अंबिकापुर. सरगुजा जिला प्रशासन ने अस्पताल में चिकित्सकों की उपस्थिति को सुचारु रुप से बनाने के लिए बड़ा ही नायाब तरीका इजाद किया है. मेडिकल कालेज अस्पताल के डाक्टरों को लाख समझाने के बाद भी डाक्टरों की उपस्थति को लेकर सुधार नहीं हुआ तो प्रशासन ने कुछ ऐसा कर दिया की प्रदेश में सरगुजा का जिला चिकित्सालय सबसे अलग बनता दिख रहा है. प्रशासन ने  डिस्ट्रिक्ट मेडिकल असेसमेंट एंड अप्रेसल नाम का ऐसा एप्प बनाया है. जिसके बाद सरगुजा संभाग के सबसे बड़े अस्पताल की  पहचान अब डिजिटल अस्पताल के तौर पर बनती दिख रही है.

जिला अस्पताल की बदतर स्थिति से निपटने सरगुजा प्रशासन ने  डिस्ट्रिक्ट मेडिकल एससमेंट एंड एप्रेज़ल यानी डीएमएएए नाम का एक एंड्राईड एल्पिकेशन बनाकर इसका उपयोग भी शुरु कर दिया गया है. इस एंड्राईड एप्लिकेशन के शुरू होने के बाद मेडिकल कालेज अपस्ताल में सब कुछ बदल सा गया है. जहाँ आये दिन शिकायतें मिलती थी कि मरीजों को समय पर खाना नहीं मिल पा रहा, कभी चिकित्सक समय पर अस्पताल नहीं पहुँचते.

इन शिकायतों को दूर करने के लिए अस्पताल के प्रशासन का ज़िम्मा संभाल रहे प्रशिक्षु आईएएस नितिन गौड़ ने एक एक आईटी एक्सपर्ट राजेश कुमार कुशवाहा की मदद से एप्प बनवाया. डीएमएएए नाम के इस एप्प का इस्तेमाल करके बहुत ही कम समय में पूरे अस्पताल की चरमराई व्यवस्था को दुरुस्त करने की दिशा में काम शुरु हो गया.सिर्फ चार महीने में इसका असर दिखने लगा है.  

इस एप्प के जरिए डाक्टर दिन में दो बार अस्पताल में राउंड के समय अपने मरीज की मेडिकल नोट्स की फोटो बेड नंबर के साथ क्लिक कर एंड्राईड एप्लिकेशन में अपलोड करेंगे. साथ ही कुछ स्टाफ़  मरीजो के भोजन की थाली की फोटो अपलोड करेंगे. जिसकी मानिटरिंग कर प्रशासन यह सुनिश्चित कर सकेगा कि सब ठीक चल रहा है या नहीं.

हम आपको बता दे कि गौड़ ने यूपीएससी में काम करने की इच्छा के कारण छत्तीसगढ़ को चुना.गौड़ एमबीबीएस डॉक्टर हैं. इसके बाद वे यूपीएससी में चुने गए. वो भी ऑल इंडिया 69 रैंकिग के साथ.

इस एप्प की मदद से अस्पताल की व्यवस्था सुधरती दिख रही है. मरीज काफ़ी ख़ुश नजर आ रहे हैं. बहरहाल मरीज़ों की ख़ुशी  इस बात को लेकर ही नहीं है कि उन्हें खाना पहले से बेहतर मिल रहा है बल्कि ख़ुशी इस बात से है कि ग्रामीण और दूरस्थ इलाकों से आये मरीजों को चिकित्सक कम से कम दिन में दो बार देख रहें हैं. ईलाज के लिए पहले चिकित्सकों को ढूँढना पड़ता था. अब वे खुद ही मरीज़ों के बेड तक पहुँच कर उनका ईलाज कर रहे हैं.