डॉ. वैभव बेमेतरिहा की रिपोर्ट

रायपुर. छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव-2023 पर स्पेशल रिपोर्ट्स की ये तीसरी कड़ी है. इस कड़ी में बात उस सीट की जो भाजपा का अभेद्य किला है. अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से इस सीट को भेदने की कोशिश कांग्रेस कर रही है, लेकिन सफलता 2018 में चली लहर के बाद भी नहीं मिल सकी है. हालांकि अब भाजपा के इस अभेद्य दुर्ग को ढहाने भूपेश बघेल ने मठ से एंट्री कर दी.

दरअसल बात भाजपा के अपराजित योद्धा बृजमोहन अग्रवाल की सीट की हो रही है. बात रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट की हो रही है. बृजमोहन अग्रवाल भाजपा में वो नेता हैं जो कभी विधानसभा चुनाव नहीं हारे हैं. 1990 से लगातर बृजमोहन अग्रवाल चुनाव जीत रहे हैं. विधायक अग्रवाल अब तक लगातार 7 बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं.

इतिहास –

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की दक्षिण विधानसभा सीट भाजपा का अभेद्य किला है. एक ऐसा किला जिसे कांग्रेस तमाम प्रयोगों के बाद भी नहीं भेद पाई है. सन् 2008 में जब विधानसभाओं का परिसीमन हुआ था, तो रायपुर शहर में दो नए विधानसभा बने थे. एक रायपुर उत्तर और एक रायपुर दक्षिण.

पहले दक्षिण और उत्तर को मिलाकर रायपुर शहर की सीट थी. और इस सीट से लगातार चुनाव जीत रहे थे भाजपा के बृजमोहन अग्रवाल. 2008 में रायपुर दक्षिण विधानसभा के बनने के बाद बृजमोहन यहाँ से चुनाव लड़े और जीत का सफर निरंतर जारी है.

कांग्रेस प्रत्याशी बदलती रही, बृजमोहन जीतते रहे

रायपुर दक्षिण विधानसभा में भाजपा को हराने कांग्रेस हर चुनाव में प्रयोग करती रही है. यहां तक प्रत्याशी लगातार बदलती रही है, लेकिन कांग्रेस को सफलता नहीं मिली. राजनीति के जानकारों का इसे लेकर तर्क ये रहा कि कांग्रेस ने हमेशा बृजमोहन के खिलाफ कमोजर प्रत्याशी ही उतारे.

साल 2008 के चुनाव परिणाम की बात करें, तो कांग्रेस ने यहाँ से योगेश तिवारी को प्रत्याशी बनाया था. योगेश तिवारी को जीताने के जिम्मेदारी तब प्रथम मुख्यमंत्री रहे अजीत जोगी ने ली थी, लेकिन फिर भी सफलता नहीं मिल पाई थी. बृजमोहन अग्रवाल ने करीब 25 हजार के बड़े अंतर के साथ योगेश को हरा दिया था.

साल 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने चेहरा बदला और रायपुर महापौर रहीं डॉ. किरणमयी नायक को उम्मीदवार बनाया, लेकिन जीत तो छोड़िए हार का अंतर और बड़ा हो गया. बृजमोहन अग्रवाल 34 हजार से अधिक मतों चुनाव जीत गए थे.

साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस की लहर थी. कांग्रेस की ऐसी आंधी चली थी कि 15 साल सत्ता में रहने वाली भाजपा का बस्तर से लेकर सरगुजा तक सफाया हो गया था. बावजूद इसके रायपुर दक्षिण में बृजमोहन का विजय अभियान जारी रहा. कांग्रेस ने यहाँ फिर प्रयोग किया था और नए चेहरे के तौर पर कन्हैया अग्रवाल पर दांव लगाया था. कन्हैया जीते तो नहीं, लेकिन कांग्रेस लहर में जीत के अंतर को बीते चुनाव के मुकाबले कम कर पाने में सफल रहे थे. बृजमोहन अग्रवाल 17 हजार की लीड से जीत पाए थे.

2023 का समीकरण और भूपेश बघेल की मठ से एंट्री

भाजपा के वरिष्ठ नेता और विधायक बृजमोहन अग्रवाल को रायपुर दक्षिण से हराना कांग्रेस के लिए मुश्किल ही नामूकिन हो चला है. लिहाजा दक्षिण के अभेद्य किले को भेदने इस बार कांग्रेस ने नए समीकरणों के साथ रणनीतिक शुरुआत कर दी है.

रायपुर दक्षिण में चुनावी अभियान का अगाज मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने खुद किया और अभेद्य किले को भेदने मुख्यमंत्री ने एंट्री दूधाधारी मठ से की. दूधाधारी मठ रायपुर का प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर और मठ है. सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सभी दृष्टि से सशक्त मठ.

कांग्रेस सरकार की योजनाओं को घर-घर ले जाने, योजनाओं पर जनता की राय जानने ‘प्रगति यात्रा’ नाम अभियान की शुरुआत हुई है. और शुरुआत हुई तो बृजमोहन अग्रवाल के सीट से हुई.

अभियान के आगाज के दौरान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का बयान 23 के समीकरणों के बीच गौर करने वाला है. उन्होंने कहा, “मठ से उनका संबंध वर्षों पुराना है, यहाँ उनका हमेशा आना-जाना रहा है. मुख्यमंत्री बनने के बाद सबसे पहले मठ ही पहुँचे थे. मठ का आशीर्वाद सदा उनके साथ है. प्रगति यात्रा की शुरुआत भी मठ में भगवान के दर्शन और आशीर्वाद से हमने की है. मैंने दक्षिण विधानसभा में मठ को पहले चुना”

कांग्रेस से कौन होगा चेहरा ?

दूधाधारी मठ से भूपेश बघेल ने दक्षिण विधानसभा में भाजपा के अभेद्य किले को ढहाने एंट्री तो कर दी है, लेकिन लोग इस सवाल का जवाब जानना चाहते हैं कि यहाँ बृजमोहन अग्रवाल के सामने चेहरा कौन होगा ? प्रमोद दुबे, एजाज ढेबर, सन्नी अग्रवाल, कन्हैया अग्रवाल या फिर राजनीति के जाने-पहचाने चेहरों से इतर कोई बिल्कुल नया चेहरा !

चेहरा कोई भी हो, पर कांग्रेस 23 का चुनाव यहाँ अब तक के चुनावों से कहीं ज्यादा मजबूती से लड़ेगी इसमें कोई दो राय नहीं. इसके संकेत भी दक्षिण के कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच मुख्यमंत्री ने भी दे दिए हैं. प्रगति यात्रा के साथ कांग्रेस रायपुर के सीटों पर एक तरह से जमीनी सर्वे कर लेगी. जनता से मिले फीडबैक के आधार चुनाव की अंतिम रणनीति भी बन जाएगी. और योजनाओं के बहाने यह भी पता चल जाएगा कि निगम क्षेत्र में निवासरत् शहरी जनता आखिर किसके साथ हैं ? और इसी आधार पर यह तय होगा कि दक्षिण में कांग्रेस का चेहरा कौन है ?