नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने एक अहम फैसले में कहा कि किसी भी मंदिर की जमीन पर सिर्फ भगवान का मालिकाना हक होता है, पुजारी या किसी सरकारी अधिकारी का नहीं. इसके लिए उन्होंने अयोध्या के राम जन्मभूमि फैसले का हवाला दिया. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार की उस अधिसूचना पर अपनी मुहर लगा दी जिसमें कहा गया था कि मंदिर की जमीन का मालिक उस मंदिर का पुजारी नहीं हो सकता.

दरअसल, ये अकसर देखने को मिलता है की मंदिर की जमीन पर पुजारी अपना अधिकार बना लेते हैं. सरकारी कागजात पर भी पुजारी का नाम लिख दिया जाता है. उसके बाद पुजारी अपनी मर्जी से मंदिर की जमीन को बेच देते हैं. इसलिए मध्य प्रदेश सरकार ने ये अधिसूचना जारी की कि मंदिर के जमीन पर पुजारी का मालिकाना हक नही होगा. पुजारी का काम सिर्फ मंदिर और उसकी जमीन का देखभाल करना है.

जमीन का मालिकाना हक किसी सरकारी अधिकारी का होगा जिसे सरकारी दस्तावेज में मैनेजर के तौर पर दर्ज किया जाएगा. वो सरकारी अधिकारी जमीन से जुड़े फैसले लेगा, लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला दिया कि मंदिर की जमीन का मालिकाना हक उस मंदिर में विराजमान भगवान का ही होगा. जैसा कि राम जन्मभूमि मामले में हुआ था.

शीर्ष न्यायालय ने कहा, ‘पुजारी का काम सिर्फ पूजा पाठ और जमीन की देखभाल तक ही सीमित होगा. सरकारी अधिकारी को भी मैनेजर के तौर पर मालिकाना हक नही दिया जा सकता. सरकारी दस्तावेज में भगवान का नाम ही दर्ज होगा. अगर मंदिर पूरी तरह से सरकार के अधीन है और उसका देखरेख सरकार करती है तो ऐसे में सरकारी अधिकारी मैनेजर बन सकता है.’

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