किसकी वजह से जल्द खत्म हुई विधानसभा?

विधानसभा के आखिरी दिन कांग्रेस विधायकों ने प्रश्नकाल में ही हंगामा शुरू कर दिया। लेकिन कांग्रेस विधायकों की वजह से इतना विध्न हुआ कि जो काम सदन में दिन भर में निपटाया जाना था वह शोर शराबे की भेंट चढ़कर बेहद जल्द निपट गया। बाधा इतनी थी कि इसी वक्त सदन में मुख्यमंत्री सचिवालय की तरफ से प्लान किया गया अहम वक्तव्य भी हंगामे की वजह से शुरू ही नहीं हो सका। इसके बाद सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। बाहर आकर सत्तापक्ष ने आरोप लगाए कि कांग्रेस की वजह से सदन की कार्यवाही बाधित हुई। लेकिन एक चर्चा यह भी छिड़ी की एक दिग्गज नेता को एक ज़रूरी काम था, जिसकी वजह से सत्र का समाप्त होना ज़रूरी है। इस नेता के ज़रूरी काम की वजह से हंगामा तेज हुआ और सत्र को खत्म कर दिया गया। सियासी गलियारों में हो रही चर्चाओं में उस नेता की खोज की जा रही है।

तेजतर्रार मंत्राणी के नाफरमान अफसर

शिवराज सरकार की एक तेज तर्रार मंत्राणी ने अपने विभाग के अंतर्गत आने वाली एक स्वायत्त संस्था के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी से ज़बरदस्त नाराज़ हैं। मंत्राणी ने सख्त लहजे में निर्देश दिए कि अधिकारी को हटाकर किसी और को बैठाया जाए। मंत्राणी के तेवर देखकर अधिकारी को हटाने के लिए नोटशीट भी चल गई। सीधे प्रमुख सचिव ने नए आदेश निकालकर मुख्य प्रशासनिक अधिकारी को हटा दिया। पता चला है कि नोट शीट रिवर्ट कर दी गई। इसके पीछे दो अफसरों का दिमाग और दबाव काम कर रहा था। इनमें से एक पूर्व आईएएस है और दूसरे वर्तमान में हैं। इनका मंत्राणी के विभाग से गहरा लगाव है। इन अफसरों ने ऐसा दिमाग लगाया कि मंत्री के निर्देश पर हटाने की नोटशीट चलाने वाले विभाग प्रमुख ने अब अपने ही आदेश को पलटने का आदेश जारी कर दिया है। फिलहाल ये खबर मंत्राणी तक नहीं पहुंची है। खबर तो यह भी है कि मंत्राणीजी के पास पार्टी के कई दिग्गज नेताओं ने मुख्य प्रशासनिक अधिकारी की शिकायत कर दी है। ये अफसर पिछले दिनों अपनी एक पुरानी किताब को लेकर विवाद में भी रहे हैं। जहां तक बचाने वाले अफसरों का सवाल है तो ये बताते चलें कि इन दोनों पूर्व और वर्तमान आईएएस अफसरों का कला-संस्कृति और साहित्य से गहरा नाता है।

दतिया में घमासान, भोपाल मेहरबान

दतिया कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है। यहां कांग्रेस के ही नेता एक-दूसरे के खिलाफ पुलिस थानों में पहुंच रहे हैं। पदाधिकारी होकर भी एक दूसरे के खिलाफ जमकर आग उगल रहे हैं। कांग्रेस की सरकार रहने तक पार्टी में यह जिला सिंधिया के प्रभाव वाले इलाकों में गिना जाता था। सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के बाद समझा जा रहा था कि यहां वर्चस्व की लड़ाई खत्म हो जाएगी, लेकिन इसका उलट होने लगा है। नए जिलाध्यक्ष की ताजपोशी के पहले कमल नाथ ने काफी ठोंक बजाकर रिपोर्ट ली थी। ताजपोशी के बाद अब भोपाल में दतिया जिलाध्यक्ष की शिकायतें पहुंचाई जा रही हैं। इसी तरह का घमासान पिछले दिनों ग्वालियर जिले में भी देखा जा रहा था। जहां कुछ विधायक जिलाध्यक्ष की शिकायत लेकर पहुंच रहे थे। समझा जा रहा था कि सिंधिया खेमा कांग्रेस से खत्म होने के बाद कम से कम ग्वालियर अंचल में पार्टी के अंदरूनी घमासान के मामले खत्म हो जाएंगे। लेकिन मौजूदा हालात ऐसा दिखाई नहीं पड़ रहे हैं।

