शिवा यादव/विनोद दुबे
रायपुर। सुकमा के कसालपाड़ के जंगल में शनिवार को नक्सलियों और फोर्स के बीच मुठभेड़ हुई. इस मुठभेड़ में 17 जवान शहीद हो गए और 15 जवान घायल हैं, जिन्हें इलाज के लिए राजधानी रायपुर में भर्ती कराया गया है.  सुकमा के घने जंगलों में कैसे हमारे जवान हिड़मा के चक्रव्यूह कैसे फंस गए ? कब, कहाँ, कैसे और किन परिस्थितियों में ये घटना हुई इसकी सिलसिलेवार कहानी आप हमारे रिपोर्टर शिवा यादव से जानिये जिन्होंने ग्राउंड पर जाकर पूरी रिपोर्ट तैयार की.

तारीख़ 21 मार्च. समय दोपहर के करीब 2 बजे. शिवा के पास फोर्स और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ की खबर आई. शुरुआती जानकारी में दो जवानों के घायल होने की आई. शिवा ने पुलिस के अधिकारियों को ताबड़तोड़ फोन किया, लेकिन बड़े अधिकारियों से बात नहीं हो पाई. इस दौरान शिवा अपने स्तर पर जानकारी जुटाने में लगे रहे. उनके पास शाम होते-होते एक दुःखद ख़बर आई. खबर तीन जवानों के शहीद होने और दर्जनों जवानों के घायल होने की. जानकारी ये भी लगी कि कुछ नक्सली भी मारे गए हैं. यह सारी खबरें सिर्फ सूत्रों के हवाले से ही आ रही थी. कहीं से भी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हो रहा था.


कई ग्राउंड रिपोर्ट करने के साथ मुठभेड़ की लाइव रिपोर्टिंग कर चुके शिवा को अब यह एहसास हो चुका था हो न हो एक बड़ी घटना हुई है. शिवा अब पूरी तरह से अलर्ट हो गया था. पूर्व की घटनाओं के आधार पर ताजा घटना की कड़ियों को जोड़ते हुए शिवा मामले की जानकारी जुटाने में लगे रहा. इस बीच शाम ढलने और रात होने के बाद एक बड़ी जानकारी आई. शिवा को सूत्रों से पता चला कि घटना में शहीद जवानों की संख्या बढ़कर सात हो गई है. वहीं करीब 100 से अधिक जवान लापता हो गए हैं. घायल जवानों को बुर्कापाल कैंप लाया गया, वहाँ से रायपुर भेजा जा रहा है. इस खबर के आने के बाद लगातार अधिकारियों से फिर संपर्क करने की कोशिश करता है, लेकिन अधिकारी फोन काटने लगते हैं कोई भी अधिकारी बात नहीं कर रहे थे. इतनी बड़े केज्युअलटी की जानकारी शिवा रायपुर में अपने वरिष्ठ सहयोगियों को देता है. इस खबर ने सब की बेचैनी बढ़ा दी.

हांलाकि इस बीच एक खबर फिर आती है कि धीरे-धीरे कुछ जवान कैम्प लौट रहे हैं और 15 घायल जवानों को बुर्कापाल कैम्प लाकर उन्हें हेलीकॉप्टर से रायपुर भेज दिया गया. यह खबर आते ही यह पुख्ता हो गया था कि सूत्रों से जो जानकारी आ रही है वह सौ फीसदी सच है और इसका अंदाजा लग गया था कि यह घटना बहुत बड़ी है.

शिवा लगातार अपने विभिन्न सूत्रों के संपर्क में बना रहता है, आधी रात को उसके पास एक ऐसी जानकारी आती है, जिससे वह घबरा उठता है. वे दुःखी मन रायपुर में अपने सहयोगियों को जानकारी देता है. वह कहता है छत्तीसगढ़ पुलिस को एक बड़ी क्षति हुई है भईया. मेरे पास 15 से ज्यादा जवान शहीद होने की ख़बर आ रही है. कई जवान लापता भी हैं. यह ख़बर हम सबको बेचैन कर देती है. शिवा पूरी रात जागते रहता है. वह भोर होने का इंतज़ार कर रहा होता है.


तारीख़ 22 मार्च,  अलसुबह 4 बजे का समय. शिवा घटना स्थल के लिए जाने के लिए तैयार हो जाता है. घर से बाहर निकलते ही वह देखता है कि अँधेरा अभी पूरी तरह से छटा नहीं. फिर भी वह अपनी बाइक लेकर बुर्कापाल के लिए रवाना हो जाता है. उबड़-खाबड़ पथरीले कच्चे रास्तों का सफर तय कर जैसे ही वह चिंतागुफा पहुंचता है उसे चिंतागुफा थाना के पास रोक दिया गया. जानकारी मिली कि एक्स्ट्रा फोर्स जंगलों में भेजा गया है. जिसके बाद वे लोग बुर्कापाल पहुंचे जहां कैम्प के बाहर फिर उन्हें रोक दिया गया. फिर से अधिकारियों से उन्होंने सम्पर्क किया और घटना स्थल जाने की बात कही तो अधिकारियों का जवाब आया कि अंदर बड़ी संख्या में फोर्स गई हुई है और अनजान जंगल मे आईईडी का भी खतरा है. पहले जवानों को घटना स्थल पहुंच कर सर्चिंग कर लेने दो उसके बाद जा पाओगे. लेकिन तब तक ये बात क्लियर हो गई थी कि करीब 17 जवान शहीद हो चुके हैं. जिन्हें लेने डीआरजी, कोबरा, एसटीएफ की टीम मौके पर गई है.

शिवा और उसके साथी सुबह से ही कैम्प के सामने भूखे प्यासे बैठे रहे, करीब दो बजे बुर्कापाल कैम्प से दो ट्रैक्टर रवाना किया गया घटना स्थल जो कि जवानों का शव लाने जा रही थी तो वे भी उसके पीछे पीछे चिंतागुफा होते हुए जंगल के रास्ते निकल पड़े. फिर ट्रैक्टर से आगे निकल कर नदी नालों व पहाड़ो के बीच पगडण्डियों वाला रास्ता पकड़ कर अंदर जाने लगे. जब मिनपा गांव पहुंचे तो कुछ बुजुर्ग महिलाएं मिली, उनसे जगह की पातासजी करते हुए फिर आगे बढ़े जो कि मिनपा का रँगापारा था. जहां से कुछ दूर और चलने के बाद एक बड़ा सा नाला मिला, जिसे पार करके आगे बढ़े तो कुछ जवान दिखाई दिए. गाड़ी को खड़े करके उनके पास पहुंचे तो देखा कि जवान अपने साथी शहीद जवानों का शव उठा कर धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे. शिवा और उसके साथियों भी को रोक दिया गया.

वापस वे घटना स्थल आये और बारीकी से घटना स्थल की रिपोर्टिंग करने लगे. शिवा के मुताबिक उन्होंने वहां जो मंजर देखा वो बेहद भयावह था, किसी जवान का जूता पड़ा हुआ था, एक पॉलीथिन में खाना और अचार था, जो कि जवान जंगल में खाने के लिए साथ ले गए थे. जिसके बाद नजर उस बम पर पड़ी जो नक्सली मुठभेड़ के दौरान जवानों पर दागे गए थे जो फटा नहीं था. वह अब उनके लिए भी खतरनाक था. पास ही एक पेड़ में गोलियों की कई निशान मौजूद थे जो कि यह कहानी बता रहे थे कि मुठभेड़ कितनी भीषण रही होगी. जमीन पर फैले खून के निशान बता रहे थे कि यहां किसी घायल जवान ने दम तोड़ा होगा. उसके पास ही दो से तीन पेड़ों के नीचे फर्स्ट एड की कुछ दवाइयां, दर्द निवारक इंजेक्शन के खाली एम्पुल दिखे, जो असहनीय दर्द से कराहते जवान ने खुद को लगाया होगा.


शिवा दर्दनाक मंजर को बिना रुके बयाँ कर रहा था, वह कहता है कि फिर हम आगे बढे तो देखा की कुछ गोलियों का खाली खोखा, वायरलेस सेट का टूटा हुआ हिस्सा और बड़ी मात्रा में जवानों का बहा खून, जिस पर अब चींटियां लग गई थी. जंगल की पगडंडियां और पहाड़ी रास्तों से पैदल चलने के बाद बुर्कापाल कैम्प से करीब दो किलोमीटर पहले जवान दिखे. जब हम आगे बढ़े तो फिर रोका गया और कहा कि ये जगह आपकी रिपोर्टिंग के लिए उचित नहीं है. हम भी धीरे-धीरे उनके पीछे चलने लगे जैसे ही कैम्प के बिल्कुल नजदीक पहुंचे तब शहीद जवानों के शव नजर आए.. तब तक शाम के तकरीबन 5 बज चुके थे. उसके बाद हम दोरनापाल के लिए रवाना हुए. बड़ी संख्या में मीडिया कर्मी थे और सब जल्दी वापस पहुंचना चाहते थे कि अपने-अपने चैनलों और वेब पोर्टल के लिए जल्दी से जल्दी खबर भेजें. लिहाजा काफी जोखिम उठाते हुए मोटरसाइकिल को तेज गति से चलाते हुए नेटवर्क क्षेत्र में पहुंचकर अपने-अपने चेनलो में खबर भेजने लगे.

ग्राउंड रिपोर्ट-2 में हिड़मा का वो चक्रव्यूह जिसमें जवान फंसे…!