राजनांदगांव। देश में प्राचीनकाल से चैत्र और क्वांर नवरात्रि के मौके पर देवी मंदिरों में प्रज्जवलित होने वाले ज्योति कलश को पर्व के अंतिम दिन विर्सजन की परम्परा रही है. आमतौर पर ज्योतिकलश को महिलाएं अपने सिर में उठाकर मंदिर के नजदीक सरोवरों में विसर्जन करती है. लेकिन राजनांदगांव के ग्राम सिंघोला में यह काम पुरूष करते है, यह अनूठी परम्परा पूरे देश में एकमात्र है.

ग्राम सिंघोला के लोगों के अनुसार सन् 1925 में साघ्वी महिला भानेश्वरी बिराजती थी.  मां भानेश्वरी को गांव में धार्मिक सम्मान प्राप्त था और उन्हें देवी की तरह पूजा जाता था. मां भानेश्वरी ने समाधि में लीन होने से पूर्व गांव के पुरूषों को मंदिर में उनके भक्तों द्वारा स्थापित ज्योति कलश को विसर्जन करने आदेशित किया. तब से आज तक लगभग 91 वर्षाें से यह परम्परा यहां चले आ रही है.

मां भानेश्वरी मंदिर में स्थापित ज्योतिकलश मिट्टी के बजाय तांबे के होते है, और विसर्जन सोमवार या गुरूवार को ही होता है. ज्योति कलश के विसर्जन के दिन सिंधोला में मेले जैसा माहौल रहता है. मंदिर परिसर के आसपास भक्तों की भारी भीड़ मौजूद रहती है. मां भानेश्वरी के दरबार में पूरे नौ दिन जसगीत गाए जाते है. पुरूष नए वस्त्र पहनकर ज्योत विसर्जन के तैयार रहते है. कांटे के झूले में विराजमान मां भानेश्वरी को भक्त बड़ी श्रद्धा के साथ झूलाते हैं और उनकी पूजा अर्चना के साथ ही विसर्जन यात्रा शुरू होती है. पुरूष अपना सौभाग्य मानकर गांव की इस अनूठी परम्परा को निभाते है. वहीं दूसरी ओर महिलाएं अपनी मन्नतों को पाने के लिए पूरे रास्ते को पानी डालकर साफ करती है. वहीं माता भानेश्वरी के मंदिर में लगभग 20 वर्षों से ज्योति कलश जलाने वाले पाटन  के रहने वाले फतेह सिन्हा के जीवन में बहुत तकलीफों भरा जीवन रहा. लेकिन जब से मां के मंदिर में ज्योति कलश जलाने लगा व विसर्जन करने के लिए अपने सर पर उठाने लगा है तब से उन्की हर मनोकामनाएं पूरी होने लगी है. जिसके चलते आज फतेह सिन्हा के परिवार में खुशहाली है. जिसके कारण माॅं भानेश्वरी माता को कोटी- कोटी नमन करते नही थकते.

माॅं भानेश्वरी माता के दर्शन के लिए अन्य जिलों से भी श्राद्वालू बडे मन्नतें मांग कर आते है. माॅं के दरबार में जो भी भक्त अपनी दुख – दर्द लेकर आए है मां उन भक्तों की मनोकामनाएं पूरी की है. इस मंदिर में एक और खास बात हैं कि ज्योत-ज्वारा कलश ठण्डा के समय जो भी महिलाएं तालाब में नहाकर मां के ज्योति कलश में पानी चढाते है. उनकी हर मुरादें पूरी करती है. अपने वैवाहिक जीवन व अपने पति के काम-काज से परेशान मंदिर से 60 किलोमीटर छुईखदान की निवासी दुर्पिती साहू ने कई वर्षों से मां भानेश्वरी माता के दर्शन के लिए आती है और मां के ज्योत-ज्वारा में कुण्डी से पानी डालती आ रही है. जिसके कारण दुर्पिती के जीवन में फिर से सुख-शांति वापस आने से उन्की जिन्दगी खुशहाल हो गई है और माता भानेश्वरी की जय पुकारते नही थकतीं।