नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान आधार से संबंधित एक के बाद एक कई सवाल किए. कोर्ट ने पूछा कि क्या भारतीय नागरिक अपनी पहचान गोपनीय बनाए रखने पर जोर देते हुए सरकारी सुविधाएं मांग सकते हैं. उच्चतम न्यायालय ने आधार का विरोध करने वालों से कहा कि इसे भोजन, स्वास्थ्य या शिक्षा जैसे मूलभूत अधिकार पाने की शर्त नहीं बनाया जा सकता है.

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा ने आधार के खिलाफ दलील देने वाले दो सीनियर ऐडवोकेट्स से पूछा कि आपलोग कह रहे हैं कि पहचान को गोपनीय रखना संविधान की धारा 21 (जीवन और स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार) का हिस्सा है. तो फिर सवाल ये है कि क्या पहचान को इस तरह सार्वजनिक नहीं करना चैप्टर IV (इसमें राजकीय नीति निर्देशक सिद्धांत हैं) के तहत मिलने वाले हक के खिलाफ जाएगा.

कपिल सिब्बल ने सुनवाई के दौरान रखे अहम पक्ष

वहीं सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलील दी कि आधार अतार्किक है, क्योंकि ये अपनी शिनाख्त करने के बारे में नागरिक के पास कोई विकल्प ही नहीं रहने देता है. उन्होंने कहा कि ‘आइडेंटिटी प्रूफ नागरिक का चॉइस है, न कि राज्य का’. उन्होंने कहा कि वे पहचान पत्रों के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इनमें नागरिकों का हर ब्योरा होने पर जोर नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि इससे वे खतरे में पड़ सकते हैं.

कपिल सिब्बल ने कहा कि पूरा और सेंट्रलाइज्ड डेटा नहीं मांगा जाए, तो किसी भी आइडेंटिटी से उन्हें कोई परेशानी नहीं है क्योंकि पूरी जानकारी लिए जाने से पॉवर बैलेंस राज्य के पक्ष में झुक जाता है. उन्होंने ये भी दलील दी कि ‘मेरी आइडेंटिटी ऐसे संवेदनशील पर्सनल डेटा पर आधारित नहीं हो सकती है, जो सेंट्रलाइज्ड हो, सार्वजनिक दायरे में हो और जिससे मेरी ट्रांजैक्शनल हिस्ट्री पता चल जाती हो’.

गौरतलब है कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिनमें आधार ऐक्ट की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है.

सुप्रीम कोर्ट में सिब्बल ने ये भी कहा कि आधार स्कीम अकेले रहने के अधिकार जैसे अहम अधिकार का भी उल्लंघन करता है.

सिब्बल ने कहा कि फूड, हेल्थ और एजुकेशन के अधिकार जैसे बुनियादी अधिकार पाने के लिए आधार की शर्त नहीं रखी जा सकती है. उन्होंने कहा कि ऐसा करना नागरिकों को ऐसे अधिकारों से वंचित करने के बराबर होगा.