जयपुर। राजस्थान जिसे राजाओं और महाराजाओं की भूमि के रूप में जाना जाता है. राजस्थान में घुमने के लिए बहुत सारे स्थान हैं. राजस्थान का हर शहर अपने आप में एक ऐतिहासिक दस्तावेज है. यहाँ के महानगरों के साथ-साथ वर्तमान में कस्बों से बड़े शहरों में तबदील हो चुके स्थान भी ऐसे हैं, जहाँ पर्यटकों के लिए कुछ न कुछ खास है. प्रचार की वजह से राजस्थान के कई बड़े शहर तो पर्यटकों की नजरों में आ चुके हैं, लेकिन कुछ ऐसे स्थान भी हैं, जिनका प्रचार नहीं होने की वजह से पर्यटक वहाँ तक पहुँच नहीं पाते हैं.

हम राजस्थान के ऐसे ही एक अद्भुत स्थान चुरू के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अपनी स्थापत्य कला और ऐतिहासिक वजूद के कारण अपना एक अलग मुकाम रखता है. चुरू में पर्यटकों के लिए बहुत कुछ है, जिसे वे देखने के बाद जरूर सराहेंगे. तो आइए डालते हैं एक नजर राजस्थान के चुरू पर.

राजस्थान के मरुस्थलीय भाग का एक नगर एवं लोकसभा क्षेत्र है. इसे थार मरुस्थल का द्वार भी कहा जाता है. यह चूरू जिले का जिला मुख्यालय है. इसकी स्थापना 1620 ई में निर्बान राजपूतों द्वारा की गई थी. चूरू भारत की आजादी से पहले बीकानेर जिले का एक हिस्सा था. 1948 में, इसका पुनर्गठन होने पर इसे बीकानेर से अलग कर दिया गया.

सालासार बालाजी

यह भगवान हनुमान का मंदिर है. यह मंदिर जयपुर-बीकानेर मार्ग पर स्थित है. चूरू भारत के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है. माना जाता है कि यहाँ जो भी मनोकामना माँगी जाए वह पूरी होती है. हर साल यहाँ दो बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है. यह मेले चैत्र (अप्रैल) और अश्विन पूर्णिमा (अक्टूबर) माह में लगते हैं. लाखों की संख्या में भक्तगण देश-विदेश से सालासार बालाजी के दर्शन के लिए यहाँ आते हैं. यह मंदिर पूरे साल खुला रहता है.

रतनगढ़

यह एक ऐतिहासिक किला है. काफी संख्या में पर्यटक यहाँ घूमने के लिए आते हैं. इस किले का निर्माण बीकानेर के राजा रतनसिंह ने 1820 ई. में करवाया था. यह किला आगरा-बीकानेर मार्ग पर स्थित है. इस जगह के आसपास कई हवेलियाँ भी हैं. यहाँ रेतीले टीले हवा की दिशा के साथ आकृति और स्थान बदलते रहते हैं. इस शहर में कन्हैया लाल बंगला की हवेली और सुराना हवेली आदि जैसी कई बेहद खूबसूरत हवेलियां हैं, जिनमें हजारों छोटे-छोटे झरोखे एवं खिड़कियाँ हैं. ये राजस्थानी स्थापत्य शैली का अद्भुत नमूना हैं जिनमें भित्तिचित्र एवं सुंदर छतरियों के अलंकरण हैं.

सुराणा हवेली

यह छह मंजिला इमारत है. यह काफी बड़ी हवेली है. इस हवेली की खिड़कियों पर काफी खूबसूरत चित्रकारी की गई है. इस हवेली में 1111 खिड़कियां और दरवाजे हैं. इस हवेली का निर्माण 1870 में किया गया था.

दूधवा खारा

ऐतिहासिक दृष्टि से यह स्थान काफी महत्वपूर्ण है. यह स्थान चुरू से 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यह गाँव अपनी प्राकृतिक सुंदरता और खूबसूरत हवेलियों के लिए प्रसिद्ध है. यहाँ आकर राजस्थान के असली ग्रामीण परिवेश का अनुभव किया जा सकता है. इसके अलावा यहाँ ऊंटों की सवारी भी काफी प्रसिद्ध है.

ताल छापर अभयारण्य

ताल छापर अभयारण्य चुरू जिले में स्थित है. यह जगह मुख्य रूप से काले हिरण के लिए प्रसिद्ध है. इस अभयारण्य में कई अन्य जानवर जैसे-चिंकारा, लोमड़ी, जंगली बिल्ली के साथ-साथ पक्षियों की कई प्रजातियाँ भी देखी जा सकती हैं. इस अभयारण्य का क्षेत्रफल 719 वर्ग हेक्टेयर है तथा यह कुंरजा पक्षियों के लिये भी जाना जाता है.

कोठारी हवेली

इस हवेली का निर्माण एक प्रसिद्ध व्यापारी ओसवाल जैन कोठारी ने करवाया था जिसका नाम उन्होंने अपने गोत्र के नाम पर रखा. इस हवेली पर की गई चित्रकारी काफी सुंदर है. कोठारी हवेली में एक बहुत कलात्मक कमरा है, जिसे मालजी का कमरा कहा जाता है. इसका निर्माण उन्होंने सन् 1925 में करवाया था.

छतरी

चुरू में कई आकर्षक गुम्बद हैं. अधिकतर गुम्बदों का निर्माण धनी व्यापारियों ने करवाया था. ऐसे ही एक गुम्बद-आठ खम्भा छतरी का निर्माण सन् 1776 में किया गया था.