उमंग अग्रवाल, कानपुर देहात. तेज बारिश से आई बाढ़ ने नदियों के किनारे बसे गांवों की मुसीबत बढ़ा दी है, जहां एक ओर बारिश ने नदियों को उफान पर ला कर खड़ा कर दिया है तो वहीं ग्रामीण इलाकों में रहने वालों के सामने भी रहने और खाने की विकराल मुसीबत खड़ी है. अधिकारी बाढ़ पीड़ितों के लिए तमाम इंतजाम के दावे करते नजर आ रहे हैं, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ और है. लोग खाना बदोशों की तरह जिंदगी जीने को मजबूर हैं.

बाढ़ से बचने के लिए ग्रामीण खुले मैदान में तिरपाल से तंबू लगा रहे हैं. अपने आप को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने नांव से लोग जा रहे हैं. वहीं खाने के इंतजाम में हर घर से इकट्ठा किया गया राशन इस बार की गवाही से रहा है कि हालात बद से बदतर हैं और शायद सुध लेने वाला कोई भी नहीं है. अधिकारी पुख्ता इंतजाम के दावे कर रहे है, लेकिन तस्वीरें कुछ और ही बोल रही हैं. कानपुर देहात के जैसलपुर , क्योंटरा बंगर और महादेवा गांव के लोग बाढ़ के पानी से त्रस्त है पानी इस कदर बढ़ रहा है कि गांव और कस्बों से लेकर लोगों के घरों के अंदर तक आ घुसा है. हर सामान जल मग्न हो चुका है और सड़कें पानी में समा गईं है. लोग चलने को मोहताज है और जिस जमीन पर कभी को चला करते थे, आज वहां वो नांव के सहारे रास्ता तय कर रहे हैं. लोगों ने एकजुट होकर खुद को सुरक्षित स्थान पर लेकर पहुंच गए है. जैसे-तैसे लोगों ने बाढ़ से अपने आप को सुरक्षित जगह पर पहुंचा तो लिया है, लेकिन जिंदा रहने के लिए रोटी, कपड़ा और मकान की जरूरत तो सबके साथ ही है.

बाढ़ से हर दिन तस्वीरें बदल रही हैं. हर दिन कुछ ऐसी तस्वीरें सामने आ रही है, जो विचलित कर रही हैं. कहीं लोग सुविधाओं के साथ सुरक्षित है तो कहीं सिर्फ सुरक्षित होने के महज दावों के साथ, कहीं पेट भर खाने का जुगाड है तो कहीं सिर्फ पेट भरने के आश्वासन, ऐसे में बेघर इंसान हकीकत से रुबरू हो भी रहा है और जमाने को करा भी रहा है. पानी इतना कि लोग गोते लगा रहे हैं. कहीं बिजली नहीं तो कहीं अंधेरा है. जरूरत इतनी की उंगलियों पर गिना नहीं जा सकता, लेकिन हर जरूरत जरूरी भी है. अधिकारी खाना, दवा, इलाज रुकने और उचित व्यवस्था किए जाने के ढेर सारे दावे कर रहे हैं, लेकिन ये व्यवस्थाएं सिर्फ कागजों और मीडिया के कैमरों के सामने ही परसी दिख रही है और हकीकत में पीड़ितों का दस्तर ख्वान एक दम खाली है.