लखनऊ। जातीय हिंसा, धार्मिक हिंसा, जमीन-जायदाद को लेकर हिंसा… इस तरह की तमाम हिंसाओं में आगे रहने वाले उत्तर प्रदेश में पुलिस का ‘ऑपरेशन लंगड़ा’ पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है. बदमाशों के खिलाफ चलाए जा रहे इस अभियान के तहत यूपी पुलिस ने 8,472 मुठभेड़ों में 3,302 कथित अपराधियों को गोली मारकर घायल किया. वहीं इन मुठभेड़ों में मरने वालों की संख्या 146 है.

उत्तर प्रदेश में भाजपा के मार्च 2017 में सत्ता में आने के बाद से अपराधियों के खिलाफ एक तरह से मुहिम छेड़ दी गई थी. सालों से इसे कोई नाम नहीं दिया गया था, लेकिन मुठभेड़ के पैटर्न को देखते हुए इसे ‘ऑपरेशन लंगड़ा’ कहा जाने लगा है. चार साल से अधिक के  योगी सरकार के कार्यकाल में ‘ठांय-ठांय’ होते रहा है. इसमें जहां अपराधियों की शामत आ गई, वहीं पुलिस वालों को भी नुकसान उठाना पड़ा. इन मुठभेड़ों में 13 पुलिस कर्मी मारे गए और 1,157 और घायल हो गए, जिसके कारण 18,225 अपराधियों को गिरफ्तार किया गया.

मेरठ क्षेत्र में सबसे ज्यादा मुठभेड़

पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, पश्चिमी यूपी में मेरठ क्षेत्र 2,839 मुठभेड़, 5,288 गिरफ्तार, 61 मौत और 1,547 घायलों के साथ सूची में सबसे ऊपर है. इसके बाद आगरा क्षेत्र में, 1,884 मुठभेड़, 4,878 गिरफ्तारी, 18 मौतों और 218 लोगों के घायल होने के साथ दूसरे स्थान पर और तीसरा नंबर बरेली क्षेत्र का है, जहां 1,173 मुठभेड़, 2,642 गिरफ्तारियां, सात मौतें और 299 लोग घायल हुए हैं.

बिकरू कांड की वजह से कानपुर टॉप पर

वहीं इन मुठभेड़ों में घायल होने वाले पुलिसकर्मियों के मामले में भी मेरठ सबसे आगे है. जहां 435 पुलिस कर्मी घायल हुए हैं, उसके बाद 224 बरेली और 104 गोरखपुर का स्थान रहा. वहीं बिकरू कांड की वजह से कानपुर क्षेत्र में सबसे अधिक पुलिस की मौतें हुईं. गैंगस्टर विकास दुबे को पकड़ने गए आठ पुलिसकर्मी को मार दिया गया था.

अपराधी को मारना नहीं है मकसद

यूपी पुलिस के अधिकारी इस ऑपरेशन को गलत नहीं मानते हैं, बल्कि इसे वे जायज ठहराते हुए कहते हैं कि यूपी सरकार की अपराध और अपराधियों के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति है. ड्यूटी पर रहते हुए, अगर कोई हम पर गोली चलाता है, तो हम जवाबी कार्रवाई करते हैं और यह पुलिस को दी गई कानूनी शक्ति है. इस प्रक्रिया के दौरान कुछ घायल हो जाते हैं तो कुछ की मौत हो जाती है. हमारे लोग भी मारे गए हैं, और घायल हुए हैं. पुलिस मुठभेड़ों में घायलों की बड़ी संख्या बताती है कि अपराधियों को मारना पुलिस का प्राथमिक मकसद व्यक्ति को गिरफ्तार करना है.

विपक्षी बता रहे ‘ठोक दो’ नीति

यूपी पुलिस का भले ही जो तर्क हो विपक्षी दलों ने भी इन एनकाउंटर्स को लेकर सवाल खड़े किए और कहा कि यह राज्य सरकार की ‘ठोक दो’ नीति है. अगले साल राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार के अधिकारियों ने इन मुठभेड़ों को एक उपलब्धि के रूप में सूचीबद्ध किया है. कई मौकों पर आदित्यनाथ ने खुद चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि पुलिस अपराधियों को मारने से नहीं हिचकेगी.