स्पर्श उपाध्याय, शिमला. राजा-रानियों के किस्सों का दौर गुजर गया। राजशाही गई और लोक के तंत्र ने लोगों को राज करने के बेशुमार मौके दिए।हिमांचल के चुनावों पर नजर डालें तो अरसे से राज कर रहे राजा वीरभद्र सिंह को सत्ता से हटाकर मुख्यमंत्री का ताज पहनने वाले जयराम ठाकुर की कहानी भी परीकथा सरीखी है।

हिमाचल प्रदेश में शायद ही किसी ने सोचा होगा कि भाजपा के पोस्टर ब्वाय औऱ मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार प्रेमकुमार धूमल चुनाव हार जाएंगे। शायद भाजपा हाईकमान को भी ये उम्मीद नहीं रही होगी कि उनका दिग्गज रणनीतिकार चुनाव के मैदान में इस कदर चित हो जाएगा। धूमल के चुनाव हारने के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए भाजपा में जोड़तोड़ भले शुरू हो गई हो लेकिन पार्टी का रूख बिल्कुल साफ था कि धूमल का विकल्प अगर देना ही है तो पार्टी किसी ठाकुर नेता को ही प्रदेश की सत्ता सौंपेगी। लंबे अर्से से पार्टी के रणनीतिकार औऱ समर्पित भाजपा नेता जयराम ठाकुर इस बार बदले समीकरणों में पार्टी की पहली पसंद बनकर उभरे।

52 वर्षीय जयराम ठाकुर प्रदेश के मंडी जिले की सेराज विधानसभा सीट से विधायक हैं और पांचवी बार सदन में पहुंचे हैं। ये धूमल सरकार में पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री भी रह चुके हैं।1998 में पहली बार विधायक चुने जाने से पहले ठाकुर संघ के समर्पित कार्यकर्ता की हैसियत से काम करते रहे। जिसका ईनाम उन्हें 1998 में पार्टी की तरफ से विधानसभा चुनाव के टिकट के रूप में मिला। अपने शुरुआती जीवन से ही भाजपा और संघ से जुड़े रहे जयराम कॉलेज के दिनों में भाजपा के छात्र संगठन एबीवीपी से भी जुड़े रहे।इसके साथ ही वो हिमाचल प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष पद की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी निभा चुके हैं।

राज्य के इतिहास में यह पहली बार होगा जब हिमाचल को मंडी क्षेत्र से मुख्यमंत्री मिलेगा।सूबे की ताकतवर ठाकुर बिरादरी को लंबे अरसे से अपने साथ जोड़ने के लिए भाजपा प्रयासरत थी। जिसकी वजह से ही पार्टी ने ब्राह्मण बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले केंद्रीय मंत्री जे. पी. नड्डा को मुख्यमंत्री बनाने की बजाय जयराम ठाकुर को प्राथमिकता दी। इसके पीछे हिमाचल में क्षत्रियों के दबदबे और संख्या को वजह माना जा रहा है।गौरतलब है कि धूमल के चुनाव हारने के बाद से ही जे. पी. नड्डा और जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री पद के प्रमुख दावेदारों में थे।

हिमाचल प्रदेश के 13वेंमुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले जयराम ठाकुर से जुड़ा बेहद दिलचस्प किस्सा जो बहुतों को नहीं पता है। साल था 2003।जगह थी शिमला। मौका था  कांग्रेस राष्ट्रीय कार्यकरिणी बैठक का। बैठक का आयोजन, राजा वीरभद्र सिंह कर रहे थे। जो अभी अभी राज्य में कांग्रेस की धमाकेदार जीत के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए चुने गए थे।कांग्रेस की बैठक में पार्टी के तमाम बड़े नेताओं के साथ साथ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी भी बैठक में भाग लेने शिमला पहुंची थी। उसी दौरान एक छोटे से फ्लैट में रहने वाले जयराम ठाकुर को घर से निकलने से इसलिए मना कर दिया गया क्योंकि कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं का काफिला उनके घर के सामने से गुजर रहा था।

भले ही सुरक्षा कारणों को वजह बताकर जयराम ठाकुर को घर से निकलने से मना कर दिया गया हो लेकिन उस घटना से आहत जयराम ने अपने साथी से कहा था कि “यह जनतंत्र है, आज भी यहाँ नेताओं का राजाओं जैसा बरताव चुभने वाला है, इस वीआईपी कल्चर पर जरूर रोक लगनी ही चाहिए”।उनकी बात सुन रहे साथी ने कहा की, “ऐसा तभी हो सकता है जब आप एक रोज मुख्यमंत्री बन जाएँ”।किसी को शायद ही पता हो कि नेताओं के राजाओं जैसे रवैय्ये से बुरी तरह गुस्सा वो शख्स कई राजाओँ को धूल चटाकर हिमांचल प्रदेश के तेरहवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेगा।

बहुतों को ये बात शायद ही पता हो कि सन 1993 में अपनी मौजूदा सीट (सेराज) से चुनाव लड़ने वाले जयराम को अपने पहले चुनाव में शिकस्त खानी पड़ी थी लेकिन भाजपा के इस दिग्गज रणनीतिकार ने 2014 के लोकसभा चुनावों में राज्य से भाजपा को 16 सीटें दिलाने में अहम भूमिका निभाई और आज राज्य के मुख्यमंत्री का ताज उनके सर पहनाया गया। अब हिमांचल प्रदेश की जनता उम्मीद कर सकती है कि कम से कम उनका राज्य वीआईपी कल्चर से मुक्त हो सकेगा क्योंकि सूबे का मुखिया इस कल्चर का भुक्तभोगी रह चुका है।