अंबिकापुर। इन दिनों सोशल मीडिया में एक चेक वायरल हो रहा है. चेक वायरल होने की वजह उसमें लिखी गई रकम है. चेक में एक निश्चित रकम लिखने की बजाय “लगभग” लिखा गया है.
दरअसल आरटीआई कार्यकर्ता एएन पाण्डेय ने महिला एवं बाल विकास विभाग से सूचना के अधिकार के तहत कुछ जानकारी चाही थी. जिसके एवज में विभाग द्वारा 1 सप्ताह बाद उन्हें 32 हजार 5 सौ 30 रुपए जमा करने के लिए कहा गया लेकिन उन्होंने जिन पेजों के बदले पैसा जमा करने के लिए कहा गया वह 16 हजार 2 सौ 65 पेज की जानकारी है लेकिन इसमें विभाग द्वारा इन पेजों की निश्चित संख्या न लिखकर “लगभग” लिखा गया.
लिहाजा आरटीआई कार्यकर्ता ने भी जो चेक दिया वह भी “लगभग” लिखकर भेज दिया. लेकिन उन्होंने जो चेक जमा किया उसके साथ ही एक पत्र को भी संलग्न किया जिसमें उन्होंने विधि विरुद्ध शुल्क निर्धारण किए जाने का विभाग के ऊपर आरोप लगाया है.
इस मामले में आरटीआई कार्यकर्ता पांडे ने लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत में कहा कि इस तरह की राशि की मांग विभाग की मंशा को साफ जाहिर कर रही है कि जानकारी विभाग नहीं देना चाह रहा. उन्होंने कहा कि इस तरह की ऊलजलूल राशि की मांग करने के पीछे विभाग की मंशा है कि जानकारी मांगने वाला घबरा जाए और जानकारी नहीं मांगे. उन्होंने कहा कि जानकारी पेन ड्राइव या सीडी में भी दी जा सकती थी.
ये है लापरवाही
इस मामले में महिला एवं बाल विकास विभाग की बड़ी लापरवाही सामने आई है. प्रथम तो विभाग द्वारा “लगभग” शब्द का इस्तेमाल किया गया वहीं दूसरी बड़ी लापरवाही आवेदक को बगैर अवलोकन कराए उनसे नियम विरुद्ध पैसे जमा करने के लिए कहा गया. इस मामले में महिला एवं बाल विकास विभाग अधिकारी निशा मिश्रा से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने बात करने से इंकार कर दिया. वहीं जब विभाग की गलती की वजह से यह मामला सोशल मीडिया में वायरल होने लगा तो अधिकारी ने अपनी विभाग की गलती मानते हुए. आवेदक को पत्र लिखकर अवलोकन करने के लिए कहा है.
ये है नियम
आरटीआई के नियम के अनुसार 50 पृष्ठ या 100 रुपए से ज्यादा होने पर आवेदनकर्ता को अवलोकन करने के पश्चात चाहे गए पेजों को दिया जा सकता है. उसमें भी अगर आवेदनकर्ता चाहे तो उसे सीडी या फिर पेन ड्राईव में भी जानकारी उपलब्ध कराई जा सकती है. लेकिन विभाग द्वारा ऐसा नहीं किया गया. विभाग द्वारा सीधे 32 हजार रुपयों की मांग की गई. आरटीआई कार्यकर्ता एएन पाण्डेय ने बताया कि सरकार द्वारा पार्दशिता के लिए आरटीआई लागू किया गया. लेकिन अधिकारियों की मनमानी की वजह से इसमें संशोधन करके आवेदक की इच्छानुसार उसे जानकारी देने के लिए प्रावधान किया गया. उसके बावजूद अधिकारी नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं.