रायपुर. महासमुंद जिला में वन अधिकारी के आदेश पर भालू को पुलिस द्वारा बर्बरता पूर्वक कई राउंड फायर कर मार देने का मामला अब जिला न्यायालय तक पहुँच गया है. गौरतलब है कि नवागांव के जंगल में भालू के हमले में 3 लोगों की मृत्यु हो गई थी. बाद में महासमुंद के डिप्टी डीएफओ ने मुख्य वन संरक्षक से मौखिक अनुमति मिलना बता कर पुलिस को भालू को गोली मारने के आदेश दिये थे. जिसके बाद पुलिस द्वारा कई राउण्ड गोलियां मारकर भालू को बर्बरता पूर्वक मार दिया गया था.
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महासंमुद वन मंडल के नवागांव, थाना पटेवा क्षेत्र में 12 मार्च 2016 को भालू को गोलियों से मारने के कारण दो वन अधिकारियों, थाना प्रभारी, सात पुलिस कर्मियों के विरूद्ध मुख्य न्यायिक दण्डाधिकारी महासमुंद के न्यायालय में आज रायपुर के कुणाल शुक्ला ने दोषियों के विरूद्ध एफआईआर दर्ज करने के लिये परिवाद प्रस्तुत किया. आपको यहाँ बता दें कि वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की धारा 51 के तहत किये गये अपराध के लिये 3 वर्ष से 7 वर्ष तक की सजा हो सकती है.
क्यों गलत थे वन अधिकारी:-
वन (संरक्षण) अधिनियम 1972 की धारा 11 के अनुसार भालू जो कि अनुसूची एक में दर्ज संरक्षित वन्य जीव है. भालू को मारने का आदेश देने का अधिकार सिर्फ राज्य का “मुख्य वन्य जीव संरक्षक” ही दे सकता है. जो कि छत्तीसगढ़ में प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) है. अतः डिप्टी डीएफओ ने भालू मारने का अवैध आदेश जारी किया.
क्यों गलत थी पुलिस:-
भालू को मारे जाने उपरांत गठित तीन वन सेवा के अधिकारियों की जांच समिति ने प्रतिवेदन में उल्लेखित है. भालू जंगल के अंदर अपने प्राकृतिक आवास में था. जिन दो व्यक्तियों की भालू ने जान लेना बताया गया वे स्वयं वन क्षेत्र के अंदर महुआ बीनने गये थे. बयानों के अनुसार एवं मौके पर रिकार्ड किये गये विडियो के अनुसार भालू किसी पर भी आक्रमण नहीं कर रहा था. भालू घटना स्थल पर इकट्ठा भीड़ से काफी दूर था. वन (संरक्षण) अधिनियम में प्रावधान है कि सद्भावना पूर्वक अपनी या किसी अन्य की प्रतिरक्षा में अनुसूचित एक में दर्ज वन्यप्राणी को मारने पर अपराध नहीं माना जावेगा. परंतु पुलिस कर्मियों ने डिप्टी डीएफओ के आदेश पर भालू को तब गोलियों से मार दिया. जब कि वह दूर था और किसी पर आक्रमण नहीं कर रहा था. जांच समिति ने सभी को निर्दोष पाया था. शुक्ला के अनुसार पुलिस को डिप्टी डीएफओ द्वारा जारी भालू मारने के आदेश का पालन नहीं करना था.
शुक्ला ने बताया कि प्रावधानों के अनुसार दोषियों के विरूद्ध सक्षम न्यायालय में परिवाद दायर करने के पूर्व उन्होंने भारत शासन पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के डायरेक्टर आफ वाइल्ड लाइफ प्रिजरवेशन, छत्तीसगढ़ शासन वन विभाग के प्रमुख सचिव तथा छत्तीसगढ़ के मुख्य जीव वन संरक्षक को 60 दिनों का नोटिस दे दिया था. बाद में महासंमुद एसपी से तथा थाना पटेवा में एफआईआर करने हेतु निवेदन किया गया. लंबे समय तक दोषियों के विरूद्ध एफआईआर नहीं किये जाने के कारण न्यायालय में विधिवत शिकायत दर्ज कर प्राथमिकी दर्ज करने हेतु आवेदन किया गया था.