रायपुर। तत्कालीन बीजेपी सरकार के दौरान दुर्ग ज़िले और बेमेतरा के गौ-शालाओं में गायों की मौत के मामले में बनी न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट को बुधवार को विधानसभा में पेश किया गया। आयोग ने अपनी जांच रिपोर्ट में गौसेवा आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष विशेषर पटेल सहित सभी गौशाला संचालकों को जिम्मेदार ठहराया गया है।

अनुदान राशि दी होती तो नहीं होती भूख से मौत- आयोग

रिपोर्ट में कहा गया है कि तीनों गौशाला प्रबंधन अगर पशुओं को आहार खिलाते, भूखा नहीं रखते और विशेषर पटेल तत्कालीन अध्यक्ष गौसेवा आयोग द्वारा समय पर पोषण आहार अनुदान राशि दे दी गई होती तो यह घटना घटित नहीं होती। घटना को घटित होने से रोका जा सकता था। घटना के लिए शगुन गौशाला के अध्यक्ष हरिश वर्मा, शगुन गौशाला की संरक्षक सरस्वती वर्मा, फूलचंद गौशाला की अध्यक्ष लक्ष्मी देवी और मयूरी गौरक्षा केन्द्र के अध्यक्ष एम. नारायण अध्यक्ष के साथ ही तत्कालीन गौसेवा आयोग के अध्यक्ष विशेषर पटेल सभी घटना के लिए समान रूप से उत्तरदायी हैं।

आपको बता दें 16 अगस्त साल 2017 को दुर्ग जिले के धमधा ब्लॉक स्थित ग्राम राजपुर के शगुन गौशाल और 17 अगस्त को बेमेतरा जिले के साजा ब्लॉक स्थित ग्राम गोडमर्रा के फूलचंद और ग्राम रानो के मयूरी गौशाला में 223 मवेशियों की मौत हुई थी। मवेशियों की मौत के हंगामे के बाद जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन किया गया था। लगभग 4 साल चली जांच के बाद आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। जिसे आज विधानसभा में पेश किया गया। आयोग ने प्रदेश में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए और प्रबंधन में सुधार के लिए अपने सुझाव भी सरकार को दिए हैं।

इन बिन्दुओं पर हुई जांच

जांच आयोग ने 5 बिन्दुओं पर जांच की और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए अपने सुझाव सरकार को दिए हैंत। जिसमें कितने पशुओं की मृत्यु, किन कारणों से हई है?  क्या उक्त घटना घटित होने से रोकी जा सकती थी। घटना के लिए कौन-कौन उत्तरदायी है ? घटना की पुनरावृत्ति न हो इस उद्देश्य से गौशालाओं के समुचित प्रबंधन हेतु क्या-क्या सुधार किये जावें ? गौशाला पंजीयन एवं अनुदान को और प्रभावी बनाने हेतु और क्या-क्या सुधार किया जावे ? गौशालाओं के प्रबंधन को अनवरत रूप से व्यवस्थित रखने के लिए विधि के प्रावधानों को किस प्रकार प्रभावी बनाया जावे ?