ज्ञान खरे, पामगढ़. पहले सावन सोमवार पर छत्तीसगढ़ की काशी लक्ष्मणेश्वर की नगरी मैं आज सुबह से लेकर शाम तक श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचे. भगवान लक्ष्मणेश्वर स्थित ‘लक्षलिंग’ में एक लाख चावल चढ़ाया जाता है और श्रद्धालुओं की असीम मान्यता होने के कारण दिन दिन श्रद्धालुओं का इजाफा होता जा आ रहा है.
8 वीं शताब्दी में बने लक्ष्मणेश्वर मंदिर की अपनी विरासत है. यह मंदिर अपनी स्थापत्य कला के लिए छत्तीसगढ़ ही नहीं, वरन् देश भर में जाना जाता है. कई बार यहां विदेशों से भी इतिहासकारों का आना हुआ है. खासकर, खरौद में एक और मंदिर ‘ईदलदेव’ है, जहां की ‘स्थापत्य कला’ देखते ही बनती है. इसी के चलते दूर-दूर से इस मंदिर को लोगों का हुजूम उमड़ता है, वहीं इतिहासकारों व पुराविदों के अध्ययन का केन्द्र, यह मंदिर बरसों से बना हुआ है.दूसरी ओर खरौद स्थित लक्ष्मणेश्वर मंदिर में सावन सोमवार के अलावा तेरस पर भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. साथ ही ‘महाशिवरात्रि’ पर हजारों लोग भगवान लक्ष्मणेश्वर के दर्शन के लिए उमड़ते हैं.
इस बारे में मंदिर के पुजारी सुधीर मिश्रा ने बताया कि 8 वीं सदी में बना यह मंदिर आज भी लोगों के आकर्षण का केन्द्र है. साथ ही भक्तों में भगवान लक्ष्मणेश्वर के प्रति असीम मान्यता है, क्योंकि यहां सच्चे मन से जो भी मांगा जाता है, वह मुराद पूरी होती है. लिहाजा छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि दूसरे राज्यों से भी दर्शनार्थी आते हैं. सावन सोमवार के दिन सुबह से मंदिर में लंबी कतारें लग जाती हैं, इससे पहले रात्रि से ही कांवरियों का जत्था का धार्मिक नगरी में आगमन हो जाता है और वे भगवान के गान कर रतजगा भी करते हैं. उन्होंने बताया कि लक्ष्मणेश्वर में जो लक्षलिंग स्थित है, वैसा किसी भी शिव मंदिर में देखने को नहीं मिलता. यही कारण है कि लोग, भगवान के एक झलक पाने चले आते हैं.
जमीं से 30 फीट उपर
भगवान लक्ष्मणेश्वर मंदिर में जो लक्षलिंग स्थित है, जिसमें एक लाख छिद्र होने की मान्यता है. वह जमीन से करीब 30 फीट उपर है और इसे स्वयंभू लिंग भी माना जाता है। लक्षलिंग पर चढ़ाया जल मंदिर के पीछे स्थित कुण्ड में चले जाने की भी मान्यता है, क्योंकि कुण्ड कभी सूखता नहीं।
क्षयरोग होता है दूर
ऐसी भी मान्यता है कि भगवान लक्ष्मणेश्वर के दर्शन मात्र से क्षयरोग दूर हो जाता है. बरसों से लोगों मे मन में यह आस्था कायम है और इसके कारण भी भक्त दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं