सत्यपाल सिंह राजपूत, रायपुर. कोरोना काल से शिक्षा का स्तर दिन ब दिन गिरता गया है. कोरोना के कारण स्कूलें बंद रही. उसके बाद भी निजी स्कूलों ने फीस में 15 फीसदी की बढोत्तरी की है. हालांकि अधिनियम के मुताबिक 8 फीसदी फीस बढ़ाने का प्रावधान है, लेकिन निजी स्कूलों की मनमानी चरम पर है. बढ़ी फीस के कारण पालक हलाकान नजर आ रहे हैं. जिम्मेदार अधिकारियों के होने के बावजूद स्कूलों की मनमानी जारी है. हालांकि लूट को रोकने के लिए शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव ने आदेश जारी किया है.

बता दें कि, शिक्षा विभाग जिस फीस अधिनियम को प्राइवेट स्कूल के मनमानी रोकने के लिए रामबाण दवा मानते थे और हर सवाल में यही जवाब दिया जाता था कि इस अधिनियम लागू होते ही मनमानी से रोक लग जाएगी. लेकिन अधिनियम लागू हुए 2 साल हो गए न ही मनमानी पर लगाम लगा पाएं और न ही पालकों को लुटने से बचा पाए. बात यहीं खत्म नहीं होती है मनमानी इतनी सुनियोजित ढंग से की जा रही है कि अब शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आलोक शुक्ला को मैदान में उतरना पड़ा. साथ ही सभी कलेक्टर और जिला शिक्षा अधिकारियों को आदेश जारी करना पड़ा कि जो नियम के खिलाफ फीस वृद्धि किया है उस पर कार्रवाई की जाए. ऐसे में सवाल ये उठता है कि शिकायत होने के बाद भी कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं होती. क्या अधिकारियों और निजी स्कूलों का कोई सांठगांठ है.

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पैरेंट्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिस्टोफर पॉल ने कहा है कि फीस अधिनियम प्रदेश में लागू है. लेकिन इसके पालन कराने में अधिकारी नाकाम है. मनमाने तरीकों से फीस में वृद्धि की गई. लेकिन नियम उल्लंघन करने पर कार्रवाई नहीं की जा रही है, लगातार शिकायत की गई जब सुनवाई नहीं हुई तो बाल आयोग में फिर दस्तावेज के साथ मामला लेकर गए फिर बाल आयोग ने स्कूलों को तलब किया. फिर शिक्षा सचिव ने आदेश जारी किया कि 8% से ऊपर वृद्धि करने वाले स्कूलों पर कार्रवाई की जाए. साथ ही सवाल उठाते हुए कहा कि दो सालों में स्कूल नहीं के बराबर खुले हैं. शिक्षा का स्तर गिरा है तो वृद्धि किस बात की है?

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वहीं प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष राजीव गुप्ता ने कहा कि स्कूल शिक्षा विभाग के नियमानुसार जांच करा लें. हम जांच के लिए तैयार हैं. अभी तक एक भी शिकायत कलेक्टर के पास या डीईओ के पास नहीं हुई है. इस अधिनियम के अनुसार 8% तक वृद्धि करने का अधिनियम है. उससे ज्यादा करने के लिए जिला स्तर की कमेटी से परमिशन लेने की जरूरत होती है. अगर परमिशन नहीं ली गई है तो उसकी शिकायत होती, लेकिन किसी की शिकायत नहीं हुई.

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शिक्षा विभाग में स्पष्ट नीति और उपलब्ध अधिनियम के पालन में बरती जा रही कोताही को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि निजी स्कूल और पालकों के बीच में जारी जंग का भी खत्म हो पाएगी. अगर सरकारी स्कूलों में व्यवस्थाएं सही होती तो प्राइवेट स्कूलों की ओर अग्रसर नहीं होते? जो अपनी ही स्कूलों में कसावट नहीं ला पाए वो प्राइवेट में लगाम लगाए ये कैसे उम्मीद किया जा सकता है? शिक्षा विभाग के अधीन संचालित प्राइवेट स्कूलों की मनमानी, शिक्षा विभाग की नाकामी ये सवाल उठाने का मजबूर कर रहा है.