शिवम मिश्रा, रायपुर। अगर इंद्रियां ज्ञान की साधन बनती हैं, तो वो भोग का साधन भी बनती है. इसी वजह से हमारे जीवन में कर्मों से और विपत्तियों से बीमारियां प्रवेश करती है. मनुष्य के जीवन में योग साधना होती है या नहीं ये महत्वपूर्ण है. क्योकिं योग एक अध्यात्म जगत का शब्द है. योग का एक अर्थ है अध्यात्म तो दूसरा अर्थ मोक्ष है. संसार से मुक्ति का उपाय योग होता है. हमें बंधन से मुक्त योग ही कराता है. यह बात आचार्य श्री महाश्रमण महाराज ने अपने अहिंसा यात्रा के दौरान मोहन मैरिज पैलेस में आयोजित कार्यक्रम में कही.

राजधानी रायपुर के अलग-अलग क्षेत्रों से होते आचार्य श्री महाश्रमण महाराज की अहिंसा यात्रा मोहन मैरिज पैलेस पहुंची. इस अहिंसा यात्रा के साक्षी पूरे रायपुर शहर के वासी बने है. जिन्होंने कई जगहों पर महाश्रमण जी के अहिंसा यात्रा का आत्मीय स्वागत किया. इस दौरान आचार्य श्री महाश्रमण महाराज ने वाचना में कहा कि भोग, रोग और योग तीनों के अंत में ग शब्द आता है. इंसान अपने जीवन में भोगों का सेवन भी करता है.

उन्होंने कहा कि हमारे भीतर पांच प्रकार की इंद्रिया होती है, और इन्हीं इंद्रियों के द्वारा ज्ञान भी मिलता है. इसलिए इनका नाम ज्ञानेंद्रियाँ दिया गया है. अगर हम किसी जगह के बारे में सुनते है, और फिर उसे देख भी लेते हैं तो वह और अधिक पृष्ठ हो जाती है, तो हमारी आंख भी ज्ञानेंद्रिया में आती है. ये दो इंद्रियां ज्ञान की प्रमुख साधन हैं.

बता दें कि महाश्रमण महाराज की मौजूदगी में 157वां मर्यादा महोत्सव पहली बार छत्तीसगढ़ की रायपुर में उत्साह के साथ मनाया गया है. महाश्रमण महाराज अपने अहिंसा यात्रा की शुरुआत केलवा, जसौल, लाडनू, दिल्ली, गुहाटी, कोलकत्ता, चेन्नई, हैदराबाद से होते हुए करीब 5 हजार किलोमीटर का सफर तय कर बीहड़ जगंल जैसे क्षेत्रों से होते हुए छत्तीसगढ़ पहुँचे हैं. इस अहिंसा यात्रा में महाश्रमण महाराज लोगों को नशा मुक्त, अहिंसा की राह पर चलना, अच्छे कर्म करने के प्रति ज्ञान देते हैं.