लखनऊ। सामाजिक संस्था चेतना ने सोमवार को अंतर्राष्ट्रीय सड़क व कामकाजी बच्चों के दिवस के अवसर पर हर वर्ष की तरह इस बार भी स्ट्रीट टॉक का कार्यक्रम आयोजित किया. इस बार कार्यक्रम का चौथा संस्करण था. जो कोविड को देखते हुए वर्चुअल तरीके से मनाया गया. इस कार्यक्रम में दिल्ली, नोएडा और गुरुग्राम के बच्चों के साथ लखनऊ के सड़क व कामकाजी बच्चों ने भी हिस्सा लिया. कार्यक्रम में बच्चों ने अपनी कहानी अपनी ही जुबानी सभी के सामने रखी.

बच्चों ने बताया कि कैसे उनका जीवन अभाव व कठिनाइयों से शुरू हुआ और फिर चेतना संस्था के संपर्क में आने के बाद उनके जीवन में कैसे बदलाव आया. वो किस प्रकार अपने सपनों को पूरा करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं. कार्यक्रम के दौरान 12 सड़क व कामकाजी बच्चों ने इस लाइव में अपने जीवन के संघर्ष की कहानी अभिव्यक्ति की. इस अवसर पर सभी बच्चो ने कहा कि यह हमारी जिंदगी का सबसे बड़ा दिन है. हम बच्चो के पास न ही मीडिया और न ही किसी का सहयोग है. फिर भी हमको सब का सहयोग है, जिसके माध्यम से हम अपनी बात रख पा रहे है.

इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले ज्यादातर बच्चे ऐसे घरों से थे, जहां पर गरीबी, हिंसा, शराब और पारिवारिक विघटन आम बात है. जीवित रहने के लिए ये बच्चे भीख मांगना, गाड़ियों को साफ़ करना, कचरे के ढेर में खुदाई करना, जूतों पर पालिश करना व अन्य कार्य भी करते हैं. कुछ बच्चे को उनके रिश्तेदार बाल श्रमिक की तरह काम करवाने के लिए ले जाते हैं. इसके बाद उन्हें छोड़ दिया जाता है, जिसकी वजह से वे मादक द्रव्य, हिंसा स्वस्थ्य और स्वछता की कमी की वजह से असामाजिक तत्त्व बन जाते है.

इसके साथ ही साथ लखनऊ के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के साथ भी वर्चुअल प्लेटफार्म जूम के माध्यम से इंटरनेशनल स्ट्रीट चिल्ड्रेन डे मनाया गया. जिसका उद्देश्य इन सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के मन में सड़क व कामकाजी बच्चों के प्रति सहानुभूति और सहयोग की भावना को जागरूक करना था. इस अवसर पर सभी बच्चो को बताया गया कि ऐसे बच्चे जो की बुनियादी सुविधाओं से वंचित है, वह आप ही के समाज के है. कभी भी इन बच्चो के साथ ऐसा व्यवहार न करें कि इनके मन को चोट पहुंचे. इनसे कभी भी कोई भेदभाव न रखे. इस तरह सभी स्कूली बच्चों को जागरूक किया गया.

निदेशक संजय गुप्ता ने कहा की इस समारोह का मुख्य उद्देश्य सड़क व कामकाजी बच्चों के लिए समर्थन और जागरूकता फैलाना है. जिससे की उन्हें एक पहचान मिले और लोग इस बात को समझे कि ये बच्चे औरो से अलग नहीं है.

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