रायपुर- डॉ. भीमराव अम्बेडकर अस्पताल के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट में कार्डियोथोरेसिक वैस्कुलर सर्जरी विभाग द्वारा एक मरीज के पेट में कृत्रिम नस लगाकर नई जिंदगी दी गई. इस बीमारी को मेडिकल भाषा में ”एओर्टा इलियक ब्लाक” कहा जाता है तथा मरीज का जीवन जिस चिकित्सकीय प्रक्रिया के तहत बचाया जा सका उसे ”एओर्टो बाईफीमोरल बाईपास“ कहा जाता है. कार्डियोथोरेसिक वैस्कुलर सर्जन एवं विभागाध्यक्ष सीटीवीएस डॉ. कृष्णकांत साहू एवं उनकी टीम द्वारा यह जटिल एवं हाई रिस्क सर्जरी की गई. मरीज की स्थिति अभी बेहतर है और वह डिस्चार्ज लेकर घर जाने को तैयार है.
पैर में लम्बे समय से दर्द की शिकायत
पेशे से ड्राइवर 50 वर्षीय सुरेश को 10 साल से चलते समय पैर में दर्द की शिकायत रहती थी. दर्द को कम करने के लिये वह किसी तरह दर्द निवारक दवाईयां लेकर काम चलाते रहा. धीरे-धीरे पैर का दर्द बढ़ने लगा एवं इस कदर बढ़ गया कि अब बैठे-बैठे ही दर्द होने लगा, फिर भी स्थानीय डॉक्टर को दिखाकर केवल पेन किलर लेते रहा. अब बीमारी इतनी बढ़ गई कि उसके पैर में घाव हो गया जो ठीक ही नहीं हो रहा था एवं गैंगरीन का रूप ले लिया था. पैर काटने की नौबत आ गयी थी. किसी चिकित्सक के पास जाकर पता चला कि यह बीमारी पैर की खून की नसों के रूकावट के कारण होता है. समाचार पत्रों के माध्यम से अवगत हुआ कि अम्बेडकर अस्पताल के एसीआई में फेफड़े एवं खून की नसों की बीमारी का उपचार होता है. मरीज को बचपन से बीड़ी की लत लग गयी थी. बड़ों के मना करने पर भी बीड़ी पीना नहीं छोड़ा था.
महाधमनी एब्डोमिनल एओर्टा में थी रूकावट
पेट एवं पैर की खून की नसों के सी.टी. एन्जियोग्राफी से पता चला कि शरीर की महाधमनी जिसे एओर्टा कहा जाता है उसमें रूकावट आ गयी है. इस महाधमनी को एब्डोमिनल एओर्टा कहा जाता है. इसका कार्य हृदय के शुद्ध रक्त को पेट के अंगों जैसे कि लीवर, किडनी, अंतड़ी इत्यादि एवं दोनों पैरों में पहुंचाना होता है जिससे कि शरीर का वह अंग सुचारू रूप से कार्य करे. यदि इस धमनी में रूकावट आ जाती है तो वह अंग मृत होना प्रारंभ कर देती है और मरीज के पैर में गैंगरीन होना प्रारंभ हो जाता है. इस बीमारी को मेडिकल भाषा में एओर्टो इलियक ब्लाक कहा जाता है.
यह बीमारी उसी प्रकार की है जैसे कि हृदय की धमनी जिसको कोरोनरी आर्टरी कहते हैं के ब्लाक होने से होता है, जिसमें मरीज को हार्ट अटैक हो जाता है. सामान्य भाषा में इस बीमारी को पेरीफेरल वैस्कुलर डिजीस (पीवीडी) कहा जाता है. इस प्रकार के मरीजों को दिल का दौरा एवं ब्रेन स्ट्रोक होने का खतरा ज्यादा होता है. यह बीमारी धूम्रपान, गुटखा खाने, तंबाकू का सेवन, अनियंत्रित डायबिटीज एवं वैस्कुलाइटिस में होता है. डॉ. कृष्णकांत साहू के मुताबिक ओपीडी में रोज 4 से 6 मरीज नस की बीमारी वाले होते हैं. उनमें से 95 प्रतिशत लोग धूम्रपान के आदी होते हैं.
मुम्बई से मंगाया आर्टिफिशियल ग्रॉफ्ट
नस की सीटी स्कैन देखने से पता चला कि इसके पेट की महाधमनी में रूकावट है एवं रूकावट को दूर करने के लिए कृत्रिम नस (आर्टिफिशियल ग्रॉफ्ट) की आवश्यकता है. यह ग्राफ्ट शहर में उपलब्ध नहीं होने के कारण इसको मुम्बई से मंगाना पड़ा जिसके लिये मरीज को आठ दिन तक इंतजार करना पड़ा. इस ग्रॉफ्ट को वाई शेप्ड ग्रॉफ्ट कहा जाता है.
ऐसे की गई सर्जरी
मरीज के परिजनों से हाई रिस्क कन्सेन्ट लिया गया क्योंकि यह बहुत ही जटिल एवं जोखिम से भरी सर्जरी होती है. इसमें जरा सा भी चूक होने पर कुछ ही सेकंड में अत्यधिक रक्तस्त्राव से मरीज की जान जा सकती है. नस फट भी सकता है. सर्जरी के लिये सबसे पहले मरीज को पूरी तरह बेहोश करके पेट को खोल कर एवं अंतड़ियों को बाहर निकालकर एब्डोमिन एओर्टा एवं कॉमन फीमोरल आर्टरी (दायें एवं बायें) को एक्सपोज किया गया फिर खून पतला करने की दवाई लगाई गई जिससे खून पतला हो जाता है एवं खून के प्रवाह को रोकने पर भी खून का थक्का नहीं बनता. फिर एक विशेष प्रकार के वैस्कुलर क्लैम्प से जिसको पर्शियल ऑक्लूजन क्लैंप कहा जाता है उससे महाधमनी को इस प्रकार बंद किया गया कि बाकी के अंगों में रक्त प्रवाह बना रहे एवं जिस भाग में कृत्रिम नस को ग्रॉफ्टिंग करना है उसे रक्त विहीन बनाया गया फिर 7 X 14 मिलीमीटर एवं 15 सेंटीमीटर लम्बाई के डेक्रॉन ग्रॉफ्ट (वाई शेप्ड ग्रॉफ्ट) को बीमारी वाली मुख्य धमनी को बायपास करके लगा दिया गया, जिससे की दोनों पैरों में रक्त का प्रवाह पुनः प्रारंभ हो गया एवं मरीज को दर्द से राहत मिल गया एवं पैर कटने से बचाया जा सका.
ऑपरेशन के बाद दोनों पैरों में रक्त का पुनः संचार प्रारंभ हो गया एवं मरीज को दर्द से निजात मिल गया. उसके घाव भरने की उम्मीद भी बढ़ गयी. यह ऑपरेशन साढ़े तीन घंटे तक चला जिसमें 4 यूनिट रक्त की आवश्यकता हुई. इस ऑपरेशन को मेडिकल भाषा में एओर्टो बाईफीमोरल बाईपास कहा जाता है. यह ऑपरेशन प्रदेश के किसी भी सरकारी संस्थान में पहला है तथा केवल गिने चुने संस्थानों में वैस्कुलर सर्जन द्वारा ही किया जाता है.
विशेषज्ञों की टीम
सर्जन- डॉ. कृष्णकांत साहू (विभागाध्यक्ष कार्डियोथोरेसिक एवं वैस्कुलर सर्जन)
निश्चेतना – डॉ. ओपी सुंदरानी, नर्सिंग स्टॉफ – राजेन्द्र, चोवा राम।