रायपुर– माहेश्वरी सभा द्वारा पारंपरिक पर्व गणगौर हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. सभा के सचिव कमल राठी ने बताया कि माहेश्वरी सभा द्वारा माता गवरजा की शोभायात्रा निकाली गई. इसी कड़ी में आज शाम 6.30 बजे माहेश्वरी भवन डूंडा में गवरजा जी की प्रसाद (गोठ) प्रारंभ होगी.

सभा के प्रचार-प्रसार प्रभारी सूरज प्रकाश राठी ने बताया कि सभाध्यक्ष संपत काबरा एवं कार्यक्रम संयोजक शिवरतन सादानी के नेतृत्व में गणगौर की गरिमामयी शोभायात्रा निकाली गई. गोपाल मंदिर में माता गवरजा एवं ईसर की युगल प्रतिमा की पूजा-अर्चना के बाद शोभायात्रा के लिए आकर्षक रूप से सजाएं गए रथ में स्थापना की गई. भाई गोवर्धन झंवर एवं भाई संदीप मर्दा ने युगल प्रतिमा की साज सम्हाल का कार्य किया.

शोभायात्रा गोपाल मंदिर सदर बाजार से गाजे-बाजे के साथ कोतवाली चौक,  मेघ मार्केट, बिजली ऑफिस चौक, सप्रे स्कूल, गणेश मंदिर चौक, बूढ़ापारा ढाल, सद्दानी चौक से मुख्य मार्ग होते हुए गोपाल मंदिर में विसर्जित हुई. इस अवसर पर सैकड़ों भक्त पारंपरिक राजस्थानी संस्कृति एवं पहनावे के साथ शोभायात्रा में सम्मिलित हुए. तीन घंटे की इस यात्रा के दौरान समाज के सभी वर्गों ने बढ़-चढ़कर अपनी सहभागिता दी. गवरजा माता की गीत गाकर समस्त लोग झूमने पर मजबूर कर दिया.

गीतों की श्रृखला में भाई भूपेन्द्र करवा ने चाली लाडेसर आ तो गौरी पूजन चाली,  गोपाल बजाज ईसरजी थांरी बोली प्यारी लागे प्रस्तुत कर समां बांधा. इसके बाद गीतों की लगभग झड़ी ही लग गई. शैलेन्द्र करवा, प्रेमरतन भट्टड़ (सुरेश), प्रेक्षा राठी, हर्षिता मल, श्रेया राठी आदि  बांध केसरिया पाग, ईसर जी गवरा न लेवण आया, एक बार आवोजी गवरजा म्हरा आगंणा…,  गवरल आवे रे.. आदि गीतों की अपनी दमदार आवाजों के साथ बरसात करते रहे। युवा वर्ग ने भरपूर साथ दिया.

मार्ग में अनेक स्थानों में माता गवरजा एवं इसरदेव का स्वागत पुष्पहार एवं खोल भरकर किया गया. सूरजप्रकाश राठी ने बताया कि इस अवसर पर पारंपरिक वेषभूषा की स्पर्धा का भी आयोजन किया गया था.

जिसके परिणाम इस प्रकार रहे-

ग्रुप एक : 1 भाविका नत्थानी, 2- श्रुती मूदड़ा, ग्रुप दो : 1- नम्रता राठी, 2-मोनीका मोहता, छोटे छोटे बच्चियां- 1,प्रियाशी मल, 2, स्वरा मोहता, 3, आकृति मोहता, 4, रिद्धि मोहता, पुरुष में डा. सतीश राठी, युवा-राघव डागा, बालक-रितेश बागडी़, शिशु- ध्रुव मल

सभा के अध्यक्ष संपत काबरा ने बताया कि गणगौर पर्व राजस्थान के सांस्कृतिक पर्वों में अत्यंत महत्वपूर्ण और बड़ी धूमधाम से मनाए जाने वाला त्योहार है. इसे विश्व के किसी भी कोने में रहने वाला हर राजस्थानी अपने जातीय पर्व को अवश्य मनाता है। यह पूजन बिना किसी पंडित के अपनी लोकशैली में संपन्न की जाती है. गणगौर पर्व राजस्थान का पारंपरिक गौरवशाली पर्व है. होलिका दहन के दूसरे दिवस से प्रारंभ होकर चैत्र सूद तीज तक 16 दिनों तक अखण्ड मनाये जाने वाला यह महापर्व एक महोत्सव रूप में राजस्थानी संस्कृति की अपनी अनूठी छटा बिखेरता है. पारिवारिक व सामाजिक दृष्टि से भी यह पर्व महत्वपूर्ण है. अखण्ड सौभाग्य की मंगलकामनाओं के साथ मनाए जाने वाले इस पर्व में माता गवरा जी (पार्वती जी) एवं ईसर जी (आराध्य भगवान शिव जी) की पूजा अर्चना की जाती है. माता की बाड़ी यानी जंवारे बोए जाने वाला स्थान पर नित्य पूजा एवं गीत गाए जाते हैं.

ज्योति राठी ने बताया कि माता पार्वती जिन्हें हम गणगोर, गवरजा, गौर, गवरल, गवरादे आदि नामों से भी संबोधित करते हैं की पूजा राजस्थान की माटी से जुड़ा हर व्यक्ति बहुत ही सम्मान,  अटूट श्रद्धा और उल्लास के साथ करता है. दांपत्य प्रेम के उच्च आदर्शों की शिक्षा देने वाले शिव पार्वती की पूजा ईशर गणगोर के रूप में की जाती है.

सुहागन स्त्रियां अटल सौभाग्य एवं कुंवारी कन्याएं सुयोग्य वर की कामना से गवर पूजती है. अंतिम दिन चैत्र शुक्ल तृतीया के पहले दिन बहु बेटियों को मेहंदी और व्यंजनों ख़िलाकर सिंजारा हेतु लाड़ लड़ाया जाता है.

तृतीया को सभी सुंदर वस्त्र, अलंकार धारण कर गणगोर पूजन, कहानी, नैवेद्य आरती करती है. इस पारंपरिक त्योहार में सोलह श्रृंगार का विशेष महत्व है. बेटी के विवाह के बाद उज्ववन कर गवर को धन्यवाद दिया जाता है. अंतिम दिन नदी, कुआं, बाबड़ी में गणगोर का विसर्जन कर माना जाता है कि गवर को ससुराल विदा किया है.