पवन दुर्गम.बीजापुर.  दक्षिण बस्तर में साल 2005 में नक्सलियों के खिलाफ ग्रामीणों ने हुंकार भरी थी इसे सलवाजुड़ूम नाम दिया गया इस आंदोलन को सरकार भी समर्थन था. नक्सलियों से सीधी लड़ाई में इस आंदोलन से जुड़े कई लोग मारे गए, दुनियाभर के कई संगठन इसके खिलाफ उठ खड़े हुए, और सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे अवैध करार दिया. सलवाजुडूम में शामिल कई ग्रामीणों की नक्सलियों ने हत्या कर दी. इसके खत्म होने के बाद भी वे लोग खासतौर पर लालआतंक के निशाने पर होते हैं जो इसमें शामिल थे. इस तरह कई  इस हिंसा की आग में कई परिवार तबाह हो गए. कई मासूमों का बचपन छीन गया. ऐसे ही लोगों को सहारा देने के लिए आगे आए हैं मधुकर राव, वे यहां ऐसे कई बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया है, जिनके माता-पिता इस हिंसा की भेंट चढ़ चुके हैं.  गौरतलब है मधुकर राव भी सलवाजुडूम के संस्थापक सदस्यों में से एक थे.

 

कुटरू क्षेत्र से ही जहां सलवा जुडूम की नींव डाली गई था उसी कुटरू में मधुकर राव ने पंचशील स्कूल की नींव डाली. नक्सलवाद का दंश झेल रहे परिवार के लिए आशा और उम्मीद की किरण बनकर मधुकर राव असहाय और गरीब आदिवासी बच्चों को शिक्षा के माध्यम से अलख जगा रहे हैं.

जहां नक्सली भय से लोग जाने से कतराते हैं, वहां कुछ लोग बिना सरकारी मदद के अनाथ बच्चों का पालन-पोषण के साथ शिक्षा का अलख जगाए हुए हैं. नक्सली हादसों में मारे गए ग्रामीणों के 25 अनाथ बच्चों का सहारा बने कुटरू के पंचशील आश्रम में आज 157 बच्चे अपना भविष्य सुरक्षित करने में जुटे हैं.

नक्सलियों द्वारा मारे गये लोगों के बच्चों कि होती है परवरिश

छत्तीसगढ़ समाज संरक्षण एवं विकास समिति द्वारा संचालित पंचशील आश्रम शाला के संस्थापक के. मधुकर राव के मुताबिक साल  नक्सलियों के खिलाफ एकजुट होने वाले अधिकांश ग्रामीणों की नक्सलियों ने हत्या कर दी. इसी दौरान बेसहारा बच्चों को संरक्षण और शिक्षा देने के उद्देश्य से संस्था की स्थापना की गई. यहां ऐसे बच्चों की परवरिश की जाती है, जिनके माता पिता की हत्या नक्सलियों द्वारा की गई है.

बिना वेतन पढ़ाते है शिक्षक

शुरुआत में संस्था का संचालन पंचायत भवन में 25 बच्चे से किया. अब 157 बच्चों का पालन पोषण किया जा रहा है. क्षेत्र के व्यापारी, शिक्षक, पुलिस और अन्य लोग सहयोग करते हैं. स्कूल में बिना वेतन के सेवा दे रहे शिक्षक मंजू लकड़ा, कंचन लकड़ा, ममता कोरसा, राजेश मड़े और कीर्ति कुजूर ने बताया कि वे राशि की अपेक्षा नहीं रखते क्योंकि इन बच्चों को शिक्षा देकर उन्हें काफी गौरवांवित महसूस होता है.

डॉ. भंवर सिंह पोर्ते पुरस्कार का मिला सम्मान

बेसहारा बच्चों की परवरिश, शिक्षा और आदिवासियों की सेवा तथा आर्थिक उत्थान के लिए वर्ष 2014 में संस्था को छत्तीसगढ़ शासन द्वारा डॉ. भंवर सिंह पोर्ते आदिवासी स्मृति सेवा से नवाजा गया.