जयपुर। महावीर जयंती पूरे विश्व में मनाई गई.यह पर्व 24वें और अंतिम जैन तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. जैन समुदाय के लिए महावीर जयंती का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है. जैन धर्म के करोड़ों मंदिर हैं, लेकिन राजस्थान के सिरोही जिले के माउंट आबू नगर में दिलवाड़ा के जैन मंदिर पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. इन मंदिरों का निर्माण ग्यारहवीं और तेरहवीं शताब्दी के बीच हुआ था.

दिलवाड़ा के जैन मन्दिर प्राचीन भारत की अद्भुत निर्माण कला का आश्चर्यजनक उदाहरण है. क्योंकि इस मन्दिर में फोटो खींचने की मनाही है, इसीलिए बहुत से लोग इस अत्यंत सुंदर मन्दिर से अनजान है.वैसे इंटरनेट पर दिलवाड़ा मन्दिर की फ़ोटोज़ हैं, जिसे देखकर आप इसकी दैवीय सुन्दरता का अंदाजा लगा सकते हैं. आप खुद जाकर भी वहां की अद्भुत वास्तु कला निहार सकते हैं.

ताजमहल लगने लगेगा फीका

1) दिलवाड़ा जैन मंदिर माउंट आबू के पास देलवाड़ा गाँव में स्थित है. ये मंदिर माउंट आबू शहर के मध्य से 2.5-3 किलोमीटर दूर बने हुए हैं. मंदिर जाने के लिए बस और टैक्सी की सुविधा आसानी से उपलब्ध हैं.

2) दिलवाड़ा मंदिर संगमरमर का बना हुआ है. मंदिर में लगी सुंदर मूर्तियों की कलाकारी लाजवाब है, उसके सामने ताजमहल फीका दिखाई देगा.

3) यहाँ कुल 5 मंदिर हैं. ये खूबसूरत मंदिर जैन धर्म के तीर्थंकरों को समर्पित हैं.
विमल वसही मंदिर : प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव
लुन वसही मंदिर : 22वें जैन तीर्थंकर नेमीनाथ
पीतलहर मंदिर : प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव
पार्श्वनाथ मंदिर : 23वें जैन तीर्थंकर पाश्र्वनाथ
महावीर स्वामी मंदिर : 24वें जैन तीर्थंकर महावीर

दिलवाड़ा मंदिर का अंतिम मंदिर महावीर स्वामी मंदिर भगवान महावीर को समर्पित है. इसका निर्माण 1582 में हुआ था. यूं तो यह मंदिर अन्य चार मंदिरों की अपेक्षा छोटा है. लेकिन इसकी दीवारों पर की गई नक्काशी नायाब है. बताया जाता है मंदिर की ऊपरी दीवारों पर की गई खूबसूरत कलाकारी 1764 में श्रीरोही के कलाकारों ने की थी.

मान्यता यह भी है कि मंदिर में संगमरमर का काम करने वाले कारीगरों को संगमरमर से एकत्रित धूल के अनुसार सोने का भुगतान किया जाता था. यही वजह थी कि वह और भी मन लगाकर बेहतरीन नक्काशी करते थे. बता दें कि दिलवाड़ा के ये मंदिर श्रद्धालुओं और पर्यटकों के दिलों में बसते हैं. कहा जाता है कि एक बार जिसने भी इन मंदिरों के दर्शन किए वह बस यहीं का होकर रह गया.

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