(सुधीर दंडोतिया की कलम से)

कोई नहीं चाहता नाम चलाना

बात सत्ताधारी दल की है. इस दल के बारे में कहा जा रहा है कि जिसका नाम चला उसका पत्ता कटना तय. संगठन चुनाव की बारी आई तो कई नाम चर्चा में आ गए. जिनके नाम चले सबने अपने-अपने नाम की चर्चा रुकवाने के लिए पूरा जोर लगाया. कारण एक ही कि जिसका नाम चला, उसका पत्ता कटना तय है.

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मुख्यालय में चाय से ज्यादा केतली गरम

वाक्या आंखों देखा है. सम्भाग मुख्यालय वाले जिले में एंटर हुए तो कार्यक्रम के मुख्य द्वार से अपनी गाड़ी को पहले एंटर करने के फेर में पुलिस और अहम विभाग की गाड़ी टरकाते टकराते बच गईं. मौके पर मौजूद पुलिस भी असमंजस में पड़ गई कि इस टकराव के बीच क्या करें. बाद में एक-एक कर गाड़ियां आगे बडीं तो पुलिस ने माथा पकड़ लिया, क्योंकि दोनों ही वाहनों में कोई अफसर नहीं बैठा था. कार्यक्रम के बाद तो और भी बड़ा मामला हो गया. इस बार अपनी गाड़ी पहले आगे करने के लिए वाहन चालकों ने संभागायुक्त और आईजी की गाड़ी को ही आपस में थोक दिया और इस बार भी वाहनों में कोई अफसर नहीं था.

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50 लाख का दर्द, नहीं तो हो जाता खेल!

लंबे अरसे के बाद मध्य प्रदेश कांग्रेस के खेमे में खुशी है और खुशी हो भी क्यों ना विजयपुर में पार्टी को विजय मिली है वो भी मंत्री को चुनाव में हराया है. जीत के साथ कांग्रेस में एक दर्द भी है बुधनी उपचुनाव क्लोस मार्जिन से हारने का. एमपी कांग्रेस के जितने भी पटिए बतोले के लिए मशहुर है, वहां पर इस वक्त एक ही बात चल रही है प्रत्याशी 25, 50 लाख खर्च कर देते तो सीट निकल सकती थी. लेकिन कार्यकर्ताओं को समझाएं कौन की जीत का कॉन्फिडेंस था ही नहीं तो खर्च क्यों कर देते.

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पुलिस विभाग में श्रेय की लड़ाई, देखते रह गए नीचे के अधिकारी

भोपाल में पिछले कुछ दिनों में डिजिटल अरेस्ट और साइबर क्राइम ठगी को लेकर बड़ी कार्रवाई की गई और इसका श्रेय भोपाल पुलिस को मिला भी लेकिन डिपार्टमेंट में ही इसको लेकर खींचतान है नीचे जमे अधिकारियों का कहना है मेहनत करी हमने वाहवाही लूटी किसी और ने पीट थपथपाई जानी थी हमारी उल्टा न तारीफ मिली न शाबासी सब कुछ कोई और ले गया.

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