दिग्गज के पिता की फाइल पर अफसर का ‘क्रॉस’

भोपाल। मामला भोपाल के एक दिग्गज बीजेपी नेता के पिता से जुड़ा है। पिताजी ने एक किताब छापने का वाजिब प्रस्ताव दिया। चूंकि मामला भोपाल के दिग्गज नेताजी के पिताजी से जुड़ा था, इसलिए जिम्मेदार अफसरों ने इस पुस्तक के प्रकाशन के लिए सबसे बेहतर विकल्प का आयडिया लगाया। तुरंत फाइल बनाकर एक बाबू को संबंधित दफ्तर में भेजा गया, ताकि संबंधित दफ्तर के इंचार्ज के दस्तख़त की औपचारिकता पूरी की जाए। लेकिन जिस स्वयंभू  इंचार्ज की मर्जी के बिना परिसर की चिड़िया भी अपने पंख नहीं फड़फड़ा सकती है, वहां इतनी आसानी से काम कैसे होता। इंचार्ज ने फाईल पर एक बड़ा क्रॉस बनाकर साइड में पटक दिया। फाइल भले ही ऊपर से आयी हो, लेकिन अब ये यहीं पर डम्प होकर रह गयी है। इधर फाइल धूल खा रही है, उधर बुजुर्ग पिताजी का धैर्य जवाब दे रहा है। सुना है मामला पांचवीं मंज़िल तक पहुंचाया गया है। पिताजी के बेटे श्यामला हिल्स बंगले के ख़ासमख़ास भी हैं, इसलिए अब महकमे में सनाका पसरा हुआ है। बिजली कौंधती है तो लगता है महकमे पर ही गिरने वाली है। फाइल को रोकने के जिम्मेदार अफसर अब बड़े-बड़ों के निशाने पर आ गये हैं।

साब मेहरबान, पांडे पहलवान

चेतक ब्रिज के पास वाले दफ्तर के पांडेजी इन दिनों पहलवान हैं। दरअसल उन्हें सबसे बड़े साहब का ग्रीन सिग्नल मिल गया है। ना केवल ग्रीन सिग्नल बल्कि साहब ने बड़े-बड़े और मलाई वाले काम करने के अधिकार भी दे दिए हैं। इन जिम्मेदारियों में वित्तीय अनुशासन बनाए रखने के लिए पहले अन्य बाबूओं को भी साथ में अटैच किया जाता था, लेकिन नए आदेश के बाद पूरा काम एकमुश्त पांडेजी ही संभालेंगे। वैसे, तो पांडेजी डेपुटेशन पर हैं। पूरी उम्र ही मूल काम की बजाय डेपुटेशन पर गुजारी है। इसलिए उनके काम के चर्चे अक्सर महकमे में होने लग जाते हैं। इस बार मामला अलग हैं, बड़े साहब उनके गृह जिले में कलेक्टरी कर चुके हैं। वहां उन्होंने साथ में किया तो ट्यूनिंग बन गयी। अब भोपाल में यहां साथ काम करने का मौका मिला तो फिर उसी ट्यूनिंग को एक्टिव किया जा रहा है। सुना है काफी अहम काम पांडेजी के हाथ में लग गए हैं। जो जिम्मेदारियां अब तक महिला अफसरों के जिम्मे थी, वो भी अब पांडेजी ही निभाएंगे। दफ्तर के लोग पांडे जी का बढ़ता पावर और रुतबा देखकर ये कहकर मन मसोस रहे हैं कि साहब मेहरबान हैं तो पांडेजी भी पहलवान हैं।

सीएम के टास्क से हिला अफसरों का किचन

पिछले दिनों अफसरों की पत्नियों के एसोसिएशन के प्रोग्राम में सीएम साहब को बुलवाया गया। सीएम साहब कार्यक्रम में खुशी-खुशी पहुंचे। चूंकि मैडम लोग अफसरों का घर संभालने के अलावा सोशली भी काफी एक्टिव रहती हैं, इसलिए सीएम ने भी मैडम लोगों को उनकी पसंद का एक टास्क दे दिया। टास्क ये है कि सभी मैडम लोग प्रदेश में काम कर रहे महिला स्व सहायता समूहों की मदद करें। मार्केटिंग के साथ उनके प्रमोशन की जिम्मेदारी भी संभालें। चूंकि टास्क सीएम साहब ने सौंपा था, सो सह्रदयता के साथ एक्सेप्ट किया गया। साइड इफेक्ट अफसरों पर आया है। प्रोग्राम के अगले ही दिन दो दिन की छुट्टियां शुरू हुईं तो मैडम लोगों का सीएम के टास्क के प्रति लगाव सामने आने लग गया है। सभी अफसर पत्नियों ने अपने घर का रूटीन कामकाज छोड़कर सीएम के टास्क पर चर्चा करनी शुरू कर दी। मार्केटिंग और प्रमोशन के तरीके तलाशने के लिए महिलाओं की मीटिंग और फोन कॉलिंग शुरू हो गयी। अब छुट्टी के दिन घर पर बैठे साहब लोग भी पशोपेश में आ गये कि करें क्या? किचन का काम प्रभावित होने लगा है। महिलाओं की कोशिश है कि सीएम साहब को जल्द ही अपनी एक्टिविटी का कोई गिफ्ट दिया जाए। मुसीबत साहब लोगों की शुरू हो गयी है। वीकेंड पर अब अपने दोस्तों के साथ फोन पर बतियाने में ही वक्त गुजारा जा रहा है। चिंता इस बात की नहीं कि मैडम ने टास्क सीरीयसली ले लिया है, चिंता इस बात की है कि ये एक-दो दिन का काम नहीं है। लंबा वक्त लगा तो घर का मैनेजमेंट और किचन ही गड़बड़ा जाएगा।

कांग्रेसी दिग्गजों के ‘हरिराम’

कांग्रेस में कुछ करना है तो दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों का आशीर्वाद ज़रूरी है। मुलाकात के बाद आशीर्वाद का साइज़ मिलने वाले की इंटेलीजेंस रिपोर्ट पर डिपेंड करता है। इंटेलीजेंस रिपोर्ट देने वाले इस बात का ख़ास ख्याल रखते हैं कि मिलने वाले नेताजी की आस्था दूसरे पूर्व सीएम के साथ तो नहीं है। यदि उस गुट का प्रभाव ज्यादा है तो फिर यहां से मिलने वाले गिफ्ट का असर कमजोर रहेगा। इतना ही नहीं ध्यान ये भी रखा जाता है कि पहले किस सीएम से मुलाकात हुई है, यदि उधर से मुलाकात के बाद इधर आ रहे हैं तो ये खानापूर्ति ही मानी जाएगी। यदि मिलने वाले नेताडी पहले ही दूसरे सीएम के दरबार पर जा चुके हैं तो रिपोर्ट निगेटिव हो सकती है। खास बात ये है कि दोनों ही पूर्व सीएम के बंगलों पर ऐसी रिपोर्ट देने वाले लोग बैठे हुए हैं। कुछ अपनी रिपोर्ट उधर दे रहे हैं तो कुछ इधर दे रहे हैं। सबसे खास बात और टॉप सीक्रेट तो ये है कि ‘हरिराम’ फोटो भी खींच रहे हैं और वाजिब ठिकानों पर भी पहुंचा रहे हैं। चंबल अंचल के एक नेताजी पिछले दिनों इन हरिरामों के शिकार होकर आशीर्वाद से वंचित हुए हैं। इधर की उधर करने वालों की वजह से अब कई नेता माथा फोड़ रहे हैं।

