रायपुर- भले ही राज्य सरकार ने भारी विरोध के बीच भू राजस्व संहिता संशोधन विधेयक वापस लेने का फैसला कर लिया हो,  बावजूद इसके सर्व आदिवासी समाज की सरकार से नाराजगी बरकरार है. सर्व आदिवासी समाज की आज हुई बड़ी बैठक में सरकार से आर पार की लड़ाई लड़ने की रणनीति तैयार की गई है. बताया गया है कि आदिवासी समाज अब सरकार के विरोध में सड़कों पर उतर कर उग्र प्रदर्शन करेगा. बैठक में तय किया गया है कि विधानसभा के बजट सत्र के दौरान आदिवासी समाज बड़ा आंदोलन करेगा. समाज का दावा है कि यह अब हुए तमाम विरोध-प्रदर्शन से बड़ा होगा. इस प्रदर्शन में समाज के लाखों लोग सड़कों पर उतरेंगे.

पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में हुई सर्व आदिवासी समाज की बैठक में आदिवासी मामलों के विशेषज्ञ भूपिन्दर सिंह ने आज कहा कि आदिवासी क्षेत्रों में अभी भी अपेक्षित विकास नहीं हुआ है, जिस पर सरकार को ध्यान दिए जाने की जरूरत है. आदिवासियों के हितों को लेकर जो संंवैधानिक अधिकार है, उनका पालन नहीं किया जा रहा है. उन्होंने कहा- आदिवासी क्षेत्र में जन जागरण भी जरूरी है और वहां आपेक्षित विकास कार्य भी जरूरी है. बस्तर में विकास नहीं हुआ है, ऐसा नहीं है, पर यह बात सही है कि आपेक्षित विकास नहीं हो पाया है. जिस पर सरकार जनप्रतिनिधि और समाज को ध्यान देना चाहिए.  भूपिन्दर सिंह ने कहा कि समस्याओं के निराकरण पर सरकार को काम किए जाने की जरूरत है.

सर्व आदिवासी समाज के कार्यकारी अध्यक्ष बी एस रावटे ने कहा कि अब सरकार ने भारी दबाव के बीच भू राजस्व संहिता को वापस लेने का ऐलान किया है. उसे पूरी तरह से निरस्त किया जाना चाहिए. रावटे ने कहा- भू राजस्व संहिता संशोधन विधेयक के अलावा वन भूमि अधिकार पट्टा, आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाना, फर्जी जातिप्रमाण पत्र के जरिए नौकरी जैसे कई बुनियादी मुद्दे भी हैं, जिन्हें लेकर समाज अब तक सरकार से बात करता आया है, लेकिन समाधान नहीं निकाला गया. उन्होंने कहा कि समाज ने तय किया है कि अब सीधी लड़ाई होगी. 70 सालों से हम उपेक्षा झेल रहे हैं. अब सरकार के खिलाफ अगले महीने विधानसभा सत्र के दौरान सड़क की लड़ाई समाज लड़ेगा. प्रदेश भर के लाखों आदिवासी इस आंदोलन में हिस्सा लेंगे.

पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कहा कि- भू-राजस्व संहिता संशोधन विधेयक तो निरस्त करने के अलावा अब लड़ाई अन्य मांगों को लेकर भी जारी रहेगी. नेताम ने कहा कि पांचवी-छठवीं अनुसूची, पेसा-मेसा कानून, भूमि अधिग्रहण जैसे मुद्दों को लेकर आंदोलन तेज किया जाएगा. उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य है कि समाज के निर्वाचित सांसद-विधायक भी दलीय अनुशासन के चलते समाज और राज्य हित के कई मुद्दों पर मुखर नहीं होते. अब उन्हें भी मुखर होना पड़ेगा. अन्यथा ऐसे लोगों के खिलाफ भी समाज मुखर होगा.

पूर्व सांसद सोहन पोटाई ने कहा कि अब सरकार से परिणाममूलक पहल के लिए निर्णायक लड़ाई लड़ी जाएगी. अगले महीने मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में आयोजित सम्मेलन के बाद छत्तीसगढ़ में एक बड़ा आंदोलन होगा. सरकार को अब आदिवासियों का हक छिनने नहीं देंगे. संविधान में हमारे हक सुरक्षित हैं. उनको अमल में लाने की मांग सरकार से की जाएगी, नहीं तो ऐसी सरकार के विरोध पूरा समाज खड़ा होगा.

नहीं पहुंचे सांसद-विधायक

सर्व आदिवासी समाज के इस मंथन के दौरान तमाम राजनीतिक दलों के सांसद-विधायकों को बुलाया गय़ा था, लेकिन बैठक में कांग्रेसी विधायक कवासी लखमा के अलावा कोई दूसरा नहीं पहुंचा. इसे लेकर समाज में गहरी नाराजगी देखने को मिली. समाज प्रमुखों ने कहा है कि समाज से जुड़े ऐसे जनप्रतिनिधि जो समाज की अनदेखी करते हैं, उनका विरोध किया जाएगा. समाज के बीच जाकर हम लोगों से कहेंगे कि जो जनप्रतिनिधि समाज की अनदेखी करता है, उनका मुखर होकर विरोध किया जाए. गौरतलब है कि सर्व आदिवासी समाज ने राज्य सरकार के तीन आदिवासी मंत्रियों समेत आदिवासी विधायकों, सांसदों और दूसरे जनप्रतिनिधियों को भी बैठक में शामिल होने का न्यौता भेजा था. सरकार के आदिवासी मंत्रियों में रामसेवक पैकरा इस वक्त अपने क्षेत्र में हैं, अनुसूचित जनजाति मामलों के मंत्री केदार कश्यप जापान के दौरे पर गए हुए हैं और बीजापुर से विधायक और वन मंत्री महेश गागड़ा तमिलनाडू के प्रवास पर हैं.

सर्व आदिवासी समाज की बैठक में पूर्व मंत्री शंकर सोढ़ी, पूर्व आईएएस सरजियस मिंज, बीपीएस नेताम, रिटायर्ड कलेक्टर नवल सिंह मंडावी. चंद्रकांत उइके, पूर्व विधायक जनकलाल ठाकुर समेत समाज के कई चेहरे बैठक में मौजूद थे.