सरकारी दावों के मुताबिक वैसे तो छत्तीसगढ़ विकास पथ पर तेजी से आगे बढ़ रहा है और चर्चा देश में मॉडल राज्य के रूप में हो रही है, लेकिन बीते 3 वर्षों में 25 हजार से अधिक आदिवासी बच्चों और 950 से अधिक आदिवासी गर्भवती महिलाओं की मौत के आँकड़ों ने सरकारी दावों की पोल खोल दी है. कैसे? जानिए वैभव शिव पाण्डेय की इस रिपोर्ट में…
आदिवासी महिलाओं, नवजातों, शिशुओं और बच्चों की मौत का यह मामला 8 फरवरी को राज्यसभा में उठा था. सवाल भाजपा के आदिवासी नेता और छत्तीसगढ़ राज्यसभा सांसद रामविचार नेताम ने किया था. जवाब में जो आँकड़े सामने आए हैं वह चौंकाते भी और सवाल भी उठाते हैं.
बताया गया कि छत्तीसगढ़ में बीते 3 साल में आदिवासी महिलाओं और बच्चों की मृत्यु दर में वृद्धि हुई है. आँकड़ों के मुताबिक, छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य और आंशिक रूप से आदिवासी बाहुल्य जिलों में 25 हजार 164 बच्चों की मौत हुई. वहीं 955 गर्भवती महिलाओं की भी मौत हुई है.
आदिवासी बाहुल्य जिलों की बात करें तो वर्ष 2018-19 में नवजातों की मृत्यु 1494 हुई थी, जो कि साल 2019-20 में बढ़कर 2089 तक पहुँच गई. वहीं साल 2021 में यह आँकड़ा 3690 तक पहुँच गया. इसी तरह से साल 2018-19 में शिशुओं की मृत्य 1176 थी, जो कि साल 2019-20 में बढ़कर 1448 तक पहुँच गई. वहीं साल 2020-21 में आंकड़ा 2719 तक पहुँच गया. जबकि बाल मृत्यु दर साल 2018-19 में 739 थी, जो कि साल 2019-20 में बढ़कर 788 तक पहुँच गई. वहीं साल 2020-21 में यह आँकड़ा बढ़कर 932 पहुँच गया.
वहीं आंशिक रूप से आदिवासी बाहुल्य जिलों की बात करें तो वर्ष 2018-19 में नवजातों की मृत्यु हुई थी, वहीं साल 2019-20 में 1765 की मौत हुई थी, जबकि साल 2020-21 में यह आँकड़ा बढ़कर 2376 तक पहुँच गया. इसी तरह से साल 2018-19 में 789 शिशुओं की मौत हुई थी, जो कि साल 2019-20 में बढ़कर 891 तक पहुँच गया, जबकि साल 2020-21 में यह आँकड़ा 1048 तक पहुँच गया. वहीं बाल मृत्यु की बात करे तो साल 2018-19 में 454 मौतें हुई थी, वहीं साल 2019-20 में 425 की मृत्यु हुई थी, जबकि 2020-21 में यह आँकड़ा बढ़कर 545 तक पहुँच गया.
छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य और आंशिक रूप आदिवासी बाहुल्य जिलों में कुल 955 गर्भवती महिलाओं की मौत हुई है. इनमें आदिवासी बाहुल्य जिलों में साल 2018-19 में 176 थी, जो कि साल 2019-20 में बढ़कर 185 हो गई. वहीं साल 2020-21 में यह आँकड़ा 189 तक पहुँच गया. इसी तरह आंशिक रूप से आदिवासी बाहुल्य जिलों में साल 2018-19 में 128 मौतें हुई, वहीं साल 2019-20 में 129 मौतें हुई, जबकि साल 2020-21 में यह आँकड़ा 148 तक पहुँच गया.
जिलेवार आँकड़ों के मुताबिक साल 2020-21 में शून्य से 28 दिन तक के नवजातों की मौत सर्वाधिक सरगुजा में 1085 और बस्तर में 752 हुई. मौत के पीछे कारण सेपसिस, एसफिक्सिया और अन्य बताए गए. वहीं 29 से 12 महीना तक के शिशुओं की मौत सर्वाधिक सूरजपुर में 361 और सरगुजा में 354 हुई.
मौत के पीछे कारण निमोनिया, बुखार, खसरा और अन्य कारण बताए गए. जबकि 1 से 5 वर्ष तक के बच्चों की मौत सर्वाधिक सरगुजा में 168 और बस्तर में 120 में हुई. मौत के पीछे कारण निमोनिया, बुखार, खसरा और अन्य बताए गए. इसी तरह साल 2020-21 में गर्भवती महिलाओं की मौत सर्वाधिक बस्तर और बलरामपुर 27-27 हुई. मौत के पीछे कारण ज्यादातर अन्य ही रहे, कुछ एक मौत प्रसव में रुकावट और हेमरेज भी रहे.
आँकड़ों के बीच सबसे गौर करने वाली और विशेष बात यह है कि ज्यादातर मौतें छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव और राज्यसभा में सवाल पूछने वाले राज्यसभा सांसद रामविचार नेताम के इलाके में ही हुई है. मौत के इन आंकड़ों को देखते हुए राज्यसभा में भाजपा सांसद रामविचार नेताम ने मांग कि स्पेशल टीम भेजकर जाँच कराई जानी चाहिए.
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जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री डॉ. भारती प्रवीण पवार ने कहा कि जरूरत पड़ी तो टीम भेजेंगे. लेकिन राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वहां काम बेहतर करे, जो कि नहीं हो रहा है. वहीं दूसरी ओर इन आरोपों को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नकारते हुए कहा दिया कि ऐसा कुछ है ही नहीं, छत्तीसगढ़ सभी क्षेत्रों में अग्रणी है.
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