कुशीनगर. सभी पार्टियों की कोशिश ओबीसी वोट बैंक के बड़े हिस्से में सेंधमारी की है, जो परंपरागत रूप से समाजवादी पार्टी की तरफ झुकता नजर आ रहा है. वहीं BJP के लिए यादव के अलावा मौर्य, कुर्मी (पटेल), राजभर, चौहान और अन्य दूसरी अति पिछड़ी जातियां हैं, जो काफी अहम भूमिका निभा सकती हैं.

नॉन यादव ओबीसी जातियों की भूमिका अहम

उत्तर प्रदेश के चुनावी रण में नॉन यादव ओसीबी जातियों की भी बड़ी अहम भूमिका है. इनमें कुर्मी-पटेल 14 फीसदी, कुशवाहा-मौर्या-शाक्य-सैनी 6 फीसदी, लोध 4 फीसदी, गंडेरिया-पाल 3 फीसदी, निषाद-मल्लाह-बिंद-कश्यप-केवट 4 फीसदी, तेली-साहू-जैसवाल 4 फीसदी, जाट 3 फीसदी, कुम्हार/प्रजापति-चौहान 3 फीसदी, कहार-नाई-चौरसिया 3 फीसदी, राजभर 2 फीसदी और गुज्जर 2 फीसदी हैं. यूपी में BJP और SP के पास कुर्मी समुदाय से राज्य अध्यक्ष हैं. BSP ने यह पद राजभर समुदाय और कांग्रेस ने कानू जाति से आने वाले नेता को सौंप रखा है.

कुर्मी (पटेल) समुदाय

जनपद में अगर बात की जाए तो खड्डा विधानसभा में 339126 मतदाता हैं, पडरौना विधानसभा में 382143, तमकुही में 399082, फाजिलनगर 398835, कुशीनगर में 372041, हाटा में 372060, रामकोला में 370917 मतदाता हैं, जिसमें मत प्रतिशत की बात की जाए तो कुशीनगर जनपद की विधानसभाओं में कुर्मी दूसरी बड़ी ओबीसी जाति है. जिनका मत प्रतिशत सोलह (16) प्रतिशत हैं, तो वहीं कुशवाहा बिरादरी भी सात (7) से आठ (8) प्रतिशत की आबादी हैं जो अपना नेता स्वामी प्रसाद मौर्य को मानते हैं जो अब समाजवादी पार्टी का दामन थाम चुके हैं तो वहीं “कुर्मी (पटेल)” वोट बैंक अनुप्रिया पटेल को अपना नेता मानते हैं 5 जनवरी को कुशीनगर विधानसभा में जनसभा आयोजित किया जिसमें बड़ी संख्या अपनें नेता को सुनने के लिए भीड़ उमड़ी थी. तो वही पार्टी का शीर्ष नेतृत्व कुशीनगर विधानसभा क्षेत्र के गठबंधन सीट की मांग कर रहा और अपना दल (एस) के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य गिरजेश कुमार पटेल कुशीनगर विधानसभा 333 से लगातार क्षेत्र के लोगों से डोर टू डोर सम्पर्क बनाए हुए हैं, 5 जनवरी 2022 को कुशीनगर में अनुप्रिया पटेल की विशाल जनसभा को सफल बनाने में गिरजेश कुमार पटेल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

वहीं 2018 में भगवान बुद्ध की परिनिर्वाण स्थली कुशीनगर से 29 दिसंबर 2018 दिन शनिवार को विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए हार्दिक पटेल ने कहा था कि कुर्मी बिरादरी को गुजरात की तरह एकजुट करने के लिए मैं बुद्ध की धरती कुशीनगर में आया हूं और उत्तर प्रदेश में भी पटेल अपना राजनीतिक ताकत दिखाएगा हार्दिक पटेल ने कुर्मी-क्षत्रिय महासम्मेलन कर उन्होंने कुर्मी समाज को एकजुट होने की नसीहत दी थी. तो वहीं 2009 के संसदीय चुनाव में कुर्मी (पटेल) समाज कांग्रेस के नेता आरपीएन सिंह के साथ खड़ा हुआ और वह चुनाव जीते और केंद्र में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह उनके बाद कुर्मी (पटेल) समाज ने आरपीएन सिंह से नाराजगी जताते हुए 2014 संसदीय चुनाव अनुप्रिया पटेल को अपना नेता मानते हुए बीजेपी के साथ गठबंधन को मतदान किया और प्रचंड जीत हुई.

ऐसे में अगर भाजपा+अपना दल (एस) गठबंधन में अपना दल (एस) को टिकट मिलता है तो कुर्मी (पटेल) मतदाता विधानसभा चुनाव 2017 की तरह भाजपा+अपना दल (एस) गठबंधन के साथ रहेगा. अगर गठबंधन से टिकट नहीं मिलता है तो यह वोट बैंक सपा के साथ जा सकता हैं.

मौर्य-कुशवाहा

वोटर्स काफी प्रभावशाली भूमिका में हैं.

मल्लाह-निषाद

मल्लाह समुदाय भी जनपद में करीब 6 फीसदी के आसपास है. में इनकी कई उपजातियां जैसे निषाद, केवट भी हैं.

नोनिया-चौहान

जनपद के कई विधानसभा में स्थानीय बोली में इन्हें नोनिया कहा जाता है जिनकी संख्या अच्छी-खासी हैं में यह मतदाता समूह BJP के संग SP के भी टारगेट में है.

राजभर समुदाय

जनपद में राजभर समुदाय ओबीसी वोट बैंक में बेहद अहम है. इनकी जनसंख्या हो सकती है कि दो फीसदी ही हो, पर ये कई सीटों पर राजनीतिक गणित बना और बिगाड़ सकते हैं समुदाय अच्छी संख्या में है. ओम प्रकाश राजभर ने खुद को इस समुदाय के नेता के रूप में स्थापित किया है. SP और BJP के अलावा BSP की नजर भी इस वोट बैंक पर है.

लोहार और कुम्हार

जनपद में ये जातियां अति पिछड़ा में आती हैं. लोहार समुदाय के आने वाले लोग नाम के टाइटल में विश्वकर्मा और शर्मा लगाते हैं. वहीं कुम्हार समुदाय से आने वाले लोग अपने नाम के साथ प्रजापति लगाते हैं. इस समुदाय के पास अकेले दम पर जीतने की ताकत तो नहीं है पर ये किसी भी दल का समीकरण बना या बिगाड़ सकते हैं.

पाल-गड़ेरिया-बघेल

ओबीसी में पाल समुदाय अति पिछड़ा में आता है. इन्हें गड़ेरिया और बघेल के रूप में भी जाना जाता है. खड्डा विधानसभा व कुशीनगर विधानसभा में पाल समुदाय की भूमिका अहम समझी जाती है.