बीजेपी में कुर्सी की जुगाड़ का पेंच

बीजेपी के क्षेत्रीय दिग्गजों के बयानों से परेशान पार्टी आलाकमान अब डेमेज कंट्रोल की कवायद में जुट गया है। बीते चंद दिनों में हुई बैठकों में इस बात पर मंथन किया गया कि ज़मीनी नेताओं की नाराज़गी कहीं आने वाले उपचुनाव के नतीजों पर असर नहीं डाल दें। मंथन में इस बार केवल ये चर्चा नहीं थी कि उम्मीदवार कौन होगा, बल्कि ये चिंता थी कि नतीजों पर असर तो नहीं पड़ेगा। परेशानी ये भी है कि कार्यकर्ताओं ने जितनी उम्मीद पाल रखी है, उतने पद सरकार के पास नहीं हैं। इसलिए अब सरकारी समितियों में एडजस्टमेंट के साथ ही दीनदयाल अंत्योदय समिति के गठन पर ज़ोर दिया गया। ये समितियां पंचायत और निकायों के वार्ड के साथ-साथ, विधानसभा, जिला, संभाग और प्रदेश स्तर पर गठित की जाएगी। समिति ना केवल अफसरों के साथ समीक्षा बैठक करेगी, बल्कि अफसरों को रिकमंडेशन भी देगी। उपचुनाव से पहले इन समितियों के गठन को शुरू करने पर जोर देने की बात भी हुई है। परेशानी ये है कि पार्टी को केवल निकाय और पंचायत चुनाव ही नहीं देखना है, बल्कि उससे पहले होने वाले तीन विधानसभा सीट, खंडवा लोकसभा सीट समेत राज्यसभा की खाली सीट पर होने वाले उपचुनाव पर भी नजर रखना है। कोविडकाल और दमोह उपचुनाव हारने के बाद बीजेपी अपने हाथ से एक भी सीट फिसलने नहीं देना चाहती है। इस लिए हर नेता को काम देने की कवायद पर जोर दिया जा रहा है। ये बात अलग है कि अधिकांश नेता कुर्सी चाह रहे हैं।

साहब की उत्तमता फुल प्रूव्ड

कुछ अफसर सरकार की मुसीबत बढ़ा देते हैं तो कुछ अफसर सरकार को मुसीबत से निकालने में माहिर होते हैं। दरअसल, सरकार के तरकश में कुछ ऐसे अफसर मौजूद हैं, जिनका इस्तेमाल हर बड़ी मुसीबत के वक्त होता है। एक आईएएस के बार-बार तबादले इसीलिए ही हो रहे हैं, कि वे सरकार के संकट मोचक के तौर पर गिने जाते हैं। कई महीनों पहले महाराज से जुड़े एक जिले में हुई एक घटना से जब सरकार की किरकिरी हुई और एमपी देश भर में सुर्खियां बटोरने लगा तो साहब को यहां आनन-फानन भेजा गया। विपक्ष हमलावर होकर उस जिले में धावा बोलने पहुंचा तो ऐन वक्त पर साहब की तरकीबों ने सरकार को मुसीबत से निकाल लिया। चंद रोज में मामला सुलट गया। विपक्ष हाथ मलता रह गया। दूसरा मौका उस वक्त आया जब कोरोना की दूसरी लहर के आखिरी वक्त में मालवा के एक जिले में हालात बिगड़ने लगे। साहब का तबादला तुरंत उस जिले में किया गया। नए कलेक्टर साहब ने अपनी तरकीबों और सख्ती से मरीजों की बढ़ती संख्या पर ना केवल कंट्रोल किया बल्कि मरीज़ों की संख्या खत्म करके भी दिखा दी। उत्तमता फिर साबित हो गयी। इसके बाद अब साहब सीएम के ‘सुपर अफसरों’ की लिस्ट में शामिल हो गए हैं। हालांकि ये मुश्किल है कि साहब की अगली पोस्टिंग आराम की जगह वाली होगी। साहब अब गुड लिस्ट में जो हैं।

दुमछल्ला…

कोविड काल के बाद बीजेपी की ज़मीनी हालात जानने के लिए संघ ने एक रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट के नतीजे पार्टी नेताओं की परेशानी बढ़ाने वाले हैं। शिवकुमार की सक्रियता के पीछे इसी रिपोर्ट के नतीजों को बताया जा रहा है। इसलिए रेमेडियल प्लान पर काम शुरू कर दिया गया है। सरकार को अपनी एक अन्य रिपोर्ट में पता लगा है कि कोविड काल के दौरान सरकार द्वारा शुरू की गयीं स्कीम्स बीजेपी के ज़मीनी नेताओं की निष्क्रियता की शिकार हो गयीं। अब बीजेपी नेता वजह तलाश रहे हैं कि हमेशा पार्टी के लिए निष्ठा से काम करने वाले कार्यकर्ता सबसे चुनौती वाले दौर में निष्क्रिय कैसे हो गये?

(संदीप भम्मरकर की कलम से)