दुष्यंत मिश्रा, इंदौर। इंदौर जू (Indore Zoo) से भागा तेंदुआ 6वें दिन मंगलवार को रेस्क्यू कर लिया गया। इंदौर जू प्रबंधन और वन विभाग (Forest department) की टीम ने तेंदुए को रेस्ट हाउस के पास से रेस्क्यू किया। तेंदुए के रेस्क्यू के बाद प्रशासन ने राहत की सांस जरूर ली है, लेकिन अब भी तेंदुए के गायब होने के रहस्य से पर्दा नहीं उठा है। पकड़ाए तेंदुए को लेकर स्सपेंस अब भी कायम है। इसी बीच मामले में नया ट्विस्ट आ गया है। जिस तेंदुए का रेस्क्यू किया गया है, वो नर तेंदुआ है। जबकि वन विभाग ने मादा तेंदुए को बुरहानपुर से पकड़ने का जिक्र सरकारी कागजों में किया है। अब सवाल उठ रहा कि पकड़ा गया तेंदुआ क्या वास्तव में इंदौर जू से भागा हुआ तेंदुआ ही है। या फिर वन विभाग और इंदौर जू प्रबंधन की गलती के कारण नर की जगह मादा तेंदुआ लिखा गया होगा। 

बता दें कि 2 दिसंबर को बुरहानपुर के नजदीक से वन विभाग ने तेंदुए को पकड़ा था। जिसे देर रात इंदौर चिड़ियाघर में लाया गया था। रात में तेंदुआ क्रेज में ही था। सुबह जू कर्मचारी जब उसे देखने पहुंचे तो वह गायब था। तेंदुए को ढूंढने के लिए वन विभाग और जू प्रबंधन की 200 लोगों की टीम सर्चिंग करने में जुटी हुई थी। 6 दिनों बाद तेंदुआ को रहवासी क्षेत्र नवरतन बाग से वन विभाग और जो प्रबंधन ने तेंदुए को रेस्क्यू कर चिड़ियाघर लेकर आई थी।

अब सवाल यह खड़े किए जा रहे हैं कि जिस तेंदुआ का शरीर का पिछला हिस्सा पैरालिसिस होने के कारण पूरी तरह से काम नहीं कर रहा है। वह करीबन 1 से 2 किलोमीटर की दूरी कैसे तय कर लिया। साथ ही पीछे के दोनों पैर ताम नहीं करने के बावजूद जू की 20 फीट ऊंची दीवार को पैसे पार कर दया।

वही वन विभाग ने मादा तेंदुए को बुरहानपुर से पकड़ने का जिक्र सरकारी कागजों में किया है। वहीं जो तेंदुआ पकड़ा गया है वह नर है। इस पूरे मामले में वन मंत्री ने भी संज्ञान लेते हुए चिड़ियाघर का दौरा कर कार्रवाई की बात कही थी। वहीं अभी तक किसी भी तरह की कोई कार्रवाई नहीं हुई है। लेकिन फरार तेंदुए को पकड़े जाने के बाद फिर दोबारा से कई सवाल खड़े किए जा रहे हैं।

जू प्रबंधन और वन विभाग ने लगाए एक दूसरों पर लापरवाही के आरोप

वन विभाग की टीम द्वारा बुरहानपुर नेपानगर से तेंदुए का रेस्क्यू कर कर उसे इलाज के लिए इंदौर चिड़ियाघर लेकर पहुंची थी। गुरुवार रात 8 बजे इंदौर चिड़िया घर पहुंच चुकी थी टीम ने वन विभाग के डीएफओ बुरहानपुर प्रदीप मिश्रा को फोन पर सूचना दे दी थी इसके बाद अधिकारियों ने जू प्रभारी डॉ. उत्तम यादव को फोन लगाकर तेंदुए के इंदौर पहुंचने की सूचना दी पर डॉक्टर उत्तम यादव ने स्टाफ ना होने की बात कहकर सुबह तेंदुए को देखने की बात कही। इसके बाद जब जू प्रबंधन सुबह तेंदुए को देखने गाड़ी के पास पहुंचा तो तेंदुआ पिंजरे में नहीं मिला। इसके बाद जू प्रबंधन और वन विभाग आमने-सामने हो गया था। जू प्रबंधन का कहना था कि तेंदुआ यहां तक पहुंचा ही नहीं है। वहीं वन विभाग के अधिकारियों का कहना था कि जून में वन विभाग के अधिकारियों ने तेंदुए को पहुंचा दिया था। दोनों ही विभाग के अधिकारी अपनी गलतियां मानने को तैयार नहीं थे। वहीं तेंदुए के चिड़ियाघर के पास नवरतन बाग से मिलने पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं।

अब तक किसी अधिकारी पर नहीं हुई कोई कार्रवाई 

तेंदुए को लेकर इंदौर पहुंची वन विभाग की टीम आरजू प्रबंधन की एक बड़ी लापरवाही सामने आ रही है। इसे लेकर अब तक ना ही इंदौर नगर निगम ने जू प्रबंधन पर कोई कार्रवाई की और ना ही वन विभाग ने अपने अधिकारियों पर किसी प्रकार की अब तक कोई कार्रवाई की है। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि हर बार के रेस्क्यू में उन्हें एक अलग चीज सीखने को मिलती है। यह एक उनके लिए बड़ी सीख थी, जिसके बाद अब वह आगे से ध्यान रखेंगे कि पिंजरा किस तरीके का इस्तेमाल करना है। अधिकारियों के मुताबिक पिंजरा छोटा था. जिससे तेंदुआ बाहर निकल आया। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यह तेंदुआ किसी को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में नहीं था इसलिए डरने की कोई बात नहीं है। हालांकि वन विभाग के अधिकारियों की इस बात से यह सवाल खड़े होते हैं कि लोगों की जान खतरे में डालने वाला वन विभाग अब तक अपने कर्मचारियों पर कोई कार्यवाही नहीं करता दिखाई दे रहा है।

पिंजरों के रिपेयर पर वन विभाग हर सकता है लाखों रुपए खर्च 

दरअसल बुरहानपुर से जिस पिंजरे में तेंदुए को रेस्क्यू कर कर इंदौर लाया गया था उस पिंजरे की स्थिति सड़ी हुई थी। एक तरफ से पिंजरे कि जाली भी टूटी थी। जिससे तेंदुआ निकल कर भाग गया होगा। इन पंजों के रखरखाव के लिए हर 6 महीने में इंस्पेक्शन किया जाता है।  इस सेक्शन के दौरान खराब पिंजरों को रिपेयर या बदलने का काम किया जाता है। जिसमें लाखों रुपए का खर्च वन विभाग वाहन करता है। ऐसे में सवाल उठता है कि  पिंजरों के रखरखाव में लाखों रुपए का घोटाला भी हो सकता है।

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