मनोज उपाध्याय,मुरैना। मध्यप्रदेश के मुरैना जिला अस्पताल में खुलेआम नकल चल रहा है. नर्सिंग के परीक्षार्थी मोबाइल से देखकर परीक्षा दे रहे हैं. दरअसल नर्सिंग कॉलेजों की प्रायोगिक परीक्षा किस तरह से होती है. यह नजारा जिला अस्पताल में शुक्रवार को देखने को मिला, जहां काफी संख्या में छात्र-छात्राएं मोबाइल से देखकर प्रायोगिक परीक्षा दे रहे थे. कई छात्र तो गूगल पर सर्च करने के बाद सवालों के जवाब तलाश रहे थे.
परीक्षार्थियों से बात करने से पता चला कि जिले में कई नर्सिंग कॉलेज कागजों में संचालित किए जा रहे हैं. कोई देखना वाला नहीं हैं. छात्र छात्राओं से बातचीत की तो कुछ तो ऐसे थे, जिनको अपने कॉलेज का नाम तक नहीं पता था और अधिकांश ऐसे थे जिनको यह नहीं पता था कि उनका किस कॉलेज में प्रवेश है. उसकी बिल्डिंग कहां पर स्थित है. जिले में दर्जनों नर्सिंग कॉलेज संचालित हैं. लेकिन बिल्डिंग मुश्किल से आधा दर्जन कॉलेजों के पास ही है. अन्य कॉलेज कागजों में संचालित किए जा रहे हैं.
इन्ही कॉलेजों के छात्र-छात्राओं की प्रायोगिक परीक्षाएं जिला अस्पताल में चल रही हैं. शुक्रवार को अस्पताल परिसर में छात्र छात्राओं को जहां जगह मिली, वहीं पर बैठ गए और मोबाइल से नकल कर कॉपी में लिखते नजर आए. विडंवना इस बात की है कि सागर यूनिवर्सिटी से जो स्टाफ आया था, उसकी मिली भगत से ही सबकुछ हो रहा था. जब स्टाफ से पूछा तो उन्होंने बताया कि पहले कक्ष में मरीजों से चर्चा करते समय मोबाइल में नोट करते हैं. इसके बाद मोबाइल से कॉपी पर लिख रहे हैं. जबकि अस्पताल से बाहर पीछे मंदिर और नई बिल्डिंग के पास कई परीक्षार्थी मोबाइल से नकल करते देखे गए.
नर्सिंग की परीक्षा देने वाले अधिकांश परीक्षार्थी बिहार, झारखंड सहित अन्य प्रांत के रहने वाले थे. उनसे जब पूछा गया कि बिहार व झारखंड से कितने लोग परीक्षा देने आए हैं, तो उन्होंने कहा कि कोई गिनती नही हैं. कॉलेज संचालकों का कुछ दलालों से संपर्क रहता है. वहीं उनका एडमिशन करवाते हैं. छात्रों ने बताया कि उनसे दो से ढाई लाख रुपए लिए हैं. जबकि बताया गया है कि नर्सिंग की फीस मुश्किल से 30 हजार रुपए तक ही है. इस मामले में अधिकारी भी कैमरे के सामने कुछ भी कहने से बच रहे हैं.
इस मामले में सीएमएचओ डॉ. राकेश शर्मा ने कहा कि सामूहिक नकल का जो मामला सामने आया है, उसकी जांच करवा रहे हैं. प्रायोगिक परीक्षा मरीज के बेड के पास होती है और कहीं नहीं. इसके लिए नर्सिंग कालेज को प्रति छात्र 5000 रुपये रोगी कल्याण समिति में जमा कराने होते हैं. इस पूरे मामले की जांच बैठाई गई है. 15 दिन में जांच कर दोषियों पर कार्रवाई होगी.
जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. विनोद गुप्ता ने इस पूरे मामले से खुद को दूर करते हुए कहा कि किसी भी नर्सिग कॉलेज ने हमसे इस तरह की परीक्षा की कोई अनुमति नहीं ली है. यह परीक्षा नर्सिंग कॉलेजों में होती हैं. जिला अस्पताल में हम परीक्षाएं क्यों कराएंगे.
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