कहला पाएं वजनदार
मध्य प्रदेश में चुनाव संपन्न होने के बाद प्रदेश बीजेपी का वजनदार नेता वो है तो दूसरे प्रदेशों में प्रचार करने जा रहा है। दूसरे प्रदेशों में पार्टी के नेताओं की ड्यूटी लगी तो एक नेताजी कुछ ऐसा ही समझ बैठे। फिर क्या था सलाहकारों की सलाह पर नेताजी पहुंच गए दिल्ली और हाईकमान से मान मनौव्वल करके खुद कोे प्रदेश से बाहर भेजने पर सहमति बना ली। दिल्ली से लौटकर नेताजी समझे थे अब तो वजनदार हो ही गए, लेकिन दस दिन बाद भी अब तक नेताजी की चुनावी ड्यूटी नहीं लगी है। अब समर्थक कहते फिर रहे हैं कि ड्यूटी लगे तब तो पता चलेगा कि नेताजी वजनदार हैं।
चमकने के लिए बदल दिया वास्तु
मध्य प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में वास्तुदोष बदलने का मुद्दा पिछले दिनों जोर-शोर से गूंजा। पीसीसी में चल रहे सफाई अभियान और पुताई के बीच इस खबर की चिंगारी उठीं तो मीडिया विभाग से साफ शब्दों में कह दिया गया कि प्रवक्तागण इससे किनारा करेंगे। लेकिन कुछ लोगों को चमकने की ऐसी चाह थी कि इस विषय पर प्रतिकियाएं दे डालीं। नतीजा यह हुआ कि दोपहर तक यह चिंगारी खबरों का रूप धारण कर चुकी थी और मामला बढ़ता देख मीडिया विभाग के प्रमुख से लेकर पीसीसी चीफ तक को पूरे मामले में सफाई देनी पड़ गई।
मंत्री बनने का सपना लेकिन चुनाव से डर
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के तीन विधायकों ने पार्टी छोड़ी जिसमें से एक ने विधायक पद से इस्तीफा दिया। जबकी दो विधायकों का अबतक कुछ भी साफ नहीं है वो अगला कदम क्या उठाएंगे। लेकिन तीन विधायकों में से एक विधायक जी इस वक्त बैचेन है क्योंकि उन्हें लगता है कि 4 जून के रिजल्ट के बाद वो मंत्री बन जाएंगे। लेकिन उनकी सदस्यता पर सवाल बरकरार है। वो चाहते हैं कांग्रेस उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दें। जिसके बाद वो दलबदल कानून के पचड़े से बच जाएंगे। लेकिन कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि जब ये विधायक पार्टी छोड़कर गए थे तब पार्टी से बाहर करने पर विचार हुआ था लेकिन अब नहीं, इन्हें बाहर का रास्ता नहीं दिखाया जाएगा। अगर बागी विधायक को मंत्री बनना है तो चुनाव लड़ना ही पड़ेगा नहीं तो सिर्फ विधायक रहते ही दिन काटने पड़ेंगे जैसे सचिन बिड़ला ने काटे थे।
साहब मेहरबान तो साला धनवान…
कहावत तो आपने सुनी होगी..अल्ला मेहरबान तो गधा पहलवान। नगरीय विकास एवं आवास विभाग से निकली हम आपको नई कहावत से रूबरू कराते हैं। वो ये कि साहब मेहरबान तो साला धनवान। दरअसल, साहब की मेहरबानी के किस्से तो मंत्रालय और खासकर माध्यम में सामाजिक संगठन मतलब एनजीओ के कामों को लेकर भी मशहूर हैं। इस बार साहब ने प्रतिमाह अरबों के विभाग यूएडीडी को पकड़ा है। हालांकि पहले भी यहां साहब की अच्छी पकड़ रही है, लेकिन इस बार विदेश से मैनेजमेंट पढ़कर भारत आए साले पर मेहरबानी है। साले साहब को एक कंपनी में पार्टनर बनाने का काम भी बड़े औदे के साहब ने ही किया। अब कई जिलों में कलेक्टरी का अनुभव तो काम आता ही है। हां..एक बात और यहां…अदाएं कातिल हों तो फिदा कोई भी हो ही जाता है।
अंदर की खबर से अंदर खेमे में गर्म है माहौल
लंबे समय से लोकसभा चुनावी माहौल में ठंडे पड़े मंत्रालय में अब चर्चाओं का माहौल गर्म है। यहां आईएएस और राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों की लॉबी में अंदर की खबर से कुछ खलबली है। अंदर की खबर यह है कि आचार संहिता के बाद फिर तबादले होंगे। खबर यह भी है कि सरकार का कदम सर्जरी से ज्यादा सर्जिकल स्ट्राइक के तौर पर होगा। विधानसभा चुनाव के बाद नई सरकार ने पीएस से लेकर कलेक्टरों की नई जमावट और जिम्मेदारी तय की थी। वैसे खबर यह भी है कि दिल्ली से एक दमदार अफसर भी वापसी में लगे हुए हैं। उधर, हिंदी अच्छे से न बोलने वाले अफसरों में नई जमावट को लेकर कदम भी आगे बढ़ाए हैं।
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