पुलिस कमिश्नर का सेल्फी शॉट

भोपाल पुलिस में फील्ड स्टाफ के लिए ड्यूटी पर मौजूदगी जाहिर करने के लिए सेल्फी का सबूत भेजने का नियम बनाया गया था। अब पुलिस कमिश्नर प्रणाली शुरू होते ही इसे कामकाज के ज़रूरी सिस्टम में शामिल कर दिया गया है। चौक-चौराहों पर तैनात पुलिस को सख्त लहजे में कहा गया है कि वे ड्यूटी पाइंट से सेल्फी ज़रूर भेजें। अफसरों ने यह तरकीब भी लगायी है कि वॉट्स एप पर रेंडमली मैसेज भेजकर भी सेल्फी बुलवायी जाए, जिससे पूरे वक्त ड्यूटी पाइंट पर तैनाती सुनिश्चित हो सके। इसके बाद यदि आपको भोपाल की सड़कों पर कोई पुलिसकर्मी सेल्फी लेता दिखाई दे तो इसे उसकी अनुशासनहीनता मत समझिएगा। बल्कि ये समझिए कि वह अपनी ड्यूटी निभा रहा है और उसका सबूत अफसरों को भेज रहा है।

निगम-मंडल में भी ‘ऑपरेशन लोटस’ का असर

निगम मंडलों में बहुप्रतीक्षित नियुक्तियां हो गई लेकिन इसमें भी वही असर देखा गया जो मंत्रिमंडल गठन या विस्तार के वक्त था। बीजेपी सरकार बनाने में योगदान देने वालों को ही शिवराज मंत्रिमंडल में जगह दी गई थी। निगम-मंडलों में भी सरकार बनने की वजह से बिगड़े संतुलन को साधने की कवायद की गई। जहां उप चुनाव हुए वहां के नेताओं को जगह दी गई साथ ही संगठन मंत्री की जिम्मेदारी से निवृत्त हुए नेताओं को ‘कुर्सी’ का पारितोषिक दिया गया। हालांकि पार्टी के कई नेताओं को उम्मीद थी कि शायद निगम मंडलों में संगठन के प्रति निष्ठा रखने वालों को जगह मिलेगी। लेकिन इसमें भी ख्याल उन्हीं का रखा गया जो ‘ऑपरेशन लोटस’ की वजह से उपेक्षित हो रहे थे। जो विधानसभा सीटें इससे प्रभावित नहीं रहीं, वहां के दावेदारों की उम्मीद टूट गई है। ऐसे दावेदारों की उम्मीद अब प्राधिकरणों के खाली पदों से रह गई हैं।

दुमछल्ला…

भोपाल और इंदौर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू ज़रूर हो गया है, लेकिन अब तक मुकम्मल तौर पर शुरू नहीं हो पाया है। फिलहाल दोनों ही शहर के पुलिस कमिश्नर टीम के दुरूस्त होने की बाट जोह रहे हैं। इन दोनों ही शहरों को पहले एसपी ने संभाला था, फिर एसएसपी सिस्टम शुरू हुआ। इसके बाद डीआईजी सिस्टम आया और अब यहां पुलिस कमिश्नर के जरिए कानून व्यवस्था को नियंत्रण करने की जिम्मेदारी मिली है। खास बात ये है कि सिस्टम अपग्रेड होते ही अमले की कमी हो जाती है। यह कमी कभी भी पूरी नहीं हो सकी है। फिलहाल कमी इतनी ज्यादा है कि पुलिस कोर्ट ही ठीक से शुरू नहीं हो पाया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि नए साल में सबकुछ दुरुस्त होगा।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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