दिल्ली. इन दिनों फिल्म जीरो के बाद बउवा को जानने की जिज्ञासा लोगों की लगातार बढ़ती जा रही है।

भारत के असम में बौने लोगों का अनोखा गांव बसा है। बौनों के गांव को अमार गांव यानी हमारा गांव भी कहा जाता है। बचपन में आपने लिलिपुट आइलैंड को किताबों में तो पढ़ा ही होगा। भारत-भूटान सीमा से कोई तीन-चार किलोमीटर पहले अमार नाम के इस गांव में 70 लोग रहते हैं। दूसरे गांवों के लोग इसे बौनों का गांव कहते हैं और गांव को बसाने वाले पबित्र राभा को बौनों का सरदार माना जाता है। अमार में किसी भी शख्स की ऊंचाई साढ़े तीन फीट से ज्यादा नहीं है। यहां कोई अपनी इच्छा से रहने आया है तो किसी को उसी के परिवार वाले यहां छोड़कर गए हैं।

अमार गांव के लोगों का कद भले ही छोटा हो लेकिन इनकी सोच और इरादे पहाड़ जितने ऊंचे हैं। यहां के ये बौने लोग दिन में खेतीबाड़ी करते हैं और शाम होते ही रंगमंच के कलाकार के तौर पर नजर आने लगते हैं और शुरू हो जाता है नाटक का दौर।

ये गांव दुनिया में होते हुए भी दुनिया से अलग है। आसपास के लोग जब यहां आते हैं तो छोटे कद की इस नाटक मंडली के नाटक देखकर इनकी जमकर तारीफ भी करते हैं। पूरे गांव में दो मंजिला लकड़ी के घर हैं, जिनमें ये लोग रहते हैं।

इस गांव को बसाने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। बताया जाता है कि अमार गांव को 2011 में बौनों के सरदार पबित्र राभा ने बसाया था। राभा नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से निकले रंगमंच कलाकार हैं। यह वही संस्थान है जिसनें ओमपुरी, इरफान खान, नवाजुद्दीव सिद्दीकी जैसे न जाने कितने मंझे कलाकार बॉलीवुड को दिए हैं।