विप्लव गुप्ता. पेंड्रा. जल संसाधन विभाग मरवाही के लोअर सोन डाइवर्सन से लेकर ग्राम पंचायत बंशिताल तक घोषित नहर विगत 14 वर्ष पूर्ण होने के बाद भी अभी तक किसानों को पानी देने में असमर्थ रही है. एक ओर जहां किसान अपने आप को ठगा महसूस कर रहे है वहीं दूसरी और जल संसाधन विभाग देर से मिली वन विभाग की अनापत्ति को सिंचाई में हुई देरी के लिए जिम्मेदार बता रहा है. अब हालात यह है की जगह जगह से नहर टूट चुकी है. समतल हो चुकी है और इन सब का परिणाम किसानों को भुगतना पड़ रहा है.

वर्ष 2005 में ग्राम सुराज अभियान के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह मरवाही विकासखंड के ग्राम बंशिताल पहुंचे, तब वहां के ग्रामीणों ने उनको सिचाई के लिए जल की समस्या से अवगत कराया और उसी सभा में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने लोअर सोन से लेकर ग्राम पंचायत बंशिताल तक नहर की घोषणा की और जल संसाधन विभाग मरवाही के द्वारा ग्राम मटियाडांड़ तक आई नहर को ही लगभग 5 किमी बढ़कर ग्राम बंशिताल तक लाना सुनिश्चित किया गया. सर्वे के किसानों की जमीन का अधिग्रहण कर निर्माण कार्य शुरू किया गया, लेकिन अभी तक जल संसाधन विभाग नहर को पूरा करने में असमर्थ रहा है और किसान अपनी जमीन देने के बाद भी पानी न मिलने के कारन हताश हो चुके है. अब किसानों की पीड़ा यह है कि जिस पानी की आस में उन्होंने अपनी भूमि भी शासन को दे दी, लेकिन एक दशक से ज्यादा समय होने के बाद भी अब तक उनको सिचाई के लिए पानी नसीब नहीं हुआ.

ग्राम 2005 से स्वीकृत इस नहर से लगभग 300 हेक्टेयर भूमि की सिचाई होनी थी और बंशिताल के ही लगभग 200 किसान परिवारों को इसका लाभ मिलना था. लेकिन अभी तक इस नहर के शुरू न होने के कारण किसानों को लगातार परेशानी का सामना करना पड़ रहा है और अब तो किसानों ने उम्मीद भी छोड़ दी है.

मरवाही जल संसाधन विभाग एसडीओ बृजराज जादोन का कहना है कि वन विभाग द्वारा एनओसी देर से मिलने के कारण नहर में देरी हुई है. अब लगभग कार्य पूरा है सिर्फ लाइनिंग का कार्य बचा हुआ है. लोअर सोन डाइवर्सन में आरसीसी वर्क के ऊपर किया प्लास्टर कुछ जगह से उखड़ गया है, लेकिन लीकेज पेरमिसेबल है. जल्द से जल्द ग्रामीणों को पानी दिया जाएगा.

इस नहर को बनने में अब तक 407 लाख रूपये लग चुके है. जल संसाधन विभाग द्वारा नहर निर्माण में वन विभाग से पहले 3 हेक्टेयर भूमि की अनापत्ति मांगी गयी जिसके कारन मामला 10 वर्षो तक अटका रहा, फिर 1  हेक्टेयर भूमि में स्वीकृति लेकर कार्य को कर दिया गया, सवाल यह है की जब 1 हेक्टेयर भूमि में ही कर योजना को अंजाम दिया जा सकता था, तो 3 हेक्टेयर भूमि की मांग क्यों की गई और इस लेट लतीफी का पूरा भुगतान पानी की आस में अपनी कृषि भूमि को शासन को सौंपने वाले किसानों को भुगतना पड़ रहा है.