सूरजपुर. अगर हिम्मत है और सही मौके की पहचान है तो ज़िंदगी बदल जाती है. इसकी बानगी दिखाई है सूरजपुर के रहने वाले आशीष तिवारी ने. आशीष तिवारी डेयरी चलाते हैं. सरकार की स्कीम का फायदा उठाते हुए उन्होंने डेयरी शुरु की. डेयरी बढ़िया चल रही है. इस वक्त वो करीब 20-25 हज़ार रुपये महीने का कमा ले रहे हैं. जिससे पूरे घर का खर्च चल रहा है.

लेकिन दो साल पहले जिंदगी ऐसी नहीं थी. आशीष पढ़ाई-लिखाई के बाद बेरोज़गार थे. बेरोज़गारी में उन्होंने हाथ में  उठा लिया. राजमिस्त्री का काम करते हुए ढाई सौ-तीन सौ रुपये कमाते थे. साथ में खेती बाड़ी थी. जिसके आसरे घर चल रहा था. लेकिन कमाई इतनी ही थी कि घर चल रहा था. न पत्नी की इच्छा पूरी कर पाते थे न ही घर के लिए ज्यादा कुछ कर पाते थे. एक बच्चा हाल में हुआ था. उसके परवरिश की चिंता आशीष तिवारी को सताती थी. हमेशा इस बात का मलाल होता कि इतनी पढ़ाई के बाद भी रेत और सीमेंट का काम करना पड़ रहा है. काम भी ऐसा था जिसमें रोज़ काम की गारंटी नहीं थी.

लेकिन इसी बीच में उन्हें सरकार की डेयरी उद्यमिता योजना के बारे में पता चला. आशीष ने सोचा एक बढ़िया मौका है नौकरी नहीं तो खुद का काम होगा. इसके बाद उन्होंने फौरन वेटनरी डॉक्टर से मुलाकात की. वेटनरी डॉक्टर ने उनका प्रोजेक्ट बनाया . फिर वे यूको बैंक गए और 12 लाख रुपये फाइनेंस कराया.

जैसे ही लोगों को पता चला कि आशीष तिवारी डेयरी खोलने जा रहे हैं, दलालों ने इनसे संपर्क करके सस्ते में गाय दिलाने का लालच दिया. ताकि सब्सिडी का पैसा बच सके. लेकिन तिवारी ने उन्हें साफ तौर से मना कर दिया. तिवारी ने कहा कि उन्हें डेयरी चलानी है, सब्सिडी नहीं बचानी है. तिवारी ने बढ़िया नस्ल की हाई यिल्डिंग गाय खरीदी. ये गाय उन्होंने लोकल न लेकर पंजाब से मंगाई. बढ़िया गाय के लिए कुछ पैसे उन्होंने अपनी जेब से लगाए. इसका फायदा हुआ कि दूध का शुरु से ही बंपर उत्पादन होने लगा. इसमें से एक गाय ऐसी थी जिसका रोज़ाना दूध तीस लीटर से ज़्यादा था.

चूंकि गाय ज़्यादा दूध देने वाली थी इसलिए तिवारी उनके रखरखाव और खानपान में कोई कोताही नहीं बरतते थे. कुछ ही दिनों में तिवारी जी की डेयरी में रोजाना 300 लीटर दूध का उत्पादन शुरु हो गया. महीने का करीब 3 लाख का टर्नओवर. चूंकि डेयरी में तिवारी जी नए थे. इसलिए जानकारी के अभाव में उनकी एक-एक करके पांच गाय मर गईं. लेकिन सरकार की योजना बढ़िया थी. योजना में पहले ही गायों का बीमा हो जाता है. जिससे बड़ा नुकसान नहीं हो पाया. थोड़ा-बहुत जो नुकसान हुआ वो डेयरी की कमाई से कवर हो गया.

तिवारी जी डेयरी में खुद लगे रहते हैं. वो कर्मचारियों के भरोसे कुछ नहीं छोड़ते. जब दूध का उत्पादन 300 लीटर था तब उनकी आमदनी करीब 70 से 80 हज़ार रुपये तमाम खर्चों को काटने के बाद थी. बाद में जब उत्पादन कम हुआ तो आय भी घटी लेकिन अभी भी वो 20 से 25 हज़ार रुपये महीना कमा रहे हैं. आशीष तिवारी का कहना है कि जल्द ही गाय फिर से बच्चा देंगी फिर उसके बाद दूध का उत्पादन बढ़ जाएगा और आमदनी भी बढ़ जाएगी.

दो साल पहले तक आशीष राजमिस्त्री से सफल व्यावसायी बन चुके हैं. वो कहते हैं कि जैसे ही बिश्रामपुर में पिल्खा डेयरी में दूध की खऱीदी शुरु हो जाएगी वे और मवेशी लाकर अपने व्यापार को बढ़ाएंगे. उनका पूरा परिवार आज सूखी है. वे अपने परिवार की जरुरतों को पूरा करते हैं. बच्चे को बढ़िया शिक्षा दे रहे हैं. सरकार की एक योजना ने एक युवा की ज़िंदगी की दिशा और दशा बदल दी.