आशुतोष तिवारी, रीवा। मध्य प्रदेश की रीवा संसदीय सीट विंध्य की महत्वपूर्ण सीटों में से एक है। यह पूरा ब्राह्मण बाहुल्य इलाका है, लेकिन परिणाम चौंकाने वाले रहे है। कभी जनता ने महाराजा को अन्नदाता मान कर सर आंखों में बैठाया तो कभी राजा-रानी को रंक ने हराया। हर बार दिलचस्प नतीजे आते रहे है। आजादी के बाद यह इलाका कांग्रेस का गढ़ रहा और आपातकाल में समाजवादियों और बसपा का गढ़ रह चुका है। देश का पहला नेत्रहीन सांसद और बसपा का पहला सांसद यह चुना जा चुका है।

17 बार के आम चुनाव में 11 बार ब्राह्मण प्रत्याशी चुनाव जीते जबकि रिकॉर्ड 4 बार रियासत महाराजा मार्तंड सिंह और 3 बार पिछड़ा वर्ग के प्रत्याशी जीत दर्ज कर लोकसभा पहुंचे। 2011 की जनगणना के अनुसार रीवा की जनसंख्या 23,65,106 जिसमें पुरषों की संख्या 12,25,100 और महिलाओं की संख्या 11,40,006 है। शिक्षित लोगों का प्रतिशत 71.62 है। जिले में कुल मतदाताओं की संख्या 18 लाख 50 हजार है। आइए एक नजर डालते है रीवा लोकसभा सीट पर…

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विंध्य की सियासत का गढ़

रीवा को विंध्य की सियासत का गढ़ माना जाता है। रीवा सफेद शेर, सुपारी के खिलौने के लिए प्रसिद्ध है। रीवा के विश्व प्रसिद्ध दशहरी आम को जीआई टैग प्राप्त मिला है। इस रीवा ने मध्य प्रदेश को मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष और कई मंत्री दिए हैं।

1952 के पहले आम चुनाव में रीवा संसदीय सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी राजभान सिंह 3301 मतों से विजयी हुए थे। इन्हें 26549 मत प्राप्त हुए थे, जबकि निकटतम प्रतिद्वंदी MPP के प्रत्याशी कमलाकर सिंह को 23248 मत मिले थे। रीवा संसदीय सीट के गठन के बाद 1957 में सपन्न आम चुनाव में मऊगंज, त्यौंथर, सिरमौर, मनगवा, गुढ़, रीवा और सतना जिले का चित्रकूट विधानसभा क्षेत्र शामिल था। पहले आम चुनाव के समय मतदाताओं की कुल संख्या 3,95,851 थी। इनमें से 35.46 प्रतिशत यानी कुल 1,40,385 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, कुल 8 प्रत्याशी मैदान में थे। कांग्रेस प्रत्याशी एस.डी उपाध्याय 41,445 मत पाकर चुनाव में विजय हुए थे।

साल1692 में रीवा संसदीय क्षेत्र में सतना जिले की बरौधा, त्यौंथर, मनगवा, सिरमौर, रीवा, गुढ़, देवतालाब और मऊगंज विधानसभा क्षेत्र शामिल थे। इस चुनाव में 9 प्रत्याशी मैदान में थे कांग्रेस के एसडी उपाध्याय विजयी हुए। 1967 में रीवा संसदीय क्षेत्र में सतना जिले की रामपुर बघेलान, रीवा सिरमौर, त्यौथर, मनगवा, गुढ़ विधानसभा क्षेत्र शामिल थे। कुल 7 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे। कांग्रेस प्रत्याशी शंभूनाथ शुक्ल विजयी हुए। 1971 में निर्दलीय प्रत्याशी की हैसियत से महाराजा मार्तंड सिंह विजयी हुए। चुनाव में मतदान 61.57 प्रतिशत रहा।

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साल 1977 के आम चुनाव में रामपुर बघेलान, रीवा सिरमौर त्यौंथर, देवतालाब, मऊगंज विधानसभा क्षेत्र शामिल थे। भारतीय लोक दल के प्रत्याशी जमुना प्रसाद शास्त्री विजयी रहे। शास्त्री नेत्रहीन थे। गोवा आंदोलन में शास्त्री आंखों की रोशनी गवा बैठे थे। 1980 के आम चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर खड़े हुए महाराजा मार्तंड सिंह पुणे विजय हुए। 1984 में संपन्न चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में महाराजा मार्तंड सिंह विजय ही रहे। 1989 के आम सभा चुनाव में यमुना प्रसाद शास्त्री विजय हुए, जबकि महारानी प्रवीण कुमारी दूसरे स्थान पर रही।

1991 के मध्य आबादी चुनाव में बसपा के प्रत्याशी भीम सिंह पटेल चुनाव जीते। 1996 में बसपा के बुद्ध सिंह पटेल चुनाव जीतने में कामयाब हुए। उनके निकटतम प्रतिबंध भाजपा की महारानी प्रवीण कुमारी रही। जबकि कांग्रेस तीसरे स्थान पर पहुंच गई। 1998 के मध्यावधि चुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज की चंद्रमणि त्रिपाठी चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे। 1999 के मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सुंदरलाल तिवारी चुनाव जीते।

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बीजेपी लगाएगी हैट्रिक या कांग्रेस मारेगी बाजी ?

2004 के आम चुनाव में भाजपा के चंद्रमणि त्रिपाठी विजयी हुए। 2009 में बहुजन समाज पार्टी के देवराज सिंह पटेल विजय हुए। जबकि सन 2014 और 2019 में भाजपा से लगातार दूसरी बार जनार्दन मिश्रा जीतकर लोकसभा पहुंचे हैं। BJP ने फिर तीसरी बार जनार्दन को अपना प्रत्याशी बनाया है, वहीं कांग्रेस ने नीलम मिश्र को जबकि बसपा ने फिर ओबीसी से अभिषेक पटेल को मौका दिया है।

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