(सुधीर दंडोतिया की कलम से)

घोटालों की सूची और चुनावी सौदा

चुनावों में नेता जो करें कम ही मानिए। ऐसा ही मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों में हो रहा है। पूर्व जन प्रतिनिधियों के कार्यकालों में गड़बड़ियों की सालों बाद लोगों को याद आ रही है। विपक्ष के एक दल ने एक पूर्व महापौर की फाइल निकालने के लिए सौदा किया। इसके लिए कोई आरटीआई कार्यकर्ता नहीं बल्कि एजेंसी को हायर किया गया। हालांकि नोएडा की एजेंसी भी पीआर के अलावा पुराने पापों को निकालने में भी माहिर है। हालांकि यह काम भी पार्टी स्तर पर नहीं बल्कि प्रत्याशी ने अपने स्तर पर किया। वैसे लल्लूराम के खबरी यह भी बताते हैं कि कई मंत्री भी इस जद में हैं। अब यह अलग बात है कि कांग्रेस ने हाल ही में 253 घोटालों का आरोप सरकार पर भी लगाया है।

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मंत्री जी का चुनावी तंत्र मंत्र

साम, दाम, दंड, भेद। जैसे भी हो पूरा जोर नेताओं का जीत पर है। यह जानकर चौंकिएगा मत कि एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं बल्कि आधा दर्जन मंत्री तंत्र मंत्र में जुटे हुए हैं। इस सूची में दिल्ली वाले भी शामिल हैं। मालवा क्षेत्र में एक मंत्री जी की मां नर्मदा के किनारे रात्रि साधना चर्चा का विषय बनी हुई है। वैसे मंत्री जी को कम बोलने की साधना भी करनी चाहिए। दूसरी ओर महाकौशल क्षेत्र के बड़े फ्रेम-नेम वाले बड़े कद के मंत्री जी गुप्त क्रिया में शामिल होते हैं। इस काम में मंत्री जी द्वारा बुलाई गई बाबा जी की टीम लगी हुई है। दो मंत्री जी समेत एक बड़े साहब तो उज्जैन के पास के ही रहने वाले है। वैसे एक का मामला तो उनके क्षेत्र में सार्वजनिक हो ही गया है।

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कम से कम ऐसा तो न बोलिए..

चुनावी टेंशन में पारा चढ़ना स्वाभिवक है। लेकिन, ऐसी टेंशन भी किस काम की जो अपने माथे भारी पड़ जाए। बीते दिनों कुछ ऐसा ही हुआ। जब महाकौशल और बुंदेलखंड की सीमा से लगे एक जिले के कद्दावर मंत्री ने अपने ही कार्यकर्ताओं पर अचानक जमकर बरस पड़े। छोटे भाई भी उनके आगे कुछ न बोल सके। दरअसल, मामला गाली-गलौज तक पहुंच गया। मंत्री जी की मधुर वाणी से भारी विरोध भी शुरू हो गया है। हालांकि मंत्री का रसूखदार स्वभाव भी उन पर भारी पड़ता है। कैमरे के साथ मंच की मधुरता अपने कार्यकर्ताओं के लिए भी बचा कर रखिएगा मंत्री जी। कांड के बाद आपके ही कार्यकर्ताओं की बदोलत फोर व्हीलर से बरामद 50 लाख की चपत भी लगी। कहते हैं न, पंछी कितना भी ऊंचा क्यों न उड़े आना जमीं पर ही पड़ता है।

कलेक्टर साहब पर भारी पड़ गए नेताजी

एक कलेक्टर साहब पर नेता जी भारी पड़ गए। मामला ऐसा हुआ कि शिकायतों को लेकर एक उम्मीदवार ने कई फोन लगाए। मामला मंत्री जी की विधानसभा का था तो कलेक्टर साहब की अनदेखी भी स्वाभाविक सी बात है। फिर क्या था। नेता जी भी पहुंच गए कलेक्टर महोदय के पास। साथ ही साक्ष्य के साथ कार्यवाही का अनुरोध भी किया। जब तजब्बो न मिली तो नेता जी ने दो टूक शब्दों में सार्वजनिक रूप से कलेक्टर साहब की ही क्लास लगा दी। आवाज तेज हुई तो साहब ने भी निकलने में भलाई समझी। हाथों में सबूतों को देख साहब की चू भी न निकली। अब साहब को ये कौन समझाए कि यह इंदौर नहीं है।

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गुम गए बिल्ले, बदला चुनाव

एक समय था जब चुनावों की रंगत बिल्ले, प्लास्टिक के पेन, छापे से होती थी। प्रत्याशियों की सुबह भी 06 बजे से रात 10 बजे तक की मेहनत। नुक्कड़, कविताओं पर जोर और चौपाल। लेकिन अब चुनाव और प्रचार भी बदल गया है। मंच के भाषणों के साथ अब प्रत्याशियों का पूरा जोर सोशल मीडिया पर दिखाई दे रहा है। वार्ड तो ठीक बल्कि मोहल्लों तक के वाट्सएप ग्रुप में चरम पर प्रचार जारी है। पैटर्न भी ऐसा की सोशल मीडिया के कैंपन के लिए भी बकायदा एजेंसियों को हायर किया गया है। लगता है 2027 का विधानसभा चुनाव अब जमीन पर कम सोशल मीडिया पर ज्यादा होगा।

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