पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद। गरियाबंद के कदलीमुड़ा ग्राम पंचायत ने हितग्राही बदलकर अपात्र को आवास की स्वीकृति दे दी. 270 वर्ग फुट में तय डिजाइन के पीएम आवास के बजाए 750 वर्ग फीट में बने आवास को पीएम आवास भी बता दिया गया. मूल्यांकन सत्यापन ओर जिओ टेकिंक जैसे तगड़ी ऑनलाइन प्रक्रिया के बावजूद फर्जी हितग्राही को दो किश्त में 1 लाख 5 हजार रुपए मिल चुका है.

पीड़िता के गुहार लगाने के बाद अब मामले में जनपद सीईओ ने जांच टीम गठित कर दिया है. दो साल पहले सरकार ने योजना का नाम बदलकर प्रधानमंत्री आवास योजना का नाम दिया. आवास निर्माण के लिए राशि दोगुनी करते हुए 1 लाख 45 हजार रु कर दिया. योजना में कोई गड़बड़ी न हो, इसका भी तगड़ा बन्दोबस्त किया गया. यहां तक कि ऑनलाइन मॉनिटरिंग भी की गई. इसके बावजूद कदलीमुड़ा पंचायत ने मिलीभगत कर बड़ा फर्जीवाड़ा अंजाम दिया है.

वर्ष 2016 के हितग्राही सूची में कमला नाम की महिला के नाम पर आवास की स्वीकृति मिली थी, लेकिन कमला के पति राजाराम के लिए आवास बना दिया गया. मामले का खुलासा सप्ताह भर पहले हुआ. जब वास्तविक हितग्राही अधेड़ कमला बाई ने पंचायत द्वारा बुलाई गई सभा में अपने आवास की जानकारी ली. उस वक्त सरपंच डीलेश्वरी भोई और सचिव मदन नायक ने गोलमोल जवाब देकर उसे टाल दिया.

जवाब से असंतुष्ट वृद्धा कमला बाई ने पोते निमेश की मदद ली. निमेश ने जनपद कार्यालय पहुंच सीईओ विनय अग्रवाल को मामले से अवगत कराया. उसने स्वीकृत आवास में वास्तविक नाम का पता कर लिया. कच्ची मिट्टी से जुड़े पत्थर वाले मकान में रह रही कमला ने अपने हक के आवास की मांग की.

मामले मे सरपंच से बात करने गए, तो पति कुंजबिहारी ने बात करने से सरपंच को रोक दिया. सरपंच पति ने कहा कि जिसका कागजात मिला, उसका मकान बनवाने के लिए कह दिया गया है. जनपद सीईओ विनय अग्रवाल ने बताया कि मामले की जांच के लिये टीम गठित कर दिया गया है. जांच रिपोर्ट आने पर उचित कार्रवाई की जाएगी.

प्रक्रिया पर उठा सवाल

योजना के लिए तय प्रावधान के मुताबिक, स्वीकृत नाम के लिए कार्यादेश जारी कराने पंचायत हितग्राही के आधार कार्ड, माता-पिता के नाम का मिलान, बैंक खाता, फोटो जनपद कार्यालय को उपलब्ध कराता है. हितग्राही का ही दस्तावेज है, इसका सत्यापन भी पंचायत करता है. कार्य शुरू होने से पहले तय माप पर इंजीनियर ले आउट देता है. काम शुरू होने से पहले स्थल पर हितग्राही की तस्वीर खींचकर ऑनलाइन जियो टेकिंग भी पंचायत को करना होता है.

निर्माण के दरम्यान तीन स्तर पर आवास की तस्वीर वेबसाइट पर अपलोड करना होता है. इन्हीं प्रक्रिया के साथ ही किश्तों में राशि हितग्राही के खाते में जाते हैं, लेकिन कदलीमुड़ा में कमला बाई के नाम पर स्वीकृत आवास के नाम पर की गई गड़बड़ी ने पूरे सिस्टम पर सवाल खड़ा कर दिया है.

नाम में समानता का उठाया फायदा

वास्तविक हितग्राही कमला बाई ओर फर्जी हितग्राही कमला बाई के पिता का नाम संतालू राम ही है. बोगस हितग्राही का बेटा राजकुमार नागेश जनपद में कम्प्यूटर ऑपरेटर है. वो 2016 में आवास योजना का काम देखता था. उसी ने पंचायत से सांठगांठ कर अपनी मां के नाम पर आवास की राशि निकलवा ली. स्वीकृत सूची बेवा कैटेगरी के लिए थी. माता का नाम उर्वशी भी उल्लेख था.

बावजूद इन महत्वपूर्ण तथ्यों की उपेक्षा कर गड़बड़ी को अंजाम दिया गया.

आवास का सपना अधूरा रह गया

विधवा कमला बाई ने बताया कि 2011 से उसने आवास के लिए नाम जुड़वा रखा था. साल भर पहले उसे पूरी उम्मीद थी कि अब वह पक्के मकान में रहेगी. कमला ने कहा कि विधवा और असहाय होने के कारण रिश्वत नहीं दे सकी, इसलिए जानबूझ कर मकान को बदल दिया गया है. अब वृद्ध कमला बाई फूट-फूटकर रोती है और न्याय की मांग करती है.