चंडीगढ़. पंजाब में कांग्रेस ने पिछले चुनाव के अपने प्रदर्शन को कुछ हद तक बचाकर रखा लेकिन अकाली और भाजपा को गठबंधन न करने का बेहद नुकसान रहा. इन दोनों दलों को मठबंधन न करने से निराशा हुई.
वहीं, कांग्रेस को सत्ताधारी आप को दूर रखने का लाभ मिला और साथ ही उसे सत्ता विरोधी लहर का फायदा मिला. कुछ लोकसभा हलकों के परिणामों पर नजर डालें तो अकाली-भाजपा उम्मीदवरों के वोटों को जोड़ दिया तो गठबंधन की जीत सुनिश्चित थी. गुरदासपुर, अमृतसर, लुधियाना, फिरोजपुर और पटियाला ऐसी सीटें हैं जहां दोनों दलों को. मिले वोटों को जोड़ दिया जाए तो जीत सुनिश्चित थी. बठिंडा में भी अगर दोनों दाल साब होते ते हरसिमरत कौर की जीत का अंतर और बड़ा होता.
बठिंडा को छोड़ दें तो शिअद 10 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की जमानत तक गवां बैठा. अकालीदल का वोट शेयर 2019 में 18 फीसदी से गिर कर 13.41 फीसदी तक पहुंच गया. पंचक सीट खजूर साहिब में हालत यह रही कि यहां से निर्दलीय अमृतपाल सिंह ने जीत हासिल की.
दूसरे स्थान पर कांग्रेस रही जबकि शिअद के बड़बोले नेता विरसा सिंह वल्टयेहा चौथे स्थान पर खिसक गए. इसी तरह फरीदकोट में खालसा खालसा ने बंपर जीत अकालीदल चौथे स्थान पर रहा. बठिंडा को छोड़ शिअद सभी सीटों पर चौथे स्थान पर रही. पहली बार अकेले लोकसभा के चुनाव मैदान में उतरी भाजपा के सामने उम्मीदवारों की तलाश सबसे बड़ी चुनौती रही. 13 उम्मीदवारों का कोटा पूरा करने के लिए भाजपा ने अन्य दलों में तोड़फोड़ कर अपनी जरूरतें तो पूरी की लेकिन सिर्फ 2 सीटों गुरदासपुर और श्री आनंदपुर साहिच में ही अपने कॉडर को टिकट दिया. इससे वर्करों में नाराजगी दिखी. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने परिणामों मेंकटाबेस के बारे में कहा कि प्रवासवाला सिव इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं क्योंकि हम पहले अकालीदल के लिए काम करते थे और अब कांग्रेस कांग्रेस के लिए आखिर क्यों काम करें. इसके अलावा भी राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ ने भी ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई. पंजाब में धुंआभार प्रचार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दे दौरे के अलावा दिग्गजों के प्रचार का असर वह रहा कि भाजपा का वोट शेयर 9.62 फीसदी से बढ़ कर 18.55 फीसदी तक पहुंच गया.
गुरदासपुर में कांग्रेस के सुखजिंदर सिंह रंधावा को 3,64043 वोट मिले जबकि भाजपा के दिनेश बब्बू को 2,81,182 और शिअद के दलजीत सिंह चीमा को 85,500 वोट मिले. दोनों के वोटों को अगर जोड़ा जाए ते भाजपा यहां से जीत रही थी. सभी सीटों पर चार से पांच दलों के मैदान में उतरने के कारण वोटों का बंटवारा हुआ और जो उम्मीदवार अपने वोटरों को निकालने में सफल रहा जीत उसकी हुई.
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