चंडीगढ़, पंजाब। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को बड़ा झटका देते हुए 1988 के रोड रेज मामले में एक साल जेल की सजा सुनाई. इधर सजा के ऐलान के बाद पंजाब की भगवंत मान सरकार ने सिद्धू की सुरक्षा वापस लेने का आदेश दे दिया. सिद्धू को पंजाब सरकार से मिली 45 पुलिसकर्मियों की सुरक्षा वापस लेने का आदेश जारी किया गया. वहीं नवजोत सिंह सिद्धू ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन दायर कर दी है. इसमें सिद्धू ने सरेंडर के लिए एक हफ्ते की मोहलत मांगी है. सिद्धू ने अपने बीमार होने का हवाला देते हुए क्यूरेटिव पिटीशन दायर की है. इस मामले में सिद्धू को सजा सुनाने वाली बेंच ने क्यूरेटिव पिटीशन को सुनने से इनकार कर दिया है. सिद्धू के वकील अभिषेक मनु सिंघवी की पिटीशन पर जस्टिस एएम खानविलकर ने कहा कि हम चीफ जस्टिस के पास मामले को भेज रहे हैं, वे ही इस पर सुनवाई का फैसला करेंगे. हालांकि अगर सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली, तो फिर सिद्धू को आज ही सरेंडर करना होगा.

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कानून का सम्मान करूंगा- सिद्धू

सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1988 में रोड रेज के एक मामले में एक साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाए जाने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने ट्वीट करते हुए कहा, “कानून का सम्मान करूंगा.” बता दें कि ये फैसला तब आया, जब सिद्धू हाथी पर सवार होकर पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ अपने गृहनगर पटियाला में मूल्य वृद्धि के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे, जहां 1988 में रोड रेज की घटना हुई थी. वहीं मृतक गुरनाम सिंह के परिवार ने कहा कि वह इस फैसले से संतुष्ट हैं. उनकी बहू परवीन कौर ने कहा कि 34 साल की लड़ाई में कभी उनका मनोबल नहीं टूटा. उनका लक्ष्य सिर्फ सिद्धू को सजा दिलाना था, जिसमें वह कामयाब रहे.

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सिद्धू का सियासी सफर

सिद्धू 2004 में बीजेपी के टिकट पर अमृतसर लोकसभा सीट जीते, लेकिन 2006 में गैर इरादतन हत्या के मामले में इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद 2007 में फिर उन्होंने लोकसभा का उपचुनाव जीता. 2014 में बीजेपी ने सिद्धू का टिकट काटकर अरुण जेटली को दे दिया और उन्हें 2016 में राज्यसभा भेजा गया, मगर उन्होंने सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. 2017 में नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस में शामिल हो गए और अमृतसर ईस्ट से विधायक बने. 2017 में कैप्टन अमरिंदर सिंह के सरकार में लोकल गवर्नमेंट मंत्री बने. 2019 में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिद्धू को बिजली मंत्रालय दे दिया, जिसे लेने से उन्होंने इनकार कर दिया और कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. तत्कालीन सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह से उनके मतभेद जगजाहिर रहे, लेकिन वे कांग्रेस आलाकमान से अपनी बात मनवाने में कामयाब रहे और 2021 में उन्हें पंजाब कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया और कैप्टन से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा ले लिया गया. हालांकि बाद में तत्कालीन सीएम रहे चरणजीत सिंह चन्नी से भी उनकी नहीं बनी. इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद सिद्धू से भी पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा ले लिया गया.

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1988 में पार्किंग को लेकर हुए विवाद में हुई थी बुजुर्ग गुरनाम सिंह की मौत

बता दें कि नवजोत सिंह सिद्धू का 27 दिसंबर 1988 को पटियाला में पार्किंग को लेकर विवाद हुआ था, जिसमें एक बुजुर्ग गुरनाम सिंह की मौत हो गई थी. आरोप है कि सिद्धू और 65 वर्षीय गुरनाम सिंह के बीच हाथापाई भी हुई थी. पुलिस ने इस घटना में नवजोत सिंह सिद्धू और उनके दोस्त रुपिंदर सिंह के खिलाफ गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 1000 रुपए का जुर्माना लगाकर उन्हें बरी कर दिया था. पीड़ित पक्ष ने इसे लेकर पुनर्विचार याचिका दायर की थी. इससे पहले पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सिद्धू को गैर इरादतन हत्या में 3 साल कैद की सजा सुनाई थी, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने गैर इरादन हत्या में बरी कर दिया था, लेकिन चोट पहुंचाने के मामले में एक हजार रुपए का जुर्माना लगाया था.

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नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने पक्ष में दिए थे ये तर्क

पीड़ित पक्ष की ओर से पुनर्विचार याचिका लगने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने एफिडेविट दाखिल किया था कि पिछले 3 दशक में उनका राजनीतिक और खेल करियर बेदाग रहा है. राजनेता के तौर पर उन्होंने न सिर्फ अपने विधानसभा क्षेत्र अमृतसर ईस्ट बल्कि सांसद के तौर पर बेजोड़ काम किया है. उन्होंने लोगों के भले के लिए कई काम किए हैं. उनसे कोई हथियार भी बरामद नहीं हुआ और उनकी मरने वाले से कोई दुश्मनी भी नहीं थी. उन्होंने कहा कि पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी जाए. उन्हें दी गई 1 हजार जुर्माने की सजा पर्याप्त है. इसके बाद मामला अदालत में पहुंचा. सुनवाई के दौरान लोअर कोर्ट ने नवजोत सिंह सिद्धू को सबूतों का अभाव बताते 1999 में बरी कर दिया था. इसके बाद पीड़ित पक्ष निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंच गया. साल 2006 में हाईकोर्ट ने इस मामले में नवजोत सिंह सिद्धू को 3 साल कैद की सजा और एक लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी.

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सिद्धू को एक साल की सजा

इस फैसले को दोनों आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू को पीड़ित के साथ मारपीट मामले में दोषी करार देते हुए हजार रुपए का जुर्माना लगाया था. इसी मामले में पीड़ित पक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन दाखिल की गई थी. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और अब सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू को एक साल जेल की सजा सुनाई है. न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने शीर्ष अदालत के 2018 के फैसले के खिलाफ पीड़ित गुरनाम सिंह के परिवार द्वारा पुनर्विचार याचिका की अनुमति दी थी. शीर्ष अदालत ने अब सिद्धू की सजा को बढ़ाकर एक साल कर दिया.