अजय नीमा, उज्जैन। रंगपंचमी के अवसर पर उज्जैन शहर में बाबा महाकालेश्वर मंदिर से वीरभद्र चल समारोह के अंतर्गत 21 ध्वज पताक (मन्नतों के ध्वज) निकाले  गए इस दौरान बाबा महाकाल के दरबार में बरसों पुरानी परंपराओं का निर्वहन किया गया। उज्जैन में बाबा महाकाल की नगरी निराली है। ऐसा माना जाता है कि यहां कण-कण में भगवान शंकर का वास है और मोक्षदायिनी मां शिप्रा में स्नान करने से श्रद्धालु सभी पापों से मुक्त हो जाता है।

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इस नगरी में वैसे तो हर त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं, लेकिन  यह नगरी उत्सव मनाने के साथ ही परंपराओं का निर्वहन करने में भी पीछे नहीं है। आज रंग पंचमी को बाबा महाकाल के दरबार से गैर निकली जिसमे मन्नतों के ध्वज निकालने की परंपरा का निर्वहन किया गया, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित हुए।

महाकालेश्वर मंदिर में ध्वज निकालने की परंपरा अति प्राचीन है। यह ध्वज पूरे शहर में भव्य चल समारोह के रूप में निकाले जाते हैं, जिसका पूजन जिला प्रशासन और सरकार की ओर से किया जाता है।  राजाधिराज भगवान महाकाल के दरबार में श्रद्धालु से लेकर सरकार तक झोली फैलाए आते हैं। जब भी कोई मन्नत मांगी जाती है तो अनेक श्रद्धालु मन्नत पूरी होने पर रंगपंचमी पर ध्वज फहराने की मनोकामना भी मांगते हैं। इसी के चलते रंगपंचमी के अवसर पर महाकालेश्वर मंदिर से मन्नतों के ध्वज निकलते हैं और भगवान के प्रति कृतज्ञता अर्पित करते हैं। इस प्रकार मन्नत पूरी होने से विजय पताका के रूप में ध्वज निकाले जाते हैं। इस ध्वज की विधि पूजा भगवान महाकाल के सेनापति वीरभद्र के सामने होती है।

झांकियां व बेंड रहे आकर्षण का केंद्र 

चल समारोह महाकाल मंदिर से गोधूलि बेला मे शुरू हुआ महाकालेश्वर मंदिर में वीरभद्र जी के सामने ध्वज पत्रिकाओं का विधि विधान से पूजन अर्चन किया गया और कोठी  तीर्थ कुंड के चारों ओर ध्वज पत्ताओं को परिक्रमा पूर्ण करने की पश्चात मंदिर परिसर से नगर भ्रमण को बाहर लाई गई। 

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