दिनेश कुमार द्विवेदी, मनेन्द्रगढ़। चिरमिरी की छोटी बाजार बंगला स्कूल दुर्गोत्सव समिति के भक्त पिछले 79 साल से पूजा करते आ रहे हैं. देश की आजादी के पहले से कोलकाता से माता की प्रतिमा ट्रेन के विशेष वैगन से मंगाकर पूजा किया जा रहा है. अभी के समय में भी लकड़ी के ढांचे से मूर्ति बनवाकर आदि शक्ति की आराधना कर रहे हैं.

जानकारी के अनुसार संभाग के चिरमिरी के छोटी बाजार बंगला स्कूल से विभूति भूषण लाहिड़ी ने वर्ष 1944 में बंगाल की तर्ज पर दुर्गा पूजा की शुरुआत की थी. उसके बाद पूरे सरगुजा संभाग में दुर्गोत्सव मनाने की परंपरा शुरू हुई.

आसपास माता की प्रतिमा नहीं मिलने के कारण कोलकाता से मालगाड़ी में मां दुर्गा की प्रतिमा को स्पेशल वैगन की बुकिंग कर मंगवाया गया था. करीब 79 साल से उसी प्रतिमा की लकड़ी के ढांचे में माता की प्रतिमा बनाने की परंपरा है.

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वहीं करीब तीन-चार दशक वेस्ट बंगाल के कारीगर चिरमिरी में आकर मां दुर्गा की प्रतिमा आज भी उसी तर्ज में बनाते हैं. कोलकाता से मूर्ति के कारीगर प्रतिमा को बनाने आते हैं. साथ ही पुजारी की टीम तारापीठ वेस्ट बंगाल आते हैं.

चिरमिरी में दुर्गा पूजा का इतिहास 79 साल पुराना है. समिति का कहना है कि चिरमिरी के पंडालों में माता की पूजा में ढाक बजाने के लिए हर साल कोलकाता से कलाकार आते हैं. उसके बिना मां दुर्गा की पूजा अधूरी मानी जाती है.

पूजा शुरू होने से पहले ही हर साल ढाक बजाने वाले पहुंच जाते हैं. दुर्गा पूजा की शुरुआत होने के साथ ढाक की आवाज में माहौल भक्तिमय हो जाता है.